28.9.06

गरबा गाथा :: "आवाज़ दे कहाँ है?"

कल की बात है। अहमदाबाद नवरात्रि के रंग में डुबा हुआ है। अब मौसम पुरे शबाब पर है। और कल का दिन खाश था। खाश इसलिए क्योंकि कल यहाँ के प्रसिद्ध कर्णावती क्लब में गरबा के लिए जाने का कार्यक्रम था। और कार्यक्रम का कैसे क्रियाक्रम हो गया यह देखिए...

हम लाव लश्कर के साथ कर्णावती क्लब के लिए निकले। लश्कर बडा था। मैं, पत्नी, भैया, भाभी, खुशी, उत्कर्ष, पडोसन, इसके अलावा मामाजी का परिवार (वो तो आने ही थे, आखिर आयोजक मण्डल के सदस्य जो हैं), भैया के साले साहब, और साले साहब के भी साले साहब भी लश्कर में थे। इसके अलावा बेकहेंड सपोर्ट के लिए दो तीन पडोसी, खुशी की सहेलियाँ, रवि कामदार और पूजा (पत्नी) की सहेली और उसके पतिदेव भी आने वाले थे।

सोचा था धूम मचाएंगे, हालाँकि शरीर तो हरि किर्तन कर रहा था। फिर भी उम्मिद पर दुनिया कायम है। खैर आगे क्या विडम्बना हुई ये देखिए:

भारतीय कार्यप्रणाली का अनुसरण करते हुए हम रात 10.15 तक क्लब पहुँचे। गरबे शुरू हो चुके थे। भीड की धक्कामुकी के बीच घुसते घुसाते लॉन तक जा पहुँचे। लगा जैसे किला फतह हो गया। पर जल्द ही मस्ती फुर्र से उड गई और फिर गडबड घोटाला शुरू हुआ। नजरें घुमा कर देखा तो सब गायब। कोई किधर कोई किधर। 30 - 40 हजार लोगों के हुजुम के बीच कहाँ ढुंढे।

मैरे साथ भैया, खुशी और उत्कर्ष रह गए। मैं खुबसुरत लडकियों को देखने के अति महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त होने ही वाला था कि मुझे दूर खडी पूजा नज़र आ गई और मै धरातल पर आ गया। देखा तो वो भाभी के साथ नर्तकीयों को निहार रही थी और फिराक मे थी कि कौन से ग्रुप मे घुसकर कमर हिलाई जाए?

अचानक पीछे मुडकर देखा तो उत्कर्ष गायब। भैया ढुंढने निकले। इतने में खुशी की सहेलीयाँ गायब। अब खुशी अपने मोबाइल पर शुरू हो गई - अरे कहाँ हो? यहाँ आओ ओर्केस्ट्रा के पास वाली स्क्रीन पर.. हाँ हाँ राइट ... नही उसके लेफ्ट।

उसकी लेफ्ट राइट लेफ्ट मेरी धडकने बढाने लगी... मोबाइल का बिल.. मोबाइल का बिल.. मोबाइल का बिल..

गोल घुमकर देखा तो उम्मिद के मुताबिक मेरा हमउम्र मामा भी गायब। कोई आश्चर्य नही... रवि भी गायब।

इतने में मैरा घुमतु बजा... पूजा की सहेली और उसके पति और उनके.... को अन्दर आना है और उनके "पास" मैरे पास हैं। मैने कहा आता हुँ... पर जाऊँ कैसे? सूरत की बाढ की तरह बहते इनकमींग लोगों के बीच धारा को काटकर क्षितिज तक पहुँचना आसान थोडे ही है। एक असफल कोशीश की.. हार गया। फोन किया इंतजार करें पहुँच रहा हुँ। आधे घंटे बाद भैया के साथ मिलकर एक और कोशिश की और उनको अन्दर ले आए।

उत्कर्ष उम्मिद के मुताबिक फूड कोर्ट पर मिला। उसने वादा किया कि वो वहीं अपने दोस्तों के साथ रहेगा.. आखिर क्यों ना रहे... चिटोस है.. पिज़ा है... घर में लगे ना लगे बाहर तो भूख लगती ही है।

मैने पूजा की सहेली से कहा...पूजा को ढुंढना व्यर्थ है.. अच्छा हो आप अपने हिसाब से इन्जोय करें। अब 12 बजने वाले हैं। लाउडस्पीकर पर ताला लगने वाला है।

