31.10.06

एक मज़ेदार वाकया

कल कुछ युँ हुआ।

मैं एक क्लाइंट से मिलकर वापस ऑफिस लौट रहा था। जैसे ही मैने कार को मुख्य सडक पर घुमाया मैने देखा कि मेरे ठीक आगे स्कूटर पर एक युवती जा रही है, जिसके स्कुटर के पीछे एक बच्चा बैठा हुआ है जिसका चेहरा मेरी तरफ है, यानि कि वो उल्टा बैठा हुआ है।

मुझे थोडी शरारत सुझी तो मैने अपना नाक सिकोड कर उसे चिढाया, पहले तो उसने मुँह फेर लिया फिर थोडी देर बाद मुस्कुराता हुआ मेरी तरफ देखने लगा। मैने अब जीभ निकाल कर चिढाया, उसने भी प्रतिउत्तर दिया। मुझे हँसी आई, मैने अब चेहरे को इधर उधर मोडकर चिढाना शुरू किया, उसने भी किया।

अजीब संयोग यह था कि मुझे जिधर मुडना होता था, वो लडकी भी मेरे आगे आगे ठीक उसी रस्ते पर जाती थी।

अंत में जब ऑफिस थोडी ही दूर थी तब मैंने चिढाना बन्द कर दिया क्योंकि थक गया था। लडका अभी भी मुझे हंसते हुए देख रहा था और उकसा रहा था। मैने नजरें हटाकर इधर उधर देखा तो अचानक ही मेरा ध्यान लडकी के स्कूटर के रीयर मिरर पर गया। वो लडकी मुझे ही देख रही थी और बुरी तरह आग बबुला हो रही थी। उसे शायद लग रहा था कि मै उसे ईशारे कर रहा हुँ।

मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। मैने उसे ओवरटेक कर आगे जाना चाहा पर उसने अपने स्कूटर की रफ्तार काफी बढा ली थी। लेकिन अभी भी हम दोनों के रास्ते एक ही थे। वो जिधर मुडे उधर मैं भी मुडुं। मैने सोचा है प्रभु इसे ऑफिस वाली सोसाईटी में ना जाना हो तो अच्छा है, नहीं तो जूते पडने वाले हैं।

लेकिन गनिमत है कि ऑफिस आने से ठीक पहले वो तेजी से आगे निकल गई, और मेरी सांस में सांस आई।

बोधपाठ: वाहन चलाते समय बच्चों को चिढाना हानिकारक हो सकता है।

30.10.06

तरकश विशेष में सरदार

कल सरदार पटेल का जन्म दिवस है।

इस बार का तरकश विशेष सरदार पटेल को भावभीनी श्रद्धांजली के रूप में प्रकाशित किया गया है।

साथ ही मेरा नया मिडिया मंत्र और शुएब को बिमारी से क्यों है परहेज ये भी देख लें।

और नया पोल है - क्या मनमोहन सिंह सबसे कमजोर प्रधानमंत्री हैं?

28.10.06

आजा लौट के आजा मेरे मीत.........

क्या कहुँ... सब सुना सुना है। गुजरात का भी बडा भारी काम है भाई। दिवाली क्या आई... सब भाग गए। छुट्टियाँ जो आ गई। दिवाली के बाद लाभ पंचमी तक सब बन्द।

सब बन्द यानि सब बन्द। पुरे हफ्ते ऐसा लगता है जैसे शहर में कर्फ्यु लगा है। सडकें सुनी, दुकानों मे ताले... और जीवन के लाले। सच में लाले पड जाते हैं।

अब दिवाली के पहले बीवी के गले में दर्द उठा तो भागे डोक्टरनी के पास कि कहीं वो भाग ना जाए। पहुँचते ही मुस्कुराई कि अच्छा हुआ आज आ गए। मैने कहा हम समझ गए.. आप तो चले छुट्टी पर। वो बोली सही समझे, अब एक काम करो हफ्ते भर की दवाई ले लो। हम तो ये चले कि वो चले।

