21.5.07

आलोक पुराणिक जी अब तरकश में भी

जब से मैने तरकश स्तम्भ पर लिखना शुरू किया, मंतव्य को जैसे भूला ही दिया था. खैर आज सोचा क्यों ना एक पोस्ट इस पर भी लिखी जाए.

और इससे बेहतर क्या होगा कि इस पोस्ट का सदुपयोग इस जानकारी के लिए करूँ कि सर्वप्रिय आलोक पुराणिकजी अब तरकश के लिए भी लिख रहे .

उनका गुदगुदाता व्यंग्य यहाँ पढें.

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