सोचता हुँ अब फिर से टहला जाए
आजकल मुझे अपने दिल की बडी चिंता लगी रहती है. नहीं कहीं लगा तो नही है, और चांस भी नही है क्योंकि हम तो लगवाने के लिए चाहे कितने भी लालायित क्यों ना हो, पर कोई “रिसिवर” भी तो होना चाहिए.
दिल की चिंता स्वास्थ्य संबंधी है. सोचता हुँ कहीं कोलेस्ट्रोल बढ तो नही रहा है. डरता हुँ कहीं बुढापे में परेशानी ना खडी हो. कोलेस्ट्रोल की तो छोडिए, अभी एक नया टेंशन और मिल गया है. वह यह कि बुढापे मे याददास्त कमजोर होने के चांस बढ गए हैं.
फिर यह खबर पढी, तो सोचा कि अब पैदल चलना फिर शुरू करना चाहिए. पहले सुबह मॉर्निंग वॉक करने जाता था. पर फिर बंद कर दिया. कुछ आलस भी था, कुछ “मोटीव” भी जाता रहा. मोटीव यह कि – गर्मियों की छुट्टियाँ खत्म होने के बाद से छुट्टियाँ मनाने आई पास पडोस की लडकियाँ घर वापस चली गई, वे वॉक करने आती थी तो जी लगा रहता था.
लेकिन अब लगता है वॉकिंग फिर से शुरू करनी पडेगी और नया “मोटीव” ढुंढना पडेगा. स्वास्थ्य डरा तो सकता है पर “मोटीव” नहीं बन पा रहा. लेकिन कुछ तो करना पडेगा.
Nobody can go back and start a new beginning, but anyone can start today and make a new ending - - Maria Robinson
9 Comments:
शुभस्य शीघ्रम!
सुबह सुबह का चलना, जोगिंग करना बहुत अच्छा है। दिल की चिंता करें तो देशी घी खाना बंद कर दें केवल पूजा में काम लें। कॉलेस्ट्रोल लेवल पर आ जाएगा।
बढ़िया विचार। मौसम भी ठीक बदल रहा है मॉर्निग वाक के लिये। :)
मार्निंग वॉक बहुत उम्दा एवं उत्तम विचार है, जब तक दूसरे के दिमाग में कौंधे.
कृप्या हमारी तरफ से भी टहल लेना.
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आप सभी का कमेंटियाने के लिए धन्यवाद.
दिनेशजी, घी कम ही खाता हुँ इसलिए शायद सेहत नही बन रही. ;)
ज्ञानदत्तजी, मौसम तो खराब हो रखा है.
समीरजी, टहल लुंगा आपके नाम पर
संतोषजी, मुझे "एपल" पसन्द है. सादगी भी.
अरे आप के ब्लॉग में इक्को होता है क्या ? मेरे मेसेज डबल-डबल कैसे आ रहे है? और एप्पल में भी ब्लोगिया सकते हैं क्या? हमने तो ट्रांस्लिटरेशन के चक्कर में एप्पल को एक तरफ़ धकिया दिया है.
पंकजजी,
पिछले लगभग १५ दिनों से हिन्दी ब्लॉग्गिंग की लाइब्रेरी में मत्था मार रहा हूँ, और जहाँ जहाँ कुछ अच्छा लगा वहां बैठ कर तनिक सुस्ताय लेता हूँ..अभी आपके "मंतव्य" मैं बैठा हूँ. सच मानो तो सभी जवान लोगों का एक ही मंतव्य है..ले..दे..कर लगभग एक .. मैंने भी आपकी तरह मोटिव ढूंढ़ते- ढूंढ़ते काफी साल निकाल दिए और अब काया विशालकाय हो गई तो लगा.. और देर कर दी तो काया का जोगराफिया ऐसा हो जाएगा कि "मोटिव" भी अंकल-अंकल बुलाने लग जाएगा. अतः भलाई इसी में है कि "गाड़ी को घोडे के आगे लगाओ" और चल पडो.
बढ़िया है, टहलो, लेकिन दिल की टेन्शन निकाल के टहलों, वर्ना कहीं ऐसा न हो जाए कि दिल की दवा करने निकले थे और दिमाग को रोग हो गया!! :)
दही आदि का सेवन नियमित किया करो, बहुत कम प्राकृतिक चीज़ों में से है जो कॉलेस्ट्रोल को कम करता है। :)
घी वगैरह खूब खाओ लेकिन उसके अनुरूप ही शारीरिक श्रम होना आवश्यक है। शारीरिक श्रम के अभाव में बिना घी के भी शरीर की वाट लग सकती है! :)
बाकी ये ब्लॉग का फाँट साइज़ थोड़ा बढ़ाओ भई, बहुत छोटा नज़र आ रहा है। और पोस्ट के शीर्षक को जस्टिफाई अलाइन किया है क्या? फायरफॉक्स में टूटा हुआ दिख रहा है।
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