मंतव्य
जब चाहा, जो लिखा
26.2.07
25.2.07
डॉन को पकडना मुश्किल है, प्रत्यक्षाजी !!
सुबह सुबह उनिन्दा सा मैं जागा. नहीं, पत्नी ने नहीं जगाया, वो ऐसा पाप भला क्यों करेगी? पर मेरे मोबाइल की घंटी अलार्म का कार्य कर रही थी.
आंखे मलते मलते मैने मोबाइल की स्क्रीन देखी.
Chhota Vakil calling....
"आह, छोटा वकील, चलो ठीक है प्रोब्लम छोटी होगी", मैने सोचा और मुस्कुराया. हरा बटन दबाकर घुमतु (मोबाइल) को कान से लगाया.
"अगला एपिसोड कब लिखेगा, बेटी के बाप?"
लिखुंगा यार, फुरसत तो मिलने दे.
अबे, अपने आपको कानपुरिया मत साबित कर, तु लिखेगा तभी तो अपनी दुकान चलेगी. देख कोई उठाकर अन्दर कर दे उससे पहले लिख डाल.
कौन करेगा अन्दर यार? मैने क्या किया है.
हिन्दी में लिखने का गुनाह किया है तेने, देख टाइम खराब चल रहा है, सुबह से उसके तीन फोन आ चुके हैं, चौथा आया तो मैं नहीं बोलुंगा कि कुछ आया था, क्योंकि तु सुनने को जिन्दा नहीं बचेगा.
'पहेली बुझाना बन्द कर वकील', मैं गरजा, साफ साफ बात कर.
देख शांति (पंकजभाई), पुरानी खिलाडी है वो, बडे बडे लोगों का हाथ है उसके उपर, बहुत डेंजरस है, तेरे नाम का वोरंट निकाल चुकी है, पाँच सवाल के जवाब मांगेगी, चुपचाप तेरे को दे देने का बस!
और नहीं दिया तो?
अबे बावळा हो गया क्या, साले जानता नहीं वो क्या है. उठाकर ऐसा पटकेगी कि पानी नहीं मांगेगा तु.
अब नीन्द उडी जा रही थी मेरी. क... कौन.. कौन है वो.
परतिछा!!
ये कैसा नाम है?
नाम का अचार डालेगा तु? अबे खुद भी मरेगा हमें भी ले डुबेगा. वो मेरे को बजाती है, सवालों की फडदी है मेरे पास. बोल दे ना मेरे बाप, जो जी में आए.... पर मेरे को निकाल इस सबसे.. भाई को पता चला तो वाट लगा देगा.
कितने भाई हैं, वकील?
क्या कितने है, एक ही है. क्यों तेरे को पत्ता नहीं क्या?
नारद के पास जा वकील, आजकल हर कोई हर किसी की वाट लगा रहा है!
तुझे क्या खुजली है? तुझे भी वाट लगाकर भाई बनना है क्या.
नहीं अपने तो इंसान ही ठीक हैं. भाई नहीं बनना.
इंसान बनना है तो काइको फालतु के पचडों में चिल्लपों करने का? करने दो जो करता है, तु सुन, शिरीस का नाम सुना है? परतिछा ने उसकु तेरा एंकाउंटर करने को बुलायला है.
एनकाउंटर? सवाल..... सवाल... क्या है वकील, सवाल बोल', अब मुझे पसीना आने लगता है.
हा हा, आ गया ना रास्ते पर, परतिछा बाई और शिरीसबाबु के सारे सवाल बोलता हुँ, तेरे को ज्यास्ती भेजामारी नहीं करने का, शोर्ट आणी सिम्पल जवाब ठोकने का, बरोबर?
बरोबर!!
पेला सवाल, वो पुछ रेली है, जीवन की पहली धमाकेदार वारदात क्या की थी?
यार ये तो बहुत सारी है, कौन सी बोलुं? छोटा था, तब एक बार जोश में आकर
कक्षा का पंखा पुरा मोड कर उल्टा कर दिया था. उसके बाद जो हुआ वो बुरे सपने से भी
बुरा था! बात जिला शिक्षण अधिकारी तक जा पहुंची थी, और मैं सारा दिन बेंच पर खडा
खडा अलग अलग एंगल से मजाक का पात्र बन रहा था.
वाह भीडु, दुजा सवाल, चिट्ठा जगत में भाईचारा , बहनापा सच है या माया है ?
