भगवान भी बिकते हैं
मैरे पिछले लेख में मैने तथाकथित धार्मिक तथा आध्यात्मिक गुरूओं के बारे में लिखा था. कैसे ये लोग अपना व्यापार चलाते हैं साथ ही साथ महान भी हो जाते हैं, पूजनीय भी बन जाते हैं.
अब आज समाचारपत्र में एक और खबर पढने को मिली. ख़बर थी तिरूपति बालाजी मन्दिर के बारे में. वहाँ श्रध्धालुओं की इतनी अधिक भीड होती है कि, भगवान के दर्शन तो धक्कामुक्की में हुए ही समझो. लेकिन फिर एक टिकट सिस्टम चला था. 500 रू. तक की टिकट लेकर आप 5 मिनट तक बिना रूकावट दर्शन कर सकते थे. ये वैध टिकट है. अवैध रूप से तो पंडो को खिला पिलाकर दर्शन होते ही हैं.
अब एक नई सुपर डिलक्स टिकट भी आ गई है, सुपर डिलक्स लोगों के लिए. बस 10 लाख रूपये दिजीए और अपने परिवार के चार सदस्यों के साथ एक पुरा दिन भगवान के सानिध्य में बिताईए. वो भी पुरे 10 साल तक. लोटरी लग गई. सुपर भक्तों की भी और संचालकों को भी.
वैसे भी तिरूपति बालाजी भारत का सबसे कमाऊ मन्दिर है. अब इस नई स्कीम से और भी कमाई होगी.
कमाई सभी कर रहे हैं, पर नाम व्यापार नही देते. समाज सुधारक बने जाते हैं. कोई योग सिखा रहा है, कोई सुदर्शन क्रिया, कोई मेडिटेशन, कोई रैकी... जिसे ये सब नही आता वो ज्ञान दे देता है. और इनके ज्ञान के क्या कहने.
आज सुबह टीवी पर दिवंगत निरूमा (गुजरात की प्रसिध्ध बहनजी) का व्याख्यान सुन रहा था. बहन कह रही थी "मोक्ष पाना है तो राग द्वेश छोड दो". लोग गद गद हो रहे थे. वाह क्या बात कह दी. मैने तो सोचा ही नही था.
आप सोच भी नही सकते लोगों को बुध्धु बनाना कितना आसान है. और कितना आसान है धर्म को बेचना. सच ही है... दुनिया में दो चीजें हमेंशा से बिकती आई है , और बिकती रहेगी. धर्म और सेक्स.
सोचता हुँ, ये व्यापार कितना अच्छा है. कमाई भी करो, प्रसिध्धी भी पाओ, और पूजे भी जाओ. चलिए गुरू बनते हैं.