29.9.08

याद आया आज़मगढ

उत्तरप्रदेश का आज़मगढ सुर्खियों मे है और कुछ उत्साही मीडियाकर्मी इस शहर या प्रदेश को आज़मगढ की बजाय आतंकगढ कह रहे हैं.

इसके लिए भले ही इन मीडियाकर्मियों की भ्रत्सना हो रही है, लेकिन वे उतने गलत भी नहीं है. मुझे लगता है कि आजमगढ आज से नहीं काफी पहले से ही आतंकगढ बना हुआ है.

आज से कोई 15-16 साल पहले जब मैं छोटा था तक हमारी एक पडोसी (हिन्दू) हुआ करती थीं जिनका बचपन आजमगढ में गुजरा था. वे वहाँ की बातें बताया करती थी, कि किस तरह वे लोग डर डर कर रहते हैं. आजमगढ में हर समय खौफ का माहौल रहता है. बाजार में से निकलने मे डर लगता है. और लडकियों के लिए तो वहाँ जीना एकदम दूभर है.

आज इतने साल बाद ये बातें फिर से याद आई है क्योंकि आजमगढ आतंकवादियों का केन्द्र बताया जा रहा है और इंडियन मुजाहिद्दीन के पकडे गए लगभग हर आतंकवादी की जन्मभूमि/कर्मभूमि रहा है.

पिछले दिनों दिल्ली ब्लास्ट से संबंधित खबर पर दी गई प्रतिक्रियाओं को पढते समय एक व्यक्ति की टिप्पणी की तरह ध्यान गया जो आजमगढ से है. उन्होने बताया कि कैसे यहाँ पीसीओ जाल फैला हुआ है और विदेश से पैसा मंगाया जा रहा है. हवाला का एक बहुत बडा नेटवर्क स्थापित है.

सच वही जान जा सकता है जो वहाँ रहा हो अथवा रह रहा हो. मैं कभी आज़मगढ गया नहीं इसलिए सिर्फ सुनी सुनाई बातें ही लिख सकता हूँ. लेकिन मुझे यकीन है कि सबकुछ यदि गलत नही है तो सबकुछ सही भी नही है.

कुछ लोगों को लगता है कि उन्हे सताया जा रहा है, उन्हे यह समझना होगा कि पीडित तो हम सभी हैं. पूरा देश है.

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13.9.08

सोचता हुँ अब फिर से टहला जाए

आजकल मुझे अपने दिल की बडी चिंता लगी रहती है. नहीं कहीं लगा तो नही है, और चांस भी नही है क्योंकि हम तो लगवाने के लिए चाहे कितने भी लालायित क्यों ना हो, पर कोई “रिसिवर” भी तो होना चाहिए.

दिल की चिंता स्वास्थ्य संबंधी है. सोचता हुँ कहीं कोलेस्ट्रोल बढ तो नही रहा है. डरता हुँ कहीं बुढापे में परेशानी ना खडी हो. कोलेस्ट्रोल की तो छोडिए, अभी एक नया टेंशन और मिल गया है. वह यह कि बुढापे मे याददास्त कमजोर होने के चांस बढ गए हैं.

फिर यह खबर पढी, तो सोचा कि अब पैदल चलना फिर शुरू करना चाहिए. पहले सुबह मॉर्निंग वॉक करने जाता था. पर फिर बंद कर दिया. कुछ आलस भी था, कुछ “मोटीव” भी जाता रहा. मोटीव यह कि – गर्मियों की छुट्टियाँ खत्म होने के बाद से छुट्टियाँ मनाने आई पास पडोस की लडकियाँ घर वापस चली गई, वे वॉक करने आती थी तो जी लगा रहता था.

लेकिन अब लगता है वॉकिंग फिर से शुरू करनी पडेगी और नया “मोटीव” ढुंढना पडेगा. स्वास्थ्य डरा तो सकता है पर “मोटीव” नहीं बन पा रहा. लेकिन कुछ तो करना पडेगा.

Nobody can go back and start a new beginning, but anyone can start today and make a new ending - - Maria Robinson

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