सच है भी और नहीं भी, देख वकील, रिश्ते जो हैं खून के भी होते हैं, भावनाओं
के भी और मतलब के भी. किसी की भावना किसी का मतलब भी हो जाती है। पर एक तरह का भाईचारा तो है ही. बाकि सब हरिईच्छा!
ह्म्म.. बरोबर बोला तु, अब तीसरा, किसी एक चिट्ठाकार से उसकी कौन सी अंतरंग बात जानना चाहेंगे ?
हा हा हा, वकील अपने को क्या करना है, हा हा हा, प्रत्यक्षा मेडम खतरनाक
कोतवाल है, उनको तो सब पता होगा ना! उन्मुक्त का पता क्या है? ईस्वामी का नाम क्या
है? अनूपजी फुरसतिया क्यों है? अफलातुनजी "अफलातुन" क्यों है? पुछो मेडम से, उनको
पता है क्या?
छोड ये सब, ये बोल, ईश्वर को हाज़िर नाज़िर जान कर बोलने का, टिप्पणी का
आपके जीवन में क्या और कितना महत्त्व है?
उतना ही जितना शरबत में चीनी का और खाने में नमक का!
और पीने में?
ये लालाजी से पुछो.
ह्म्म, अबी ये बोल, चिट्ठा लिखना सिर्फ छपास पीडा शांत करना है क्या ? आप अपने सुख के लिये लिखते हैं कि दूसरों के (दुख के लिये ;-)?
सिर्फ छ्पास पीडा शांत करने का ही, पर मेरा सुख अमुमन दुसरों के लिए हमेंशा
दुख बन जाता है, यह दुःखद है वकील.
ओके, अब वो एनकाउंटर स्पेश्यालिस्ट पुछ रेला है कि, कम्प्यूटर पर हिन्दी
टाइपिंग के बारे में सबसे पहले आपने कब सुना और कैसे, अपने कम्प्यूटर में हिन्दी में सबसे पहले किस सॉफ्टवेयर में/द्वारा टाइप किया और कब, आपको उसके बारे में पता कैसे चला ?
साल डेढ साल पहले सुना था, शुरू से माइक्रोसोफ्ट आई.एम.ई का प्रयोग करता रहा
हुँ, उसके बारे में शायद भैया से जाना था...... ए वकील, उनका नाम मत लिखना. अपने को
उनको नहीं फँसाना.
अबी ये सुन, आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में आगमन कैसे हुआ, इसके बारे में कैसे पता लगा, पहला हिन्दी चिट्ठा/पोस्ट कौन सा पढ़ा/पढ़ी ? अपना चिट्ठा शुरु करने की कैसे सूझी ?
हिन्दी चिट्ठाजगत में आगमन भैया के कहने पर हुआ, पता भी उनसे चला, पहला चिट्ठा
जितुजी का पढा, पोस्ट तो याद नहीं.
ह्म्म, यदि भगवान आपको भारतवर्ष की एक बात बदल देने का वरदान दें, तो आप क्या बदलना चाहेंगे?
जातपात, ऊंचनीच और धार्मिक कट्टरता को बदलाना चाहुंगा.
बस्स, भीडु हो गया, हा हा हा... खल्लास.. अच्छा बोल, मई एकटिंग कैसा करता हुँ?
मतलब?
मतलब कि, वकील की आवाज़ वगेरा..
इस बार मैं चौंक जाता हुँ. "कौन, कौन हो तुम?"
मुझे रिसीवर से ठहाकों की आवाज सुनाई देती है. मैं इनकमिंग नम्बर याद करता हुँ, तभी फिर से आवाज आती है, अपने गुर्गों के नाम बोल फटाफट!
गुर्गे? कौन गुर्गे?
अबे हम उनसे भी सवाल पुछेंगे! जल्दी बोल.
कोई गुर्गा नहीं है मेरा, साथी हैं.
हाँ, तो उनके नाम बोल.
रितेश कुमार
प्रिय रंजन झा
मनिषा
रविश कुमार
मान्या
लेकिन आपलोग क्या पुछने वाले हो?
तेरे को क्या करना है? अच्छा चल बता देता हुँ, उनतक खबर पहुँचा देना हिम्मत है तो!1. हिन्दी चिट्ठाकारी ही क्यों?समझ गया? बोल देना इनको कि फटाफट जवाब मांगता है, नहीं तो.... अबी ये बोल ये सब पहले से वोंटेड तो नहीं है?
2. जीवन में कब सबसे अधिक खुश हुए?
