गरबा गाथा :: "आवाज़ दे कहाँ है?"
कल की बात है। अहमदाबाद नवरात्रि के रंग में डुबा हुआ है। अब मौसम पुरे शबाब पर है। और कल का दिन खाश था। खाश इसलिए क्योंकि कल यहाँ के प्रसिद्ध कर्णावती क्लब में गरबा के लिए जाने का कार्यक्रम था। और कार्यक्रम का कैसे क्रियाक्रम हो गया यह देखिए...
हम लाव लश्कर के साथ कर्णावती क्लब के लिए निकले। लश्कर बडा था। मैं, पत्नी, भैया, भाभी, खुशी, उत्कर्ष, पडोसन, इसके अलावा मामाजी का परिवार (वो तो आने ही थे, आखिर आयोजक मण्डल के सदस्य जो हैं), भैया के साले साहब, और साले साहब के भी साले साहब भी लश्कर में थे। इसके अलावा बेकहेंड सपोर्ट के लिए दो तीन पडोसी, खुशी की सहेलियाँ, रवि कामदार और पूजा (पत्नी) की सहेली और उसके पतिदेव भी आने वाले थे।
सोचा था धूम मचाएंगे, हालाँकि शरीर तो हरि किर्तन कर रहा था। फिर भी उम्मिद पर दुनिया कायम है। खैर आगे क्या विडम्बना हुई ये देखिए:
भारतीय कार्यप्रणाली का अनुसरण करते हुए हम रात 10.15 तक क्लब पहुँचे। गरबे शुरू हो चुके थे। भीड की धक्कामुकी के बीच घुसते घुसाते लॉन तक जा पहुँचे। लगा जैसे किला फतह हो गया। पर जल्द ही मस्ती फुर्र से उड गई और फिर गडबड घोटाला शुरू हुआ। नजरें घुमा कर देखा तो सब गायब। कोई किधर कोई किधर। 30 - 40 हजार लोगों के हुजुम के बीच कहाँ ढुंढे।
मैरे साथ भैया, खुशी और उत्कर्ष रह गए। मैं खुबसुरत लडकियों को देखने के अति महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त होने ही वाला था कि मुझे दूर खडी पूजा नज़र आ गई और मै धरातल पर आ गया। देखा तो वो भाभी के साथ नर्तकीयों को निहार रही थी और फिराक मे थी कि कौन से ग्रुप मे घुसकर कमर हिलाई जाए?
अचानक पीछे मुडकर देखा तो उत्कर्ष गायब। भैया ढुंढने निकले। इतने में खुशी की सहेलीयाँ गायब। अब खुशी अपने मोबाइल पर शुरू हो गई - अरे कहाँ हो? यहाँ आओ ओर्केस्ट्रा के पास वाली स्क्रीन पर.. हाँ हाँ राइट ... नही उसके लेफ्ट।
उसकी लेफ्ट राइट लेफ्ट मेरी धडकने बढाने लगी... मोबाइल का बिल.. मोबाइल का बिल.. मोबाइल का बिल..
गोल घुमकर देखा तो उम्मिद के मुताबिक मेरा हमउम्र मामा भी गायब। कोई आश्चर्य नही... रवि भी गायब।
इतने में मैरा घुमतु बजा... पूजा की सहेली और उसके पति और उनके.... को अन्दर आना है और उनके "पास" मैरे पास हैं। मैने कहा आता हुँ... पर जाऊँ कैसे? सूरत की बाढ की तरह बहते इनकमींग लोगों के बीच धारा को काटकर क्षितिज तक पहुँचना आसान थोडे ही है। एक असफल कोशीश की.. हार गया। फोन किया इंतजार करें पहुँच रहा हुँ। आधे घंटे बाद भैया के साथ मिलकर एक और कोशिश की और उनको अन्दर ले आए।
उत्कर्ष उम्मिद के मुताबिक फूड कोर्ट पर मिला। उसने वादा किया कि वो वहीं अपने दोस्तों के साथ रहेगा.. आखिर क्यों ना रहे... चिटोस है.. पिज़ा है... घर में लगे ना लगे बाहर तो भूख लगती ही है।
मैने पूजा की सहेली से कहा...पूजा को ढुंढना व्यर्थ है.. अच्छा हो आप अपने हिसाब से इन्जोय करें। अब 12 बजने वाले हैं। लाउडस्पीकर पर ताला लगने वाला है।
मैरी टांगे तो बिना नाचे ही कराहने लगी थी, और मैं फूड कोर्ट के लॉन पर ढेर हो गया। फिर भैया ने भी जोईन कर लिया। फिर खुशी अपनी सहेलीयों के साथ आ गई... वे लोग आखिरकार मिल ही गए थे। फिर पूजा और भाभी भी आ गए। मैने पुछा, कैसा रहा डांस? ... जवाब मिला - डांस? अरे क्या डांस ... हम तो मामीजी को ही ढुंढते रहे। अब जाकर मिले हैं जब 12.15 हो गए और गरबे ही खत्म हो गए।
इतने मे भैया के साले साहब मिल गए - अरे जीजाजी कहाँ थे आप? हम तो ढुंढते ही रहे... पुरे दो चक्कर लगा चुका हुँ।
फिर साले के साले साहब आ गए और उनकी भी वही कहानी - अरे जीजाजी कहाँ थे आप? हम तो ढुंढते ही रहे... पुरे दो चक्कर लगा चुका हुँ।
अंत तक रवि और मामा तो मिले ही नहीं।
ना नाचे... ना झुमे... ना लाइन मारी...
हरि किर्तन करते वापस आ गए। बस एक ही गाना गाया - "आवाज़ दे कहाँ है?"