28.1.06

एक चिट्ठी देशी स्पाइडरमेन के नाम

अमरीका की गोथम कोमिक ने भारत के लिए special Spiderman को launch किया है. अंग्रेज spiderman का नाम Peter Parker है तो भारतीय spiderman का नाम "पवित्र प्रभाकर" रख दिया. मैनें लगे हाथो हमारे अपने spiderman को चिट्ठी लिख डाली. वो आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हुँ.

प्रिय पवित्र प्रभाकर,


यही तुम्हारा वास्तविक नाम है ना, चिंता ना करो मै किसीसे नहीं कहुंगा.

कैसे हो? उम्मिद है खैरियत से होगे. होना ही पडेगा ना, अब चाचा चौधरी बुढे हो चले है, हमारे नये रखवाले तो तुम ही हो.


कब से तुम्हारी बाट जोह रहा था मैं, कँहा चले गये थे. देखो ना, देश के बच्चों को तुम्हारे अमरिकन गोरे भाई से काम चलाना पडता था. क्या नाम है उनका, हाँ Peter Parker! तुम्हारे पिताजी निसंदेह बडे ही विद्वान थे. एक बेटे को States में रखा, एक को हिन्दुस्तान में (मुझे यकिन है तुम दोनों भाई कुंभ के मेले में नहीं बिछडे होंगे). पर यार एक बात समझ मे नहीं आई, एक बेटा गोरा-एक काला कैसे हुआ?

तुम्हारे पिताजी सचमुच मे उस्ताद थे. देखो ना बेटों को US और अपने India मे रखने का फायदा. एक देश दुनिया का बाप है और दुसरा शायद होने की तैयारी में है. यानि दोनो हाथों मे लड्डु. दोनो देशो मे गुंडे मवालीयों की कमी नहीं है, धंधा अच्छा चलेगा. बुरा मत मानना भाई, तुम्हारे काम को, मेरा मतलब है समाजसेवा को धंधा कहा. क्या करूं, वुरे वुरे ख्याल आते हैं. गुंडे मवाली इस देश में पहले भी थे, आज से ज्यादा थे. पहले ही आ जाते. अरे अंग्रेजों के जमाने मे ही आ जाते तो नाहक ही इतनी जानें जाती. स्साला अकेले तुम ही सलट लेते.


पर भाई सच बताना इतनी लेट क्यों कि आने में? अहा, अब समझा. यार हम गरीब थे ना! गरीबों का कौन खैवनहार होता है? बस भगवान भरोसे चलता है. मूड मे हो तो नैया पार लगा दे नहीं तो वैसे भी दो चार मरेंगे तो देश का भला ही होगा. आबादी बहुत बढ चली है ना. जाने दो. वैसे सच सच बताना तुम्हारे गोरे बाप को जब लगने लगा कि हम भी नोट छापने लगे है, तो तुमको यहाँ नई ब्रांच आफिस खुलवा दी ना? देखो अब रूठ ना जाना, अपना तो ऐसे ही चलता है, दिल पे नही लेने का.


चलो कोई और बात करते हैं. यार तुम्हारी कोस्ट्युम कुछ जची नही. देखो तुम्हारा गोरा भाई कितना स्मार्ट लग रहा है.


है ना स्मार्ट, और एक तुम हो....



ए भाई, ये धोती क्यो पहनी ली. बुरा मत मानना पर बडी uncomfortable रहेगी fighting मे. सच्ची. तुमको क्या है, experience नही है. उछलते कुदते खुलने का भी खतरा है. यार हम युहीं मान लेते तुम देशी हो. धोती तो आज का बच्चा पहनता ही नही है.


वैसे तुम्हारा बापु भी उँची नोट है भाई. धोती बडी कमाल की बनाई है. देखो ना, कभी ओरिजनल लगती है, कभी ममि जैसी पट्टीयों वाली हो जाती है, और लो देखो कभी तो Skin Tight भी हो जाती है.




ये फार्मुला हमे भी दो ना. मेरे नानाजी को काम आयेगा. दादाजी को भी आता पर क्या करे तुम ईतना लेट आये, वो तो अब late हो गये.