3. अगला जन्म मिले तो क्या नहीं बनना चाहोगे?
4. कौन सा चिट्ठा सबसे अधिक पसन्द है, क्यों?
5. हिन्दी चिट्ठाजगत के प्रचार प्रसार में क्या योगदान दे सकते हैं?
हों तो भी फिर से पकड लो, मेरे बाकि के सारे साथी गिरफ्तार हो चुकें हैं, आप हो कौन, ये वकील का नम्बर आपके पास कैसे आया?
हा हा हा, अबे सिम निकालना बडी बात नहीं है, पर आवाज की नकल करना बडी बात है, मानता है ना?
मैं अपना पसीना पोंछता हुँ, और रिसीवर में से आ रही ठहाकों की आवाज़ सुनता हुँ. तभी एक महिला की धीमी आवाज सुनाई देती है, "श्रीश, बस हो गया टेप, फोन रख".
क्लीक...... और सब शांत.
मुझे यह शांति अच्छी नहीं लगती, जरूर कोई तुफान आने को है!!!
23.2.07
मुझे हिन्दु होना पसन्द नहीं!
दृश्य 3
दृश्य 4
दृश्य 5
बाबरी का ढांचा गिरा दिया गया है. सूरत शहर दंगो की लपटों में जल रहा है। बच्चा मुस्लीम बहुल मौहल्ले में रहता है।
उसका परिवार शहर छोडकर जाना चाहता है, उसके पिता डरते हैं। बसो और ट्रेनों से लोगों को उतारकर जलाया जा रहा है।
एक तरह से उनका परिवार सुरक्षित है। वे लोग जिस अपार्टमेंट में रहते हैं वो मुसलमान का है, और रहने वाले सभी हिन्दु हैं, इसलिए हिन्दु और मुसलमान दोनों उसे नहीं जलाएंगे.
बच्चे के पिता उसे अखबार नहीं पढने देते, पर वो चोरी छिपे पढ लेता है। गुजराती अखबारों का धन्धा जोरों पर है, वे एक सम्प्रदाय और दुसरा सम्प्रदाय ऐसे नहीं लिखते. वे सिधे सिधे लिखते हैं इतने हिन्दु और इतने मुसलमान। कल पास के पांडेसरा इलाके में मुसलमानों के टोले ने मजदूर हिन्दुओं के घरों को जला दिया था और महिलाओं के साथ... .... बच्चा अखबार बन्द कर देता है।
वे लोग रात को सो नहीं पाते, लोगों की चीखें सुनाई देती हैं। कई दमकल की आवाजें, पुलिस के सायरन सुनाई देते हैं। बच्चा गली में देखता है, कर्फ्यु लगा है, सेना का फ्लेग मार्च होने वाला है।
रात को वो जागा हुआ है, उसे डर लग रहा है। इतना डर की उसे हनुमान चालीसा भी याद नहीं आ रहा!
इतने में उसकी छोटी बहन चीख के साथ जाग जाती है। वो बुरी तरह से डरी हुई है।
बच्चा पुछता है: क्या हुआ?
बच्ची: वो मुझे मार डालेंगे.
बच्चा: कौन?
बच्ची: इमरान.. .. वो लोग.... मुझे बहुत डर लग रहा है भैया... अफसाँ ताली बजा रही थी... भैया....
वो बच्चे से लिपट जाती है, बच्चा थर थर काँपता है और जार जार रोता है। वो अपने बडे भाई को याद करता है, जो असम में रहते हैं।
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- उपर लिखे सारे दृश्य वास्तविक हैं, थोडा भी काल्पनिक नहीं है।
- वो बच्चा और कोई नहीं "मैं" खुद हुँ।
- उसकी छोटी बहन खुशी है, जिसे आप तरकश पोडकास्ट पर सुनते हैं।
- इमरान आजकल भरूच के पास अंकेलेश्वर में रहता है, और इलेक्ट्रोनिक्स की दुकान चलाता है। उसे शायद अब अपने भारतीय होने का अहसास हो गया है। मैने उससे बरसों पहले बोलचाल बन्द कर दी थी।
- मैं खुद को हिन्दु नहीं मानता, मुझे हिन्दु कहलवाना ही पसन्द नहीं है। अगर हुडदंग मचाते बजरंगी, गंगा को अपवित्र करते नंग धडंग पंडे, अघोरी, देवदासी प्रथा चलाने वाले, ऊँच नीच में मानने वाले हिन्दु हैं तो मुझे हिन्दु पसन्द नहीं हैं।
- अगर हर आधे घंटे में फतवे निकालने वाले, मदरसों मे जहर उगलने वाले मौलवी, औरतों के मुँह पर कोडे मारते तालिबानी, लोगों का जीना हराम करने वाले कट्टरपंथी मुसलमान हैं तो मुझे मुसलमान भी पसन्द नहीं है।
- मैं भारतीय हुँ जैसे शुएब भारतीय है। मैं खुश हुँ। बस!!
