याद आया आज़मगढ
उत्तरप्रदेश का आज़मगढ सुर्खियों मे है और कुछ उत्साही मीडियाकर्मी इस शहर या प्रदेश को आज़मगढ की बजाय आतंकगढ कह रहे हैं.
इसके लिए भले ही इन मीडियाकर्मियों की भ्रत्सना हो रही है, लेकिन वे उतने गलत भी नहीं है. मुझे लगता है कि आजमगढ आज से नहीं काफी पहले से ही आतंकगढ बना हुआ है.
आज से कोई 15-16 साल पहले जब मैं छोटा था तक हमारी एक पडोसी (हिन्दू) हुआ करती थीं जिनका बचपन आजमगढ में गुजरा था. वे वहाँ की बातें बताया करती थी, कि किस तरह वे लोग डर डर कर रहते हैं. आजमगढ में हर समय खौफ का माहौल रहता है. बाजार में से निकलने मे डर लगता है. और लडकियों के लिए तो वहाँ जीना एकदम दूभर है.
आज इतने साल बाद ये बातें फिर से याद आई है क्योंकि आजमगढ आतंकवादियों का केन्द्र बताया जा रहा है और इंडियन मुजाहिद्दीन के पकडे गए लगभग हर आतंकवादी की जन्मभूमि/कर्मभूमि रहा है.
पिछले दिनों दिल्ली ब्लास्ट से संबंधित खबर पर दी गई प्रतिक्रियाओं को पढते समय एक व्यक्ति की टिप्पणी की तरह ध्यान गया जो आजमगढ से है. उन्होने बताया कि कैसे यहाँ पीसीओ जाल फैला हुआ है और विदेश से पैसा मंगाया जा रहा है. हवाला का एक बहुत बडा नेटवर्क स्थापित है.
सच वही जान जा सकता है जो वहाँ रहा हो अथवा रह रहा हो. मैं कभी आज़मगढ गया नहीं इसलिए सिर्फ सुनी सुनाई बातें ही लिख सकता हूँ. लेकिन मुझे यकीन है कि सबकुछ यदि गलत नही है तो सबकुछ सही भी नही है.
कुछ लोगों को लगता है कि उन्हे सताया जा रहा है, उन्हे यह समझना होगा कि पीडित तो हम सभी हैं. पूरा देश है.