बाकि सब कुशल मंगल है. तुम्हारी चाची को प्रणाम एवं तुम्हारी नई गर्लफ्रेंड मीरा जैन को प्यार.


- तुम्हारा,
पंकज बेंगानी


पुनश्च: ये Merry Jane और मीरा जैन भी बहनें हैं क्या? नहीं मेरा कोई interest नही है इसमे, just ऐसे ही, जाने दो.

कुछ हल्का फुल्का - 3

१. धरमसिंह को बडी मजबुरी के साथ ही सही आखिरकार इस्तिफा देना ही पडा.
क्या करें साहब, अपने धरम पाजी शरिर से कुछ ज्यादा ही ठीक है ना. एक बार कुरशी पर धँस गये तो उठना तो भारी पडता ही है ना.

२. आमिर खान की "रंग दे बसंति" हिट हो रही है.
बढिया है, "मंगल पांडे" फ्लोप होने के बाद आमिर की भी एक "सिमा" आ गयी थी, पर यह फिल्म चल रही है तो एक आशा कि "किरण" दिखाई दी है.

३. उमा भारती ने कहा,"BJP चालीस चोरों की पार्टी है. मेरी पार्टी एक पारदर्शी पार्टी होगी.
सहि है, सो चुहे खाकर बिल्ली हज को चली.

. मैने नारद में पाँच बार एन्ट्रि मार दी, तो जितुजी की वोर्निंग आ गयी. हम क्षमाप्रार्थी हुए पर अमित भाई को कुछ ज्यादा ही तकलीफ हो गयी.
भाईसाहब आप तो नारद से संभंधित ही नही है. तो इसे क्या कहें, "बेगानी शादि में अब्दुला दिवाना"

26.1.06

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ

आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.
Happy Republic Day

24.1.06

गुजरात भूकंप के पाँच साल के बाद

क्या कोई तबाही किसी के लिए वरदान साबित हो सकती है? शायद ही कोई होगा जो ईस बात का समर्थन करेगा. पर कभी कभी अनहोनी नई संभवनाओं को जन्म दे देती है.

हमारे प्रदेश मे यही हुआ है. पाँच साल पहले आये विनाशक भूकंप मे गुजरात का कच्छ जिला पूरी तरह से तबाह हो चुका था. कयास लगाये जाने लगे थे कि अब शायद ही किसीमे हिम्मत बचेगी कि यँहा फिर से घर बसा सके. जान माल का भारी नुकशान हुआ था. गाँव के गाँव शमशान घाट मे बदल गये थे. अहमदाबाद पर भी कहर बरपा था. मुझे याद है वो मँजर. शायद कभी भूल नही पाउँगा. मै दौड कर नीचे आ रहा था. सडको पर लोग भाग रहे थे. सडक की Street Light बुरी तरह झुल रही थी. मैने देखा कि सामने वाली बहुमंजिला इमारत पर दरारें पड रही थी. अचानक मेरे पास खडी मेरी साथी बेहोश हो कर गिरने लगी. मै उसे थामने लगा पर मेरे भी पाँव लडखडा गये और हम दोनों गिर पडे. मेरा मोबाइल बंद हो चुका था. अचानक जोर से धमाका हुआ. मैने देखा दूर एक इमारत ढह रही थी. मैने घबराकर आँखे बंद कर ली. मेरे पीछे से तड तड की आवाजे आ रही थी. एक शुटकेश के शोरूम का सामान गिर रहा था. हम एक जर्जर इमारत के नीचे ही खडे थे. मैने प्रार्थना की, कहीं यह हम पर ना गिर जाए. एक बुजुर्ग व्यक्ति जोर जोर से चिल्ला रहा था. मुझे लगा उनको दिल का दौरा पडने वाला है. धरती से निकलती वो भयानक आवाजे याद आते ही आज भी पसिना छुट जाता है. यह सब कुछ ५० सेकेन्ड तक चला. फिर घडियाँ रूक गयी. ८ बज कर ५० मिनट. गुजरात तबाही की कगार पर आ गया था. पर यह् तो सिर्फ शुरूआत थी. असली चुनोती तो आगे आने वाली थी.