यह मानना (http://mohalla.blogspot.com/2007/02/blog-post_22.html) कि अत्याचार सिर्फ अल्पसंख्यकों में बहुसंख्यक मुसलमानों के साथ होता है, गलत है।
15.2.07
पातालभैरव: सत्ता की चासनी
[अगर आप पातालभैरव सिरीज के नए पाठक हैं तो पहले पात्र परिचय पढें]
अन्धेरी दुनिया में कहीं.....
दाऊ इमरीत वो कार्य कर रहा था जो उसकी नजर में जीने के लिए नियाहत जरूरी था, वो पी रहा था.
छोटा वकील: लंगडे का सुना...
दाऊ: क्या सुनना है, बोल दे...
वकील: जीत गया स्साला... सुना है मुंसीपाल्टी जीतने वाली पार्टी को समर्थन भी देगा..
दाऊ: कित्ते है एम.एल.ए.?
वकील: पता नहीं पर कुछ तो होंगे नही तो समर्थन किसका देगा?
दाऊ: हट.... फिर रौब झाडता फिरेगा अपने को, यह स्साली सत्ता भी उसके जैसी होती है, लंगडी!
वकील: लंगडी?
दाऊ: हाँ लंगडी, कभी ठीक से नहीं चलती दो चार बैसाखीय़ाँ लेगी तो भी गिर जाएगी...
वकील: ह्म्म्म, ना दाऊ, सत्ता नहीं, सत्ता चलाने वाले लंगडे होते हैं! देखो... कितनों के कन्धे पर हाथ रखते हैं, कितनी बैसाखीय़ाँ बगलों में ठुंसे घुमते हैं, फिर भी स्साला सर पर इतना बोझ होता है कि गिर जाते हैं।
दाऊ: ऐसा!! तो ये लंगडा भी गिरेगा क्या?
वकील: वो तो पहले से ही गिरा हुआ है, वो क्या गिरेगा?
दाऊ: हा हा हा, गिरा हुआ लंगडा, वो तो अमृतांजन के सामने चुरण पर गिरता है।
वकील: अस्सल नेता है, जनता के सामने ईमानी छोड बेईमानी पर गिरता है। नहीं..
दाऊ: सही बोलता है तु, और जनता अपना थोबडा नहीं खोलती...
वकील: काइको दाऊ, स्साला चुप क्यों रहने का?
दाऊ: क्योंकि जनता अमृतांजन जैसी है, उसको पता है कि वो नाम का राजा है, अस्सल सत्ता किसके पास है? लंगडे के पास, लंगडा भले लंगडा है पर नेता वही है।
वकील: और चुरण "सत्ता" है?
दाऊ: हाँ, वही सत्ता है, उसीको पाने की लडाई है। वो वास्तव में रखैल है!
वकील: नेता की?
दाऊ: नहीं, ताकत की! सत्ता ताकत की रखैल होती है, वकील... समझा?
वकील: मुझे तो वो चासनी जैसी लगती है?
दाऊ: कौन? चुरण?
वकील: (आँख मारते हुए) सत्ता!
दाऊ: चासनी बोले तो?
वकील: बडी मिठी होती है, कितना भी चाटो पियास बुझती ही नहीं!
दाऊ: तो स्साला.. पी जाने का, मेरे जैसे... हीक..
वकील: नहीं... सत्ता चासनी है दाऊ, चाटो तब तक ठीक है, पी जाने से डायबिटीस हो जाता है।
दाऊ: हा हा हा, लंगडा खूब जानता है, सत्ता चाटता है, पीता नहीं....
वकील: अस्सल नेता... स्साला!
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अन्धेरी दुनिया का दुसरा छोर... (लंगडा लवली और चुरण देवी)
चुरण: तु रोज आता है, अमृतांजन को पता चला तो दोनों को मारेगा।
लंगडा: पता है उस्कु, पण पहले खडा होना तो सिख ले फिर ना मारेगा!
चुरण: (चौंक कर) पता है उसको? फिर कुछ बोलता क्यों नहीं?