मैरी टांगे तो बिना नाचे ही कराहने लगी थी, और मैं फूड कोर्ट के लॉन पर ढेर हो गया। फिर भैया ने भी जोईन कर लिया। फिर खुशी अपनी सहेलीयों के साथ आ गई... वे लोग आखिरकार मिल ही गए थे। फिर पूजा और भाभी भी आ गए। मैने पुछा, कैसा रहा डांस? ... जवाब मिला - डांस? अरे क्या डांस ... हम तो मामीजी को ही ढुंढते रहे। अब जाकर मिले हैं जब 12.15 हो गए और गरबे ही खत्म हो गए।

इतने मे भैया के साले साहब मिल गए - अरे जीजाजी कहाँ थे आप? हम तो ढुंढते ही रहे... पुरे दो चक्कर लगा चुका हुँ।

फिर साले के साले साहब आ गए और उनकी भी वही कहानी - अरे जीजाजी कहाँ थे आप? हम तो ढुंढते ही रहे... पुरे दो चक्कर लगा चुका हुँ।

अंत तक रवि और मामा तो मिले ही नहीं।

ना नाचे... ना झुमे... ना लाइन मारी...

हरि किर्तन करते वापस आ गए। बस एक ही गाना गाया - "आवाज़ दे कहाँ है?"

25.9.06

नवरात्रि :: "रबर" की बिक्री जोरों पर

नवरात्रि का पर्व कई मायनों में अद्भूत है। दुनिया का सबसे लम्बा चलने वाला यह नृत्य महोत्सव अब गुजरात के बाहर भी अपनी पहचान बना चुका है।

यहाँ गुजरात में तो इस पर्व का उतनी ही बेसब्री से इंतजार किया जाता है, जितनी की पुराने जमाने में औरतें अपने परदेश गए पति का किया करती थी। बच्चे बुढे सभी नवरात्रि के माहौल में रंगे नजर आने लगे हैं। पर शायद जिनको इस त्यौहार की महत्ता का सबसे अधिक अन्दाज है वो है युवा वर्ग।

युँ तो गुजराती समाज काफी आधुनिक होता है, तथा युवा लडकों एवं लडकीयों पर अंकुश कम ही लगाया जाता है, पर नवरात्रि के आते आते तो बाकी की सारी वर्जनाएँ भी भंग होने लग जाती है।

आजकल सुबह होने पर अगर अहमदाबाद के युनिवर्सिटी इलाके में निकला जाए तो कोंडोम के खाली पैक बिखरे दिख जाते हैं, जब तक सफाई कर्मचारी उन्हे उनके नियत स्थान तक ना पहुँचा दें।

पहले नवरात्रि के त्योहार के बाद डोक्टरों की चाँदी हो जाती थी क्योंकि तब गर्भपात कराने के लिए लडकीयों का तांता लगा रहता था, पर अब युवाओं मे जागृति आने लगी है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक आजकल इस सिज़न में कोंडोम की बिक्री 50 प्रतिशत तक बढ गई है। अब तो लडकीयाँ भी दवाई विक्रेताओं की दुकान में जाकर कोंडोम खरीदने पर शर्माना छोड चुकी है, जो ठीक भी है।

कई स्वयंसेवी संस्थाएँ इसबार प्रमुख गरबा केन्द्रो पर अपने अपने स्टॉल भी लगा रही हैं, जहाँ उनके स्वयंसेवक युवाओं को एड्स के खतरे से अवगत कराएंगे तथा उससे बचाव के तरिके भी बताएंगे। यह वाकई में अच्छी पहल है। इसके अलावा मोबाईल पर एम.एम.एस. के द्वारा भी एड्स एवं उससे बचाव सम्बन्धि सन्देश प्रसारीत किया जा रहा है।

इस मौसम का भरपूर फायदा उठाने के लिए कोंडोम उत्पादक कम्पनीयाँ कई सारी आकर्षक योजनाएँ भी लेकर आ गई हैं। उनका उद्देश्य भले ही अपने उत्पाद की अधिकाधिक बिक्री करना हो पर इससे युवाओं मे अपनी सुरक्षा को लेकर समझ तो बढी ही है।