गुजरात को फिर से खडा होना था क्योंकि हिम्मत हार जाए वो गुजराती ही क्या.

गुजरात फिर से खडा हो चुका है. भुज, गांधीधाम, भचाऊ, अंजार, अहमदाबाद तबाही से उठ कर विकास की मिसाल पेश कर रहे है. कुछ महिनो पहले गांधीधाम जाने का मौका मिला. मै उत्साहित था कि भुकंप के कुछ अवशेष, कुछ निशानीयाँ शायद देख पाऊँ. पर मै गांधीधाम पहुचँ कर हैरान रह गया! वहाँ तो कुछ अलग ही तस्वीर थी. शानदार सडके, शोपिंग मोल्स, नई नई होटले और खुशहाल लोग. मैने अपने क्लाईंट को; जिनसे मिलने मै गया था; को पुछा तो उन्होने कहा," भूकंप तो एक तरह से वरदान लेकर आया था. हाँ जानहानी तो हुई पर सारे के सारे गाँव और शहर सुनियोजित तरिके से बस चुके है. लोग खुश है. जानहानी ना हो तो भगवान करे ऐसे भुकंप हर दस साल मे आने चाहिए." गांधीधाम की सडके विश्वस्तर की है. कहते है, नया भूज तो और भी अच्छा है. रास्ते मे मैने देखा भचाऊ, अंजार भी फिर से खडे हो चुके है. भूकंप का ना तो डर है ना ही नामोनिशान. अहमदाबाद भी विकास की नई ऊँचाईयों को छू रहा है (इसके बारे मे विस्तार से लिखुंगा).

इसे क्या कहेंगे? गुजरातीयों की हिम्म्त और आत्मविश्वास, गुजरात सरकार की कार्यकुशलता, लोगों का सहयोग ... और क्या.

हर बार - हर बार गोधरा का रोना रोने वालों को मेरी सलाह है आप गुजरात मे आकर रहकर देखिए. आपको भी ईस जमीँ से प्यार हो जाएगा.

मत भूलिए भारत ८ प्रतिशत GDP मे गुजरात का कितना योगदान है. गुजरात की GDP १५ से उपर है.

22.1.06

कुछ हल्का फुल्का - 2

मेरा पहला हल्का फुल्का section पढने के लिए धन्यवाद. अब मैं हर सप्ताहांत को यह section लिखुंगा. पेश है आज का हल्का फुल्का टुचका:

(१) मल्लिका शेरावत ने कहा है कि वे अब गंभीर फिल्मो मे अभिनय करेंगी.
अभिनय करेंगी? चलो अच्छा है कुछ तो करेंगी! अब तक तो सिर्फ "दिखाती" थी!!

(२) एक भविष्य मे घटने वाली घटना-
रिपब्लीकन पार्टी ने कोन्डोलिसा राइस को राष्ट्रपति पद क उम्मिद्वार घोषित कर दिया. कोन्डोलिसा ने डेमोक्रेट उम्मिद्वार हिलेरी क्लिंटन को फोन घुमाया.
कोन्डोलिसा : "जीत मेरी ही होगी. मै अश्वेत हुँ, महिला हुँ और मेरे पास अनुभव भी है. तुम्हारे पास क्या है?"
हिलेरी : "मेरे पास बिल क्लींटन है. जो महिला चुनावों मे मेरा साथ देगी उसे बिल के साथ डेट पर जाने का मौका मिलेगा."
कहना ना होगा चुनावों मे निर्विवाद कौन चुनी गयी.

(३) एनकाउन्टर स्पेश्यालिस्ट दया नायक के पास करोडों की अवैध संपत्ति मिली.
अब इसे क्या कहेंगे? एनकाउन्टर स्पेश्यालिस्ट या एकाउन्ट स्पेश्यालिस्ट?