लंगडा: हट... पता है बुढवु को, वो खाली रबड स्टेम्प है, असली स्टेम्प पेपर मइ है..
चुरण: हट नफ्फट, तो उसको सलाम काइको बजाता है, ठोक दे मौका देखके...
लंगडा: बावळी है तु, अपने को काइको टेंशन लेने का, नाम उसका ही रखो, पण सेवा का मेवा अपने को खाने का.. समझी!!
चुरण: अस्सल नेता... स्साला!
10.2.07
समय के साथ चलो, नहीं तो...
समय के साथ चलना कितना जरूरी है?
बेतुका सवाल है ना? सब जानते हैं आज कि तेज भागती दुनिया में समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा, नहीं तो...... भूला दिए जाओगे! सिम्पल.
याहू को बात समझ नहीं आ रही लगता है:
7.2.07
नारद मुनि का शाप
मै उल्टी सिधी हरकतें करने में उस्ताद हुँ। इसबार नारदमुनि चपेट में आ गए... सुबह सुबह मैने अपनी तीन दुकानें बन्द कर दी... क्या करें, कुछ में गिराहिकी नहीं थी, कुछ में इंवेस्टमेंट इतना था कि लुटिया डूब गई थी.
खैर पहले यह बता दुँ कि मैने जो तीन दुकाने जो बन्द की वो थी -
1. मैरे कैमरे से : क्या करें साहब, वो इटली वाले अंकल ने ऐसी विलायती दुकान खोल रखी है कि अपने तो गराहक के ही वान्दे हो गए... फिर सिन्धी ताऊ भी फोटु खिंचने लगे हैं तो अपनी तो फोटु खिंच गई.. लगा दिया ताला भाई और क्या करते?
2. कल्पना कक्ष: इसपर एटोटाइज दिखाते थे, अब क्या है सोचा कि जब सुपर मार्केट तरकश खोल ही रखा है तो चिल्लर दुकान क्या चलाना.. तो अब तरकश पर देते हैं मिडिया मंतर और इस दुकान को देते हैं ताला.
3. पाठशाला: हाँ ये पाठशाला सही चीज थी, गराहिकी भी अच्छी थी, लोगबाग ईज्जत भी देते थे. लालाजी हाजिरी भी लगाते थे और मोनिटर भी बने हुए थे. फिर क्या है कि मास्साब इतने पचडो में फंस गए और ऐसी बन्दरगिरी करने लगे कि पाठशाला शिवपालगंज (राग दरबारी) के कोलेज जैसी होने लगी। तभी बिना मुँछ का पर तैवर वाला एक हरियाणवी मास्टर भी आ धमका. तो भैया हम तो गरदन नीची किए खिसक लिए.. और एकठो ताला छोड दिए कि भई लगा दो.
तो भई तीन दुकान बन्द. शांति. अहो आनन्दम आनन्दम.
लेकिन हमरे नारद मुनि तो फोगट में चपेट में आ गए. हमने दुकान बन्द करने कि सुचना तो दी ही नहीं उनको. बिचारे ढुंढते रहे हमको और दुसरी दुकानों तक गए ही नहीं. भई क्षमा चाहते हैं मुनिवर. लगे तो कोई शाप वाप ही दे दो, खुशी खुशी ले लेंगे.
पर आप लोग ऐसी गलती ना करिएगा. दुकान खोलो या बन्द करो, नारद मुनि को सूचित अवश्य करो.
6.2.07
पातालभैरवः >> काली दुनिया का इंट्रोडक्शन
कहते हैं इस जहाँ के बाद एक जहाँ और भी है!
उस जहाँ को जन जन जानता है और पहचानता है, क्योंकि वो एक ऐसी दुनिया है, जो अपने अन्दर कई रहस्यों और रोमांचो को और कई पीडाओं और षडयंत्रो को समेटे बैठी है... वो दुनिया पहले बहुत बडी थी. अब छोटी हो रही है... पर आज भी है और शायद कल भी रहेगी.