22.9.06

आज मैं एक साल का हो गया

नमस्कार चिट्ठाजगत,

आप सब के बीच आज मैं एक साल का हो गया हुँ। आप सब यानि हमारा चिट्ठाजगत का परिवार। इसमें सारा समुदाय सम्मलित है, हिन्दी के चिट्ठाकार भी और अंग्रेजी के चिट्ठाकार भी।

आज से एक वर्ष पहले मैने अपना पहला ब्लोग I, me and Myself शुरू किया था। और आज के दिन ही पहली पोस्ट भी लिखी थी।

हालाँकि हिन्दी चिट्ठाजगत में मेरा पदार्पण तीन महीने बाद यानि की 28 जनवरी को हुआ था, पर मैने ब्लोग लिखना आज से ही शुरू किया था।

आज एक वर्ष के बाद मैं अपने आपको आप सब के बीच अनुग्रहीत महसुस करता हुँ, आपने मुझे जो प्यार और सम्मान दिया वो मैं जिन्दगी भर नही भूल सकता। मै आपके बीच एक अनुज के रूप में, कभी मित्र के रूप में और कभी मास्साब के रूप में मौजुद रहा और आपने हमेंशा मुझे प्रोत्साहीत किया, मैरा साथ दिया।

मैने आप लोगों से बहुत सीखा है। मार्गदर्शन लिया है।

एक वर्ष के दौरान अमित गुप्ता और नीरज दिवान से जी भर कर बहस की है, जितुजी को जी भर कर तंग किया है, सागर भाईसा को जी भर कर उलाहना दिया है (प्यार से ही सही) :-) , निधिजी से जी भर कर बेसिर पैर की बातें की है, ई स्वामी से जी भर कर ज्ञान लिया है, समीरलालजी को जी भर कर फालतु की कविताएँ सुनाई है... और ना जाने क्या क्या।

एक वर्ष का सफर कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला। आप के सहयोग और प्रेम ने मुझे हमेंशा कुछ नया करने की प्रेरणा दी है।

आज लगता है, एक नया सफर शुरू हुआ है। हिन्दी चिट्ठाकारीता को नए मुकाम तक पहुँचाना है, नए लोगों को प्रोत्साहन देना है, हिन्दी प्रचार प्रसार को बढावा देना है और एक अदम्य लक्ष्य भारत को सुपर पावर बनाने में जितना हो सके उतना योगदान देना है।

आज जिम्मेदारीयों का अहसास होता है, नहीं जानता मैं लायक हुँ कि नहीं।

पर जो जानता हुँ वो यह कि मैं आप सब का ऋणी हुँ।

9.9.06

हैप्पी बड्डे ताऊ :: Happy Birthday Jituji

ओये ताऊ, हैप्पी बड्डे!!

जुग जुग जीयो...

इसमें हम लोगों का इच्च तो भला है ना! नारदमुनी किधर कु जाना नी मांगता है, क्या!!!

एक केक भी एटेच करेला है। खाने का और तरकशीयों का थेंकु बोलने का। ही ही....


8.9.06

अहमदाबाद के मुसलमान और वन्दे मातरम का गान

कल वन्दे मातरम को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्विकृत करने के सो साल पुरे हुए थे और पुरे देश में इसे पुरी आत्मीयता के साथ गाया गया था।

जहाँ कोंग्रेस शासित प्रदेशों में इसे गाना वैकल्पिक था, वहीं भाजपा शासित प्रदेशों मे अनिवार्य था। मिडिया और लोगों के आश्चर्य के बीच इस बार नरेंद्र मोदी की तरफ से कोई बयान नहीं आया। वैसे भी वो मुँह बन्द ही रखते हैं! लेकिन अविश्वसनीय बात यह थी कि गुजरात के सभी स्कुलों तथा मदरसों में केन्द्र सरकार का ही नोटीस दिया गया जिसमें वन्दे मातरम का गान करने की बात थी, अगर चाहें तो!!

आखिर कल यहाँ हुआ क्या?

लगभग सभी मदरसो तथा अल्पसंख्क (हालाँकि मैं मुस्लीमों को अब अल्पसंख्यक नहीं मानता) मुस्लीमों की विद्यालयों में वन्दे मातरम गाया गया। कोई विरोध नहीं!!

