जानवरों से बदतर हालत! क्या ऐसे तैयार होंगे भविष्य के खिलाडी?
भारतीय खेल अधिकारी खेलों के विकास के प्रति कितने जवाबदेह हैं इसकी एक मिसाल देखने को मिल रही है दिल्ली में चल रहे राष्ट्रीय स्कूल खेलों में. इन खेलों मे भाग लेने भारत भर की स्कूलों से विद्यार्थी आए हुए हैं. लेकिन वे जिस हालात में रह रहे हैं, वह ना केवल शर्मनाक है बल्कि चिंताजनक भी है.
अहमदाबाद मिरर की खबर के अनुसार इन खेलों मे भाग लेने गुजरात से गए बच्चों को एक ऐसी इमारत में ठहराया गया जो कभी भी गिर सकती है! [खुद इमारत की बाहरी दिवार पर लिखा है - मुंडेर और छज्जे कमजोर हैं, कभी भी गिर सकते हैं, नीचे खडे ना हों]. आप ही सोचिए ऐसा संदेश पढने के बाद किसकी हिम्मत होगी उसी इमारत मे रहने की.
और तो और बच्चों को उस स्कूल [जीवन विकास विद्यालय, मोडल टाउन, दिल्ली] के एक कमरे में ठुंस कर रखा गया. एक छोटे से कमरे में (जिसे करीब 15 साल बाद खोला गया) 40 बच्चे! उनके बीच एक ही शौचालय, वह भी गंदा, उपर से पानी का रिसाव. कई बच्चों को तो उल्टियाँ होने लगी. दिल्ली की सर्दी में उनके पास नहाने के लिए गर्म पानी भी नहीं है, पाइप के सहारे खुले मे नहाना पड रहा है!
उपर से आयोजकों का तुर्रा यह कि वे हरसम्भव बेहतर प्रयास कर रहे हैं. और तो और इन खेलों का उद्घाटन भी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने किया था, जो आगामी कोमनवेल्थ खेलों के आयोजन को लेकर उत्साहित हैं. लेकिन उन्हें ही शायद पता नहीं कि कोमनवेल्थ तो छोडिए, छोटे से राष्ट्रीय स्कूल खेल भी किस घटिया तरीके से आयोजित हो रहे हैं.
बहरहाल अब गुजरात सरकार ने राज्य के बच्चों को इस "यातना शिविर" से हटाकर गुजरात भवन पहुँचा दिया है, जहाँ वे आराम से रह रहे हैं. लेकिन दूसरे राज्य के बच्चों का क्या? भविष्य के खिलाडी क्या खूब तैयार हो रहे हैं!
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4 Comments:
खेल संघों के पास काफी पैसा है और सरकार चाहे तो पैसे की कमी को दूर सकती है लेकिन संघ के अधिकारी खुद आराम से रहते हैं और खिलाडि़यों का रहन सहन जानवरों के रहन सहन से बदतर होता है। खेल संघ के कई अधिकारी तो लड़की खिलाडियो़ का यौन शोषण तक करते हैं यह कहकर कि मैं तुम्हे राज्य स्तरीय, राष्ट्र स्तरीय तक खिला दूंगा। अब बात करते हैं इन बच्चों की जिन्हें बेहद यातना देकर दिल्ली में रखा गया। यदि इन खिलाडि़यों को ढंग से रखने की ताकत सरकार व खेल संघों में नहीं है तो बुलाया ही क्यों। गुजरात सरकार को धन्यवाद की उन्होंने अपने बच्चों की सुध ली। अन्य राज्य भी ऐसा करें तो अच्छा रहेगा। नरेंद्र मोदी ही ऐसे व्यक्ति हैं जो गलत बात को चला नहीं सकते।
अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
पढ़कर कोई आश्चर्य नहीं हुआ, कोई नई बात नहीं है। जितने भी खेल संघ आदि सरकार के आधीन हैं वहाँ ऐसा ही होता है। स्कूल बच्चों की तो छोड़ो, राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों के साथ भी ऐसा ही होता है। सिर्फ़ बीसीसीआई एक अपवाद है क्योंकि वह सरकार के आधीन न होकर एक प्राईवेट क्लब है और इसलिए वहाँ बाकी जगहों से हालात बेहतर हैं।
अभी एकाध महीने पहले अख़बार में पढ़ा था कि जब भारतीय हॉकी टीम ऑस्ट्रेलिया गई थी तो वहाँ उनके पास खाने के भी पैसे न थे और एक हॉकी प्रेमी एनआरआई ने टीम का खाने का बिल अपने पल्ले से चुकाया था यह सोच कि हॉकी संघ बाद में उसको पैसे लौटा देगा। लेकिन गिल साहब और उनके जैसे अन्यों को वे सज्जन अच्छे से जानते नहीं थे, हॉकी संघ ने बेशर्मी से पेश आते हुए पैसे लौटाना आवश्यक ही नहीं समझा और अब जब हॉकी संघ को खत्म किया जा चुका है तो बात ही खत्म हो गई!!
मुझे सिर्फ दुश्यंत का यह शेर याद आता है " कल नुमाईश में मिला था वह चीथड़े पहने हुए / मैने पूछा नाम तो बोला के हिन्दुस्तान है । " -शरद कोकास
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