29.6.06

भगवान भी बिकते हैं

मैरे पिछले लेख में मैने तथाकथित धार्मिक तथा आध्यात्मिक गुरूओं के बारे में लिखा था. कैसे ये लोग अपना व्यापार चलाते हैं साथ ही साथ महान भी हो जाते हैं, पूजनीय भी बन जाते हैं.

अब आज समाचारपत्र में एक और खबर पढने को मिली. ख़बर थी तिरूपति बालाजी मन्दिर के बारे में. वहाँ श्रध्धालुओं की इतनी अधिक भीड होती है कि, भगवान के दर्शन तो धक्कामुक्की में हुए ही समझो. लेकिन फिर एक टिकट सिस्टम चला था. 500 रू. तक की टिकट लेकर आप 5 मिनट तक बिना रूकावट दर्शन कर सकते थे. ये वैध टिकट है. अवैध रूप से तो पंडो को खिला पिलाकर दर्शन होते ही हैं.

अब एक नई सुपर डिलक्स टिकट भी आ गई है, सुपर डिलक्स लोगों के लिए. बस 10 लाख रूपये दिजीए और अपने परिवार के चार सदस्यों के साथ एक पुरा दिन भगवान के सानिध्य में बिताईए. वो भी पुरे 10 साल तक. लोटरी लग गई. सुपर भक्तों की भी और संचालकों को भी.

वैसे भी तिरूपति बालाजी भारत का सबसे कमाऊ मन्दिर है. अब इस नई स्कीम से और भी कमाई होगी.

कमाई सभी कर रहे हैं, पर नाम व्यापार नही देते. समाज सुधारक बने जाते हैं. कोई योग सिखा रहा है, कोई सुदर्शन क्रिया, कोई मेडिटेशन, कोई रैकी... जिसे ये सब नही आता वो ज्ञान दे देता है. और इनके ज्ञान के क्या कहने.

आज सुबह टीवी पर दिवंगत निरूमा (गुजरात की प्रसिध्ध बहनजी) का व्याख्यान सुन रहा था. बहन कह रही थी "मोक्ष पाना है तो राग द्वेश छोड दो". लोग गद गद हो रहे थे. वाह क्या बात कह दी. मैने तो सोचा ही नही था.

आप सोच भी नही सकते लोगों को बुध्धु बनाना कितना आसान है. और कितना आसान है धर्म को बेचना. सच ही है... दुनिया में दो चीजें हमेंशा से बिकती आई है , और बिकती रहेगी. धर्म और सेक्स.

सोचता हुँ, ये व्यापार कितना अच्छा है. कमाई भी करो, प्रसिध्धी भी पाओ, और पूजे भी जाओ. चलिए गुरू बनते हैं.

27.6.06

ये हमारे पथ प्रदर्शक पंथ


पथ प्रदर्शक पंथ. जो हमें जीने की राह दिखाते हैं. हमें जीवन का मूल्य समझाते है. और अपना व्यापार चलाते हैं.



भारत में धर्मों की कमी नही है. ढेर सारे धर्म. और उनसे ज्यादा पंथ या सम्प्रदाय या गुट जो भी समझ लिजीए. कोई आशाराम बापु के पीछे पागल है, कोई इस्कोन के, कोई श्री श्री रविशंकर की सुदर्शन क्रिया का लाभार्थी है, कोई ब्रह्माकुमारीज का अनुयायी, कोई फलाँ बाबा का चेला कोई ढींकला बहन का सेवक. कोई कमी नहीं. 120 करोड लोगों का देश, अभी तो कई और पंथ शुरू किए जा सकते हैं. भक्तों की कोई कमी नहीं.

कोई एक नई चीज सोचने की जरूरत है. व्यापार के नियम भी तो यही कहते हैं. सफल होना है आज के स्पर्धात्मक माहौल में तो आपकी प्रोडक्ट कुछ अलग होनी चाहिए.

उदाहरण देखिए:
  • ये सीधा स्वर्ग पहुँचाते है. आबु में मैं ब्रह्माकुमारीज के केन्द्र में गया था. वहाँ एक स्वयंसेवक अवतरीत हुआ. मुस्कुराता हुआ, हँसता हुआ. मैने सोचा यह भाईसाहब बिना बात क्यों हँस रहे हैं. बात में ज्ञात हुआ, ब्रह्माकुमारीज वाले गुस्सा नही करते. चाहे कुछ भी कह लो. मैने सोचा चलो प्रयोग के तौर पर कुछ अगडम बगडम बोल कर देखुं, पर हिम्मत नही हुई. पर एक टोपीवाला हिरो टाईप लडका थोडा ज्यादा अवारा किस्म का था. थोडी दूर खडी लडकीयों (पढें बहनों) को टुकुर टुकुर ताक कर कुछ बकने लगा. स्वयंसेवक बोला, "ऐसे ना करें". मवाली बोला "आप अपना काम करें". मुझे लगा झगडा होने वाला है. पर स्वयंसेवक तो हँसते हुए बोला "आप निकल जाएँ". मवाली तो यही चाहता था.