विद्यालयों की तो छोडिए.. जुहापुरा जो भारत की सबसे बडी मुस्लीम बस्ती है, वहाँ भी सैंकडों लोगों ने जमा होकर वन्दे मातरम गाया।

आम मुस्लीम लोगों के कुछ बयान देखिए:

"हम दिखाना चाहते हैं कि हम वन्दे मातरम गा सकते हैं, मुसलमान कम राष्ट्रभक्त नहीं हैं"

"इस तरह का जब भी कुछ होता है, हम उलझन में फँस जाते हैं। यदि विरोध करें तो गद्दार हो जाते हैं और विरोध ना करें तो फतवे बीच में आ जाते हैं।"

"मैं जानता हुँ कि फतवे इस समस्या की जड हैं। कुछ हिन्दुवादी ताकतें भी मौलिवीयों को उकसाती है"

"मैं जब विद्यार्थी था तब इसे गाता था, आज अपने विद्यार्थीयों को गवा रहा हुँ। कुछ धार्मिक नेता विरोध करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम गाएँ ही नहीं"

"हमारे माँ बाप ने हमेंशा हमें इसे गाने के लिए प्रोत्साहित किया है"


अंजुमन ए इस्लाम विद्यालय में वन्दे मातरम गाते छात्र

जुहापुरा (अहमदाबाद) में वन्दे मातरम गाते आम लोग

कल कोंग्रेस की सभा में वन्दे मातरम गाने के लिए ना तो मनमोहन सिंह मौजुद थे ना मेडम सोनिया गान्धी। नहीं उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठा रहा। भई बडे लोग हैं, कितना काम होता है। वन्दे मातरम गाया ना गाया क्या फर्क पडता है? वैसे इन नेताओं को यह गाना कितना याद है यह मैं कल समाचार चैनलों में देख चुका हुँ।
दुसरी बात - कल नरेन्द्र मोदी और उनकी केबिनेट ने तथा अधिकारीयों ने (जिनमें मुस्लीम भी थे) सम्पूर्ण वन्दे मातरम गाया था। गौर करें - सम्पूर्ण!!

6.9.06

वन्दे मातरम

हमारे इस महान राष्ट्रीय गान के सो साल पुरे हो जाएंगे कुछ देर बाद.....

कहते हैं इस गीत ने आज़ादी की लडाई के समय देश के नये खून में जोश भर दिया था, हमारी पीढी ने तो यह देखा नहीं। स्वतंत्र भारत में हमारा जन्म हुआ। पर सचमुच आज भी इस गाने को सुनते ही रगों में खून का बहाव तेज़ हो जाता है, आँखे भरने लगती है। कुछ बात तो है...!!!

पर इन फतवों के बादशाहों को कौन समझाए, जिनकी बुद्धि पर पत्थर पडे हैं!!

मैने जितु ताऊ की प्रेरणा से परिचर्चा पर वन्दे मातरम के चार विभिन्न विडियो रखें हैं, कि कोई एक लगा लो। मैं तो चुनाव नही कर पाया तो चारों रख रहा हुँ।

5.9.06

लो भाई, अब भारतीय भाषाओं में गुगल एडसेंस शुरू हो ही गई है

खबर बासी लग रही है क्या?

पर सही बात तो यही है ना कि गुगल एडसेंस तमिल में तो शुरू हो ही गया था पर हिन्दी में एकाध जगह झलक ही दिखला जाता था। दुसरी अन्य भाषाओं का तो अता पता ही नहीं था। हम कितना रोते चिल्लाते थे।

लो अब गुगल देवता ने हमारी सुन ही ली। कहते हैं ना प्रभु के द्वार देर है अन्धेर नहीं।

आज हम युँ ही भटकते हुए अपने अंग्रेजी चिट्ठे पर पहुँच गए तो दंग रह गए। ये क्या चिट्ठा अंग्रेजी और गुगल एडसेंस तो देखो!! हिन्दी तो है ही पर यार गुजराती भी!!!!



अब क्या कहें, अपनी तो बाछें खिल गई। चलो देर आए पर दुरूस्त आए। जय हो प्रभु!!

अरे ब्रेकिंग न्यूज : उर्दु भी !!



निरजबाबु देख रहे हो क्या?

3.9.06

छोटी सी बात!

आज सुबह लैटे लैटे ऐसे ही एक छोटी सी बात ध्यान में आई।

आम आदमी:

रोज कमाता है, रोज खाता है,
और सोचता है-
कल कैसे खाऊंगा!


देश का नेता:

रोज कमाता है, पर रोज खाता है,
और सोचता है-
कल क्या खाऊंगा!!