19.1.06

कुछ हल्का फुल्का

बहुत बार युंही बैठे बैठे कुछ टुचके बना लेता हुँ. कई बार भैया को सुनाता था, कई बार भूल जाता था. अब जबकी मेरा हिन्दी ब्लोग हो गया है तो सोचा क्यों ना आप सब के साथ ही हँस बोल लूं. पेश है कुछ टुचके:

(१) देव साहब ने अपनी नई फिल्म में बताया कि आदर्श प्रधानमंत्री कैसा होता है. ईसमें उन्होने यह भी दिखाया कि कैसे हमारे फिल्मी प्रधानमंत्री यानी कि देव साहब खुद एक विदेशी पत्रकारा को चुँबन करते है.
"धत तेरे की" - यही सोचा होगा ना अटलजी ने. यह फिल्म पहले क्यो नही बनाई. यह तो पता ही नही था.

(२) हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते है " We should be Bold!!".
अरे गुरूजी, पहले खुद तो Bold हो जाओ. रोज सुबह १० जनपथ से तो आपकी Good Morning होती है. मेडम की इजाजत के बगैर फाईल नहीं हिलती, देश कैसे चलेगा?

(३) अटलजी ने लाल किले की प्राचीर से कहा था " २००७ तक भारत चाँद पर पहुँच जाएगा".
अब भारत का तो पता नहीं पर आजकल अटलजी खुद ईद का चाँद हो गये है, दिखते ही नहीं. NDA की हार के बाद राजनिति से सूर्यास्त हो ही गया था, अब Retirement की विधिवत घोषणा के बाद चंद्रास्त भी हो गया है.

13.1.06

हम विकास के हकदार ही नहीं

हमारे शहर में मेरे घर के पास रंगरोगन हुआ, मै वहाँ से गुजरा और विकास होता देख बहुत खुश हुआ. तभी एक महाशय वहाँ से गुजरे और नइ नवेली सफेद पट्टीयों को बिगाड कर चले गये, जबकी पास ही खाली जगह थी निकलने की. बडा गुस्सा आया. हम लोगों को परवाह ही नही है.
कहते है नगरपालिका सफाई नहीं सखती और तभी पान की पीक भी मार देते है. कहते है ट्रेनो मे कितनी गंदगी है और तभी नास्ता करके प्लेट भी वहीं गिरा देते है. यहाँ वहाँ थूकना तो आम बात है. कचरे के डिब्बे के पास कुडा डाल देते है पर डिब्बे मे नही डालते.
हम लोगो मे जागृति का अभाव है. पुलिस ना हो तो ट्राफिक सिग्नल तोड देते है. हम खडे रहे, हमारी लेन खुलने का इंतजार करे तो यूँ घुरते है कि जैसे कोई गुनाह कर लिया हो. सोचता हूँ, क्या हम विकास के हकदार है भी?

11.1.06

आज के दौर का प्रेमचंद कौन?

बचपन से आज तक हिन्दी साहित्य की बात आने पर जो नाम हम सुनते आये हैं वे हैं प्रेमचंद, हरिशंकर परसाइ, महादेवी वर्मा, महाश्वेता देवी, निराला, केदारनाथ इत्यादि. पर उनका एक युग था जो बीत चुका है. शायद आखिरी कडी स्व. शिवानी थीं, पर लगता है जैसे एक खालीपन आ गया है. क्या आज के आधुनीक युग में कोइ भी नहीं है जो इनकी कमी को पुरा कर सके? क्या यह कमी युँही खलती रहेगी? कौन है आज के दौर का प्रेमचंद? सोचता हूँ पर उत्तर नहीं मिल पाता है.

10.1.06

Namskar

मै, पंकज बेंगानी, संजयजी का अनुज हूँ. मै आज तक अंग्रेजी मे लिखता था. पर आप लोगों से प्रभावित होकर एवं मेरे भ्राताश्री के प्रोत्साहन से हिन्दी मे भी ब्लोग लिखना शुरू कर रहा हूँ. मेरा अंग्रेजी ब्लोग www.chhavi.co.in/pankaj पर है

- पंकज बेंगानी