    खैर, फिर स्वयंसेवक ने हमें समझाया कि दुनिया खत्म होने वाली है. मुझे उसमे नास्त्रेदमस दिखाई दिया. वो बोला, आप गुस्सा छोड दें, बडों की सेवा करें.. जब प्रलय आएगी तो कुछ लोग ही बच पाएंगे जो स्वर्ग में जाएंगे. ये स्वर्ग और कहीं नहीं धरती पर ही होगा. कलयुग खत्म होगा. नया युग आएगा.

    मेरी पत्नी बहुत प्रभावित हुई. मैने उसे दिखाया कि मैं भी प्रभावित हो रहा हुँ. पर मैं वहाँ लगी पेंटींग देख रहा था. ब्रह्माकुमारीज के दिवंगत प्रमुखश्री हर रूप में मौजुद थे. शिवजी के रूप में, विष्णु के रूप में... माफ किजीए पर बडे हास्यास्पद लग रहे थे.

    लेकिन उनका व्यापार अच्छा चल रहा है. हज़ारों अनुयायी हैं. कुछ दिन पहले मेरी ऑफिस की बिल्डींग में कुछ स्वयंसेविकाएँ आई. किसी के घर आ रही होंगी. वो सिढीयों से उपर चढ रही थी, मै नीचे उतर रहा था. हमेंशा की तरह मेरी धून में. बस एक स्वयंसेविका से जरा सा छुकर निकल गया. उसने बडी ही हेय दृष्टि से मुझे देखा. मैने सोचा माफी मांग लूं (हालाँकि जानबुझ कर तो नहीं टकराया था), पर फिर सोचा ये लोग तो गुस्सा नहीं करते ना! पर उसे बडा गुस्सा आ रहा था मुझपर.. और वो हंसी भी नहीं. नहीं.. मेरी पहचानने में भूल भी नही हुई थी. वो थी तो ब्रह्माकुमारीज की सेविका. इन लोगों का एक बेज़ होता है, सूरज वाला. खैर, बिचारी नई होगी. उसे पता नहीं होगा गुस्सा करने से स्वर्ग नहीं मिलता.

जारी......

25.6.06

पेले की महानता?

फुटबॉल का बुखार लोगों के सिर चढकर बोल रहा है. इसी बीच मुझे एक प्रकरण याद आया जो मैनें कुछ दिनों पहले एक समाचारपत्र में पढा था. इस लेख में लेखक ने यह बताने की कोशिष की थी कि फुटबॉल के महान खिलाडी पेले अपनी निजी जिन्दगी में भी कितने महान हैं. पुरा लेख पढने के बाद भी मैं सशंकित रहा कि इसमें पेले की महानता है कहाँ? आप ही बता दें:

बात उन दिनों की है जब पेले अपनी सफलताओं के चरम पर थे. दुनिया भर में उनके लाखों प्रशंषक थे. पेले एक बार ऑस्ट्रेलिया क्लब फुटबाल खेलने के लिए गए. वे जिस होटल में ठहरे थे वहाँ काम करने वाली वेट्रेस पर उनका दिल आ गया. वो वेट्रेस भी पेले के पीछे दिवानी थी.

एक बार पेले ने उस वेट्रेस को अपने कमरे में आमंत्रीत किया और वेट्रेस ने भी उसे स्विकार कर लिया. अब पेले दिनभर फुटबाल खेलते तथा रात उस वेट्रेस के साथ बिताते. इसतरह से 15 दिन बीत गए और पेले ऑस्ट्रेलिया छोडकर वापस ब्राज़िल अपने घर पहुँच गए.

घर आकर वे उस वेट्रेस को भूल गए तथा पत्नी के साथ फिर से हंसी खुशी रहने लगे. इसीतरह पच्चीस वर्ष बित गए. पेले भी रिटायर हो गए. एक दिन वे अपने घर के लॉन में बैठे थे कि उनको किसीने "पापा" कहकर पुकारा. उन्होने देखा तो एक लडकी उनके पास खडी थी. उन्होने पुछा तो उस लडकी ने बताया कि वो उन्ही की बेटी है. पेले को यकिन नहीं हुआ तो उसने ऑस्ट्रेलिया, और उस वेट्रेस की बात कही.

पेले के जाने के बाद वो वेट्रेस उन्हे याद करती रही. वो पेले से प्यार करने लगी थी और उनसे गर्भवती भी हो गई थी. उसने आजीवन शादी नही की, तथा पेले का इंतजार करती रही. उसने एक लडकी को जन्म दिया और उसके बडे होने पर उसे बताया कि उसके पिता कौन हैं. साथ ही यह भी हिदायत दी कि उसके जिवित रहते वो उनसे सम्पर्क ना करें, क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि पेले किसी मुसिबत में पडे.

