Joomla Hacks स्थानांतरीत
मित्रों,
मेरा जूमला हैक्स चिट्ठा अब एक विभाग के रूप में तरकश के मूल पोर्टल पर ही उपलब्ध होगा.
सहयोग के लिए धन्यवाद.
जब चाहा, जो लिखा
मित्रों,
लिनक्स गुरू, रचनाकार और सदैव युवा! रवि रतलामी तरकश हॉटलाइन पर खुशी के साथ. साथ में सुनिए रविजी की पत्नी रेखाजी से हुई मुलाकात के भी कुछ अंश....
Labels: podcast
हे बॉब,
यह क्या हुआ? ये ठीक नहीं.
बॉब क्रिकेट के सबसे आधुनिक कोच में से थे. उन्होने 6 साल दक्षिण अफ्रिका के लिए कोचिंग की थी, और नए और आधुनिक प्रयोग करके टीम को शिखर तक पहुँचाने मे मदद की थी. उसके बाद वे पाकिस्तान के कोच बने. कथित रूप से सबसे अधिक फीस वसूलने वाले बॉब तेज तर्रार कोच थे.
लेकिन सिर्फ एक कोच के किए कुछ नही होता. पाकिस्तान की हार की सारी जिम्मेदारी बॉब की नही
है. टीम के स्लेकशन और मैदान पर की रणनिति सिर्फ कोच की नही होती.
बॉब इस शर्मनाक हार का हिस्सा जरूर थे, पर यह जिम्मेदारी उनको अंतिम पथ पर ले जाएगी ऐसा नही सोचा था.
यह ठीक नही हुआ बॉब. जिन्दगी ऐसे नही गँवाई जाती. जिन्दगी को खेल और खेल ही को जिन्दगी क्यों बनाया आपने?
Labels: cricket
हँसी आ रही है क्या शिर्षक पढकर?
तरकश की नवीन गतिविधीयाँ :
एन.डी.टी.वी. इन्डिया के शो “गुगली” को कभी कभार देखता हुँ. वैसे तो कुछ खाश नहीं है, पर पहले प्रस्तोता अफशाँ अंजूम को देखने के लिए देखता था, अब उसे वेस्ट इन्डिज भेज दिया गया है तो सिद्धु की शायरीयाँ सुनने के लिए देख लेता हुँ.
आज सुबह जब देख रहा था तो हँसने का बहाना भी मिल गया. कल एक मैच हुआ था श्रीलंका और बर्मुडा के बीच. उसकी रपट देने के लिए प्रस्तोता अशिमा खान (शायद यही नाम था) ने कहा कल श्रीलंका ने जिम्बाब्वे को रौन्द दिया. हमें हल्की सी हँसी आ गई पर फिर सोचा लाइव कार्यक्रम है, हो जाती है गलती कभी कभी.
फिर तो हद हो गई, क्योंकि उसके बाद मैच की रिपोर्ट दिखाई गई, जो कि पहले से तैयार की गई होती है. उसमें इनका सवांददाता बोले श्रीलंका ने आयरलेंड को बुरी तरह से हराया.
अब तो खिलाखिला कर हँसी आनी ही थी. भई लाइव नही सम्भाल सकते तो रिकोर्डेड तो सही सही दिखाओ!
परसों एन.डी.टी.वी. 24 7 पर मोदी का इंटरव्यु भी आया था. एंकर श्रीनिवासन जैन और मोदी के बीच का वार्तालाप देखने लायक था. खाशकर जैन का बारबार अप्रिय सवाल पुछना और मोदी का मुस्काना. जैन के पैंतरे और मोदी के कटाक्ष अच्छे थे.
खुशी ने फोन लगाया कानपुर और फाँसा फुरसतियाजी को...
सबके चहेते और प्रसिद्ध हिन्दी चिट्ठाकार फुरसतियाजी ने खुशी से बात की तरकश हॉटलाइन पर. उनके साथ साथ उनकी पत्नी श्रीमती सुमन शुक्ला ने बताई कुछ राज की बातें...
पुरा वार्तालाप सुनने के लिए यहाँ जाएँ : tarakash Hotline
पहले से कहे देता हुँ भाई, लम्बा भी हो सकता है, अरूचिपूर्ण भी हो सकता है, इसलिए कटना है तो अभी से कट लो.
मन की पीडा को शांत करने का सर्वोत्तम उपाय अब हम सबके पास है, चिट्ठा लिखो और शान्ति की गेरेंटी पाओ. अब भगवान के द्वार कौन जाए, यहीं समाधान मिल जाता है. है कि नहीं...
मेरे पीडीत मन को भी मिल रहा है लिखते समय.