मेरी कहानी में यह पातालभैरव: है, वही जो अंग्रेजी में अंडर वर्ल्ड है।
इस दुनिया के पात्रों से मिलिए:
1. अमृतांजन मुदुलियार: साउथ के इस शहंशाह ने तस्करी को गुटखा समझकर अपनाया और इसकी लत के आगे नतमस्तक होकर पाताल तक जा पहुंचा... 60 के दशक में तो इसकी तुती बोलने लगी पर अब आर्थिक सुधारों के आते आते इसकी आर्थिक हालत दयनीय हो गई... और यह महाशय अब खर्चापानी की चिंता छोडकर सिर्फ चर्चा करते हैं।
2. दाऊ इमरीत: इसको बडा "भाई" बनने का शौख था, तो इसको भाईलोग दाऊ कहने लगे... यह दारू को इमरीत (अमृत) कहता है, जो इसका उपनाम बन गया. कभी अमृतांजन का दायां बायां कोई सा हाथ होता था, फिर उससे कन्नी काटकर अपनी अलग चर्चाएँ चलाता है।
3. छोटा साजन: बडा दिलफेंक है तो लोगबाग साजन कहते हैं। माँ बाप के लाड प्यार ने छोटे को बडा नहीं होने दिया. कभी दाऊ का दायाँ बायाँ हुआ करता था, अब अमृतांजन के पीछे लगा है।
4. छोटा वकील: इसने मुन्नाभाई के अमर तरीके से एल.एल.बी. की डिग्री सर्वोच्च अंको के साथ पास की, लेकिन आई.पी.एस. अभी भी इसके लिए "इतनी पिला दे साकी" से ज्यादा कुछ नहीं है. काले कपडे तो मुफीद नहीं आते तो दाऊ के साथ चर्चागिरी किया करता है।
5. लंगडा लवली: लंगडा लवली लंगडा नहीं है और लवली भी नहीं है। इसका नाम पहले करूण था, पर ओमकारा से इंसपायर होकर लंगडा हो गया। ये भाईसाहब इंसपायर होने के शौखिन हैं, कुछ बरस पहले पंडितजी से इंसपायर होकर इसने गान्धीटोपी अपनाई थी, आजकल अपनी गली के कुत्ते से इंसपायर होकर अमृतांजन के आगे पीछे घुमता है।
6. साबु सलीम: ये दुबई रिटर्न है, इसलिए इसका बडा नाम है। दिखने में साबु जैसा तो नहीं है पर साबुन जितना चिकना घडा है, दाऊ के साथ चर्चागिरी उसे मनमाफिक लगती है।
7. चूरणदेवी: कहते हैं अमृतांजन इसे बीहड से उठाकर लाया था, पर रखने की जगह नहीं मिली तो भटकने छोड दिया। पर यह अमृतांजन के पीछे लगी रहती है।
8. टमाटर मक्खन: लोग इसे इस नाम से क्यों पुकारते हैं, वो तो पता नहीं पर इसे टमाटर के सलाद में मक्खन मिलाकर खाना बडा पसन्द है। कभी टाइगर हुआ करता है, पर आजकल मेमना हो गया है तो दाऊ के साथ चर्चागिरी करता है।
ये लोग क्या बातें करते हैं.... अन्दर की बात जल्द ही बाहर आएगी।
(मेरा मोहल्ला और बन्दर सिरीज की अपार सफलता के बाद, :) आपके चहेते (स्वम्भू) लेखक पंकज उर्फ शांतिभाई की नई सिरीज)
5.2.07
खुशी की खिचडी (Podcast)
खुशी की बात है कि, तरकश की PJ (Podcast Jockey) मध्यांतर के बाद लौट आई हैं, और पका रही है नई खिचडी...
आप भी भोग लगा सकते हैं. यहाँ क्लीक करें.
1.2.07
सिडनी शेल्डन का देहांत
मेरे पसन्दिदा क्राइम फिक्शन लेखक सिडनी शेल्डन का कल देहांत हो गया।
सिडनी के द्वारा लिखी गई हर उपन्यास को मैने पढा है, उनकी सहज शैली का मैं कायल रहा हुँ।
उनकी अंतिम कृति उनकी आत्मकथा (The other side of Me) को पढकर मुझे अहसास हुआ था कि अगर आदमी चाहे तो क्या नहीं कर सकता।
जमीन से उठकर सिडनी ने जो मुकाम हासिल किया वो प्रशंषा के काबिल है।
उनके धारावाहिक "आई ड्रीम ऑफ जीनी" मेरा पसन्दिदा धारावाहिक था और मेरे जैसे कई अन्य लोगों का भी।
सिडनी के जाने से साहित्य के क्षैत्र में क्या क्षति हुई होगी यह तो मै नहीं जानता, पर मेरे लिए तो व्यक्तिगत क्षति जैसा है। मै उनके अगले उपन्यास का बेसब्री से इंतजार कर रहा था, जो अब नही आएगा।