पर उस वेट्रेस के निधन के बात उसकी बेटी ब्राज़िल अपने पिता के पास पहुँच गई थी. पेले को यकिन नही हुआ और उन्होने निजी जासुस की मदद से सत्य की खोज करवाई. अंत में वो लडकी सही साबित हुई. तब पेले ने उसे अपनी बेटी के रूप में स्विकार किया तथा अपनी जायदाद में हिस्सेदार भी बनाना चाहा. लेकिन उस लडकी ने मना कर दिया और कहा कि उसे सिर्फ पिता के रूप में उनका नाम चाहिए. और वो वापस ऑस्ट्रेलिया चली गई.


कहानी पुरी फिल्मी है, पर शायद सत्य है. लेकिन बात यह है कि महान कौन? पेले या वो वेट्रेस!!

16.6.06

गुगल अर्थ से :: कुछ विशेष चित्र

ताज महल

पोखरण परमाणु परिक्षण स्थल (शक्ति 1 और शक्ति 2)

राजघाट (गान्धीजी की समाधी)

कैलाश पर्वत

मानसरोवर (अफसोस अब ये भारत में नहीं)

15.6.06

गुगल अर्थ से :: भारत के हिल स्टेशन

माउंट आबु

डलहौसी

मसुरी

दार्जीलींग

काठगोदाम

शिमला

14.6.06

गुगल अर्थ से :: अहमदाबाद

विधान सभा (गान्धीनगर)





विश्वप्रसिद्ध IIM-A

गुजरात उच्च न्यायालय

नेशनल एक्सप्रेस वे 1

ड्राइव-इन सिनेमा (एक साथ 1000 कारें खडी करके फिल्म देख सकते हैं)

अक्षरधाम (गान्धीनगर)

अहमदाबाद हवाई अड्डा

8.6.06

वापसी

मैं आज वापस अहमदाबाद लौट आया हुँ.

यात्रा संतोषजनक ही रही. वैसे भी राजस्थान में मेरा ज्यादा मन लगता नही है. और मेरा गाँव भी दूरदराज में है, जहाँ कोई पत्रिका या समाचारपत्र भी नही मिलते. खैर...

अभी काफी व्यस्त रहुँगा तो ज्यादा तो नही लिख पाउँगा. संजयभाई कह रहे थे, जयपुर में ब्लोगरों की बैठक होने वाली है. बहुत सुखद समाचार है, भैया शायद जाएँ.

शेष शुभ.

1.6.06

ये कैसे कम्प्युटर गेम?

मैरा 9 साल का भतीजा कुछ दिन पहले ही ननीहाल से छुट्टीयाँ बिताकर घर लौटा. वहाँ से उसने फोन पर बताया था कि वो कुछ विडीयोगेम्स या कम्प्युटर गेम्स की सीडीयाँ लेकर आ रहा है, कुछ तो एकदम धांसु है. मैं खुश हो गया. सोचा बहुत दिनों बाद चलो कुछ खेलेंगे. मैं कम्प्युटर गेम्स का दिवाना रहा हुँ. मैनें और उत्कर्ष (भतीजा) ने कई गेम साथ साथ खेले थे, जैसे Hidden & Dangerous, Doom, Lara Croft वगैरह.

खैर जब वो घर आया तो पहला काम कम्प्युटर में गेम इंस्टोल करने का किया. बडा उत्साही था. चाचु को नया धांसु गेम दिखाना था. नाम है Vice City.

गेम इंस्टोल हुआ और उसने खेलकर दिखाना शुरू किया, और मैं अवाक रह गया. ये क्या है? गेम ... ऐसा गेम होता है!?! आप एक मवाली हैं, जिसको चाहे मार सकते हैं, किसीका भी वाहन छीन सकते हैं... कोई भी हथीयार उठा सकते हैं.. किसी को भी लहुलुहान कर सकते हैं. मैने उसे तन्मयता से तथा मजे ले ले कर खेलते देखा. मैने कहा यह गेम है? उसने कहा हाँ, देखो क्या मस्त है. अब उसके उपर गाडी चढाकर दिखाता हुँ; और उसने कार को एक राहगीर पर चढा दिया. वो लहुलुहान होकर गिर पढा.

फिर उत्कर्ष ने राइफल निकाली और दनादन चला दी. सामने स्क्रीन पर लाशें गिर पडी. तडपती हुई.
मैने कहा बन्दुक ना हो तो? उत्कर्ष बोला कोई बात नहीं फाइटिंग भी कर सकते हैं. और वो एक आदमी से भीड गया, तथा पीटने लगा. उसका खुन बहने लगा. इतने में पुलिस आती है और वो भाग जाता है. भागते हुए तोडफोड और शोरूम से कपडे चुराना नहीं भूलता.

अंत में उत्कर्ष मेरी तरफ मुडा और बोला " क्यों मज़ा आया ना?". मैं और भैया हैरान रह गए.

अगला काम हमने यह किया कि गेम अन-इंस्टोल करके सीडी तोड दी.

(आपके मास्साब राजस्थान जा रहे हैं शादी में. तो एक सप्ताह तक मज़े किजीए. छुट्टी!!)