चौंकते क्यों हो? राजीव चौक यानि कनॉट प्लेस. अब समझ आया. कोंग्रेस के राज़ में देश में सब राजीव, इन्दीरा और सोनिया ही नज़र आएंगे ना?
आज ही लौटा हुँ कर्मभुमि. चार दिन दिल्ली का मेहमान था. मेहमान नवाज़ी के बारे मे तो खैर बाद में लिखुंगा. कल हमारी ब्लोगर मीट थी. अमित ने अपने ब्लोग पर सारा विवरण वैसे तो लिख ही दिया है. साथ ही एक फोटु भी चिपका दी है. अब मैं तो पहचाने में आउंगा ही. क्यों....
कल सुबह जब उठा या उठाया गया तो सर चक्रवात की तरह घुम रहा था. दिल्ली आने के बाद सो ही नही पा रहा था. ये शादी ब्याह आदमी का खुन चुस लेते हैं. खैर किसी तरह उठा तो याद आया आज तो कनॉट प्लेस ... सॉरी.... राजीव चौक जाना है. बन्धुजनों से मिलने. एक मन किया अमित से कह दुँ कि भाई अपनी तो टॆं बोल गई है. मै नही आ पाउंगा. फिर सोचा.. अरे यार मैं ही तो सेलेब्रिटी हुँ. जाना तो पडेगा ही. हा हा हा...
खैर अमित को फोनवा घुमाया. वो आया. हम उसके पीछे लपक लिए और चल दिए नई दिल्ली की ओर. बार बार घडी भी देखते थे. दिमाग में टाइम टेबल बना रहा था. कैसे भी हो 1 बजे तो निकल ही जाना है वापस घर को. भई ट्रेन पकडनी है 3 बजे की.
भरी दुपहरी में लाल होकर कैफेटेरीया पहुँचे तो भाटीयाजी पहुँचे हुए दिखे. :-)
हम बैठे और बतियाए.. गला सुख रहा था तो मैने वेटर से कहा.. भाई पानी पीला दे. उसने कहा "ऑनली मिनरल वॉटर सर". मैने कहा " वही पिला दे, चला लुंगा." मन किया कहुँ भाई ए.सी. भी चला दे. फिर सोचा कहीं असभ्य ना हो जाउँ.
तभी एक आदमी एकदम सामने आकर खडा हो गया. द नेम इज़ दिवान... नीरज दिवान. ग्लेड टु मीट यु. अहोभाग्य हमारे, आप आए.
मुझे लगा उलाहना देंगे. इंडिया टीवी स्टुडीयो क्यों ना आए. पर ना दिया और गर्मी पर हमारा निबन्ध सुनने से बच गए. पर मैरा नोएडा जाने का बहुत मन था. ना जा पाया. शायद फिर कभी.
हमने ब्लोगजगत पर चर्चा की. क्या है, क्यों है, आपने कब लिखना शुरू किया वगैरह वगैरह..
अचानक मैने घडी देखी तो होश उड गए. 1 तो बज गए थे. फिर तो सृजन शिल्पीजी भी आए. एक मित्र भी लाए. अमित ने फोटु शोटु भी खिंची. मै तो जबरदस्ती मुस्कुरा रहा था भाई. अन्दर से तो टेंशन में आ गया था. आज तो ट्रेन छुटी ही छुटी.
फिर अमित के पीछे बैठा. और अमित ने भगाया. मैने रास्ते में उससे कम से कम तीन बार पुछा, यार घरवाली को सिधा स्टेशन ही बुला लुं, अब तो लेट हो जाएगी. पर वो बोलता रहा, कोई गल्ल नहीं.
घर भी पहँच गया, स्टेशन भी और अहमदाबाद भी. सकुशल.
बहुत अच्छा लगा सबसे मिलकर. और सबसे बात कर... सबको जानकर...(जितना भी हो सका)
अमित: एकदम गुलाबजामुन जैसा गोलमटोल और स्वीट. उससे मिलकर लगा ही नही कि पहली बार प्रत्यक्ष मिल रहा हुँ . लगा जैसे बरसों से जानता हुँ. बातुनी बहुत है. वो बोलता है मै सुनता हुँ. एक बोलने में तेज. एक सुनने में.
भाटियाजी: उनको अंकल कहुँ तो शायद बुरा मान जाएँ. शांत और गम्भीर. बहुत कुछ कर गुजरना चाहते हैं. भगवान उनसे इत्तिफाक रखे तो अच्छा.
नीरज दीवान: मैने इनको जैसा पाया, वैसा नही सोचा था. सच्ची. पत्रकार हैं तो दाढी तो होनी चाहिए, थोडे बाल सफेद कर लो... और प्लीज थोडे बुड्ढे तो लगो यार. पर नहीं ये तो लगते ही नहीं. मैने इनकी आंखो में झांक कर देखा. कितने सवाल भरे हैं. पर हर सवाल पुछते नहीं. सोचते हैं पुछुँ, फिर चुप हो जाते हैं. इनकी आँखे बहुत बोलती है. ये हमारे इंसाइक्लोपेडीया हैं. इनका पुरा दोहन होना अभी बाकी है. उकसाइए और दुहते रहीए. :-)
सृजन शिल्पीजी तो एकदम सरकारी बाबु लगते हैं. अच्छी सी स्माइल लेकर घुमते हैं. इन्होनें हमें मिठाई दी. और घरवालों के लिए भी.
बस ऐसी रही मिटिंग और ये थे पात्र. एक मैं भी था. अब अपने बारे में क्या लिखुँ. या क्या क्या लिखुँ. हा हा हा.....