मैने खैर मनाई कि चलो अच्छा है आज ही बीवी बिमार पड गई, कल कहाँ डोक्टर बाबु ढुंढता।

और दुविधा तो हो ही गई आखिरकार... बीवी नहीं तो एक रिश्तेदार बिमार पड गए और डोक्टर तो ढुंढे ना मिले। सब गायब। अब बिमारी भी कोई बडी तो थी नही कि भई अपोलो वपोलो ले जाएँ... खैर किसी तरह काम निकाल लिया।

शुक्रवार को लाभ पंचमी थी तो लगा चलो अब सब काम पर लौट आएंगे तो ये क्या... सब बन्द। अरे क्या हुआ तो पता चला कि भई वैसे ही वीकएंड आ रहा है तो क्यों ना सोमवार से ही लौटा जाए।

धन्य है प्रभु। करे तो क्या करें। हमारे जैसे बुद्धु ऑफिस खोल कर पडे हैं तो काम में मन नहीं लगता, लगे कहाँ से जब सब छुट्टि मना रहे हों तो।

हम गुजरातीयों का भी कमाल है भाई, कमाते भी हैं तो जिन्दगी का आनन्द भी ले लेते हैं।

लगे रहो।

19.10.06

तरकश पर नया क्या?

सबसे पहले मैं आप सबका धन्यवाद देना चाहुँगा जिनके प्यार, सहयोग और साथ की वजह से तरकश हर दिन नई ऊँचाईयों को छु रहा है। तरकश पर हिट हर दिन बढ रही है... और पिछले महिने तरकश पर हिट्स 50,000 को भी पार कर गई।

तरकश का अपना दर्शक वर्ग है, जिनमें हमारे परिवार के अलावा गुजराती समाज एवं एन.आर.आई. पाठकवर्ग हैं.... और यह बढ रहा है।

तरकश पर हम हर बार कुछ नया करने की कोशिष कर रहे हैं... फिल्म समीक्षा और पोडकास्ट के बाद अब एक और नया स्तम्भ मिडिया मंत्र शुरू हो चुका है।

मैने अपना मिडिया चिट्ठा "कल्पना कक्ष" बन्द कर दिया है (नारद मुनि कृपया ध्यान दें), और अब यह चिट्ठा एक अलग अन्दाज में तरकश के नए स्तम्भ "मिडिया मंत्र" के रूप में अवतरित हो चुका है।


अब तरकश के अलग अलग विभागों के सम्पादक इस तरह से हैं:

कोर टीम (मुख्य सम्पादक) : समीरलाल एवं संजय बेंगाणी

समीक्षा : रवि कामदार
पोडकास्ट : खुशी बेंगाणी
मिडिया मंत्र : पंकज बेंगाणी
देश दुनिया : सागरचन्द नाहर
आलेख : मुक्त (सिर्फ तरकश के लेखकों के लेख) (अतिथि लेखों की स्विकार्यता कोर टीम के निर्णय पर निर्भर)



आपका साथ एवं सहयोग बना रहेगा ऐसी उम्मिद है।

तरकश पर नये पोल में अपनी राय दिजिए की इस बार चेम्पियंस ट्रोफी का विजेता कौन होगा? साथ ही समीरलाल आ गए हैं अपने झोले के साथ... पढना ना भूलें।

10.10.06

तरकश पर नया क्या?

तरकश को महज एक समूह ब्लोग बनाने की मंशा कभी नहीं थी हमारी। हम आज भी नई नई चिजें तरकश पर लाने की लगातार कोशिष कर रहे हैं।

इसी कडी में अब फिल्म समिक्षा और पोडकास्ट (जो कि पहले चिट्ठे के रूप में मौजुद था) को तरकश पर लाया गया है।

समिक्षा अभी सिर्फ फिल्मों की ही होगी पर भविष्य में अन्य क्षैत्रों की भी की जाएगी। फिलहाल टिप्पणी की सुविधा समिक्षा में उपलब्ध नहीं है।

इसके पहले हम देश दुनिया नाम से स्तम्भ तो शुरू कर ही चुके हैं।