28.7.08

ऐसा भी कोई देश होता है?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

कैसी विडम्बना है... शनिवार दोपहर को मैं श्री विश्वनाथ, जो कि बंगलुरू मे रहते हैं और नुक्कड के सक्रीय सदस्य और कई हिन्दी चिट्ठाकारों के प्रिय टिप्पणिकार हैं, को फोन मिलाता हुँ कि वे कैसे हैं.

वे बताते हैं कि बंगलुरू के ब्लास्ट साधारण थे. सिर्फ डराने के लिए थे. कुछ भी नहीं हुआ सब ठीक है.

हम थोडी इधर उधर की बाते करते हैं और फिर वार्तालाप समाप्त होता है. उसके बाद हम ऑफिस मे चर्चा करते हैं कि यार सब जगह ब्लास्ट होते हैं, हमारे यहाँ क्यो नही होता, ऐसा क्या है? इस बात में मजाक भी होता है, घमण्ड भी होता है.

लेकिन थोडी देर बाद जो होने लगता है वो कल्पना से परे होता है. 20 धमाकों के साथ अहमदाबाद सबसे बडे सिरियल ब्लास्ट का अनुभव करता है.

घमण्ड चकनाचूर हो चुका है.

अब दो बडी पार्टियाँ एक विशेष कानून और एक विशेष एजेंसी के लिए लड रही हैं. लेकिन ईच्छाशक्ति और कठोरता कही नजर नही आ रही. ऐसा भी कोई देश होता है?

Labels: , ,