आज नारद कितना अच्छा लग रहा है, शांत, कितनी विविधता पूर्ण पोस्टें.. सुकून मिलता है.. अब शांति है राहत है...
मैं भी मेरे मन को शांत कर लुं, बेहतर है....
भाषाई ज्ञान:
एक बार बन्दर सिरीज में मैने लिख दिया था, “फटती है”. बडी भूल कर दी थी. मेरे भाषाई ज्ञान पर सवाल उठ खडे हुए. साहित्यिक भाषा की दुहाई दे दी गई. मुझे बडी ग्लानी हुई मेरी लेखनी पर.
उन्मुक्तजी के लेख का तो ऐसा असर हुआ मुझपर कि मैने बन्दर सिरीज लिखना ही छोड दी.
पर अब समय बदल गया है. नई सुबह आ गई है. और लोकतंत्र विकसित हुआ है. अब “चुतिया” और उसके समकक्ष शब्दों का प्रयोग भी किया जा सकता है... दादा ने चर्चा ही चर्चा में ऐसा रामबाण चूरण खिलाया है कि अब किसीको (आर.एस.एस. वालों को भी) मन्दाग्नि होने का कोई चांस नहीं, भाई.
काश वो पहले ही खिला देते... नहीं......?
अपनी एक चौथाई सदी की जिन्दगी में मैने मेरे (हमारे) लिए इतनी उपमाएँ नहीं सुनी जितनी चिट्ठाजगत में आने के बाद सुनी. हा हा हा हा...
कभी मैं मेलोड्रामिक हो जाता हुँ, कभी मोदी भक्त, कभी आर.एस.एस. वाला, बिना सिंग का चौपाया हुँ, सखी सम्प्रदायी भी हुआ हुँ...
वाह, मैं कृतार्थ हुआ. इतनी उपमाएँ मिलने के बाद अब मुझे भारत रत्न क्यों ना दे दिया जाए?
भाई मुझे या तो इंसान रहने दो या लगे तो बन्दर ही बना दो. कोई एक फीगर तो रखो.. है कि नहीं... वैसे भी बुद्धिजीवी इंसान होने से बन्दर होना अच्छा है मेरे लिए. क्यों?
हाय मैं गुजराती:
यह एक और मुसिबत है. गुजरात में रहना, और गुणगान गाना. लोगबाग कहते हैं आप मोदी के गुजरात के, कोई कहे गान्धी के गुजरात के, कोई कहे तु गुजराती, कोई कहे सिर्फ गुजरात के....
यार ये क्या मोदी गुजरात – गान्धी गुजरात किए रहते हो... गुजरात एक प्रदेश है. ना तो मोदी की बपौती है ना गान्धी की बपौती है. नहीं है ना?
एक बात सोचो मेरे भाई, गांधीजी को बापु किसने बनाया? देश की जनता ने बनाया ना? तो मोदी को भी मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता ने ही तो बनाया है. खुद थोडे ही चढ बैठा है. जनता को नहीं मजा आएगा तो उतार फेंकेगी कुर्सी से और क्या! दिल्ली बैठे आपका पेट काहे कुलबुलाता है? लगे तो चूरण खा लो भाई, मन्दांग्नि शांत हो जाएगी.
कटाक्ष:
कटाक्ष करते रहते हैं कि मैं मोदी समर्थक हुँ. लो सुन लो भाई, हाँ हुँ. आज हुँ.
मेरे जैसा लगभग हर गुजराती युवा मोदी का समर्थन करता है, क्योंकि यहाँ आई.टी, इंफ्रास्ट्रक्चर, और रोजगार का विकास हुआ है. भ्रष्टाचार कम हुआ है. कल को कोई भ्रष्टाचार का मामला या और कोई पहलु सामने आया तो अपने नहीं करेंगे समर्थन, नही देंगे वोट. कल की गेरेंटी नहीं है. किसी और को भी चुन लेंगे. वैसे भी नेता का परमानेंट सपोर्ट मूर्ख ही करेगा. मोदी कोई तोप थोडे ही है!!
सो बात की एक बात:
मेरा मन कहता है मुझसे – अब शांति है, शांत रहो.. मौज करो.
और कुलबुलाए कीडा तो चिंता नहीं. नारद अब परिपक्व है. चाहे जितना “चुतियापा” करो, चाहे जितनी फाडनी है फाडो, चाहे जितना पक्षपात करना है करो, वाट लगाओ, खाट खडी करो...
नाम तुम्हारा आज भी है, कल भी रहेगा. पर मेरे भाई आज सदनाम है, कल बदनाम हो जाओगे.
जरा सोचो, क्या पाओगे?