26 जुलाई 2008, अहमदाबाद. शहर में कुछ ही देर पहले धमाके शुरू हुए हैं. अफरा तफरी के बीच लोग सिविल अस्पताल पहुँच रहे हैं. इनमें से अधिकतर धमाकों के शिकार हैं, और इसके अलावा स्वयंसेवी हैं, जो चिकित्सकों की मदद करना चाहते हैं.
ट्रोमा वार्ड के बाहर 108 नम्बरी एम्बूलेंसों की लाइन लगी है. घायलों की संख्या बढती जा रही है. एक अखबार का छायाकार अभी वहाँ पहुँचता है और सोच रहा है कि अपनी बाइक कहाँ खडी करे. दूसरा एक पत्रकार ट्रोमा वार्ड के अंदर घायलों को देख रहा है.
एक घायल को चोटें तो कम लगी है लेकिन वह बहरा हो चुका है. एक अन्य को यह होश नहीं है कि उसके शरीर से खून निकल रहा है. वह इतना डरा हुआ है बोल नहीं सकता.
ट्रोमा सेंटर की सफेद टाइलें गंदी हो रही हैं. वहाँ एक लाश पडी है, जिसके पास ज्योत्सनाबेन खडी हैं. ज्योत्सनाबेन पत्रकार को बताती हैं कि यह आदमी अभी जिंदा था, एक नर्स उसके लिए पलंग खाली करने गई और वह मर गया. पत्रकार उससे पूछता है कि वह कौन से धमाके का शिकार है, हाटकेश्वर के या नारोल के?
छायाकार को पार्किंग की जगह नहीं मिलती. वह सोचता है कि उसे बाइक सडक पर पार्क कर देनी चाहिए. जब वह अपनी बाइक को सडक पर पार्क कर रहा होता है, तभी एक तेज धमाका होता है.
पार्किंग में खडी वेगन आर कार ध्वस्त हो गई है. और उसके साथ ही यह धारणा भी ध्वस्त हुई है कि आतंकवादी अस्पतालों मे हमला नहीं करेंगे.
छायाकार धमाके से मात्र 20 फूट दूर है. जब वह होश मे आता है तब इस बात पर राहत की सांस लेता है कि वह सही समय पर बाहर निकल आया था.
ट्रोमा सेंटर के अंदर मौजूद पत्रकार धक्का लगने से नीचे गिर गया था. वह बच गया है. लेकिन उनके साथ खडी ज्योत्सनाबेन के शरीर में छर्रे घूस गए हैं. वे नहीं रहीं. ट्रोमा सेंटर की सफेद टाईलें अब लाल हैं.
30 लोग मारे गए हैं. ज्यादातर स्वयंसेवी थे, जो घायलों की मदद करने आए थे.
छोटा रोहन व्यास भी नहीं रहा, वह अपने पिता और भाई के साथ आया था. उसके भाई यश व्यास का शरीर बुरी तरह से जल रहा है और वह अपने पिता को ढूंढ रहा है. लेकिन उसे नहीं पता कि उसके पिता अब नहीं रहे.
10 मिनट बाद एक और धमाका होना बाकी है.
गृहमंत्री शिवराज पाटिल के लिए, जिन्हे सिविल अस्पताल के ट्रोमा वार्ड के अंदर घायलों से मिलने जाते समय इस बात की अधिक चिंता थी कि बरसाती पानी में उनका झक सफेद प्रिंस सूट कहीं गंदा ना हो जाए. Labels: ahmedabad, blast, shivraj patil, upa