28.11.06

छ: बजे का "जेनुइन" सिक्सर :: तरकश ई-शिक्षक

नहीं आज दिमाग लेवल में है। गुस्सा नहीं हुँ। वैसे भी आप लोगों ने शांत आदमी शांत आदमी शांत आदमी कहकर मुझे ऐसा आदमी बना दिया है कि अब गुस्सा करते हुए भी शर्म आती है।

वैसे आज का सिक्सर जिनुइन है। आज तरकश पर ई-शिक्षक का प्रायोगिक संस्करण लगाया है। संजयभाई की दिमाग की उपज यह टुटोरियल एनिमेटेड है और आसान है तथा नए लोगों के काम आए ऐसा है (कम से कम मेरा तो ऐसा मानना है)।

यह फ्लेश पर बना हुआ है जो किसी भी प्लेटफोर्म पर चल सकेगा।

फिलहाल हमने वर्डप्रेस और ब्लोगस्पोट पर चिट्ठे कैसे बनाएँ यह रखा है। हाँ, फाइले थोडी भारी है। और डायलअप पर लोड होने में टाइम लगेगा। पर इस तरह के टुटोरियल में कुछ कर भी नही सकते, फिर भी कोशिश कर रहे हैं कि फाइलों को यथासम्भव हल्का किया जा सके।

आप मार्गदर्शन करें और कौन-कौन से टुटोरियल बनाने चाहिए? हिन्दी में कैसे लिखें इसपर काम चल रहा है।

25.11.06

ऐ ज़िन्दगी इतनी रायँगा तो ना जा

आज मुझे जावेद अख्तर का एक शेर याद आ रहा है:
ऐ ज़िन्दगी इतनी रायँगा तो ना जा
ना मिले मंज़िल कहीं तो पहुँचा दे।

आज मेरी जिन्दगी का एक और वर्ष खत्म हो गया और मुझे फिर मौका मिला और दस्तुर भी है कि मैं सोचुं कि क्या खोया और क्या पाया।

मेरे जैसे जीव को संतुष्टि आसानी से नही मिलती इसलिए बेहतर को और बेहतर करने की फिराक में ही रहता हुँ। एक बार मुझे संतोष हो जाए कि हाँ यह तो हासिल कर लिया कि दुसरे ही क्षण मन में चिंताएँ उभर आती हैं कि अरे अभी तो यह बाकि है। वैसे रवि ने सही लिखा है मेरे बारे में। कभी कभी मेरा उत्साह अति में भी बदल जाता है। पर यही उत्साह ही तो है जो प्रेरणास्रोत है हमारा।

कितनी छोटी जिन्दगी और कितने सारे काम हैं! और मैं जानता हुँ मैं सब नही कर पाऊंगा। कई काम रह जाएंगे मेरे पीछे भी।

बस एक बात तो तय है कि मैं रिटायर नहीं होने वाला। काम करता रहुंगा सारी जिन्दगी।

ख्वाब तो हजारो हैं पर एक इतना सा ख्वाब और है कि भारत को सर्व शक्तिमान राष्ट्र देखना है।


24.11.06

छ: बजे का सिक्सर >> मनमोहन बकरी है

सही में यार... मनमोहन सिंह हैं ना अपने प्रधानमन्त्री महोदय, वो एकदम बकरी जैसे हैं। पता नहीं क्यों पर कभी भोले भाले से नजर आते हैं और कभी तो मिमियाते हुए दिखते हैं। तो क्या कहा जाए उनको।
छोटा मुँह बडी बात तो कह दी है पर आखिर हक है मुझे, मै भी देश का 1.5 अरबवां हिस्सा हुँ और मेरे देश के नेता को बडा ही कमजोर सा पाता हुँ। छोटी बुद्धि है मेरी, पर हमारे जैसे इंसान को तो बाहरी आउटलुक ही नजर आता है ना। समझदार लोग कहेंगे वे विद्वान हैं, तो हम कहते हैं जरूर होंगे भाई। विलायती डिग्री भी है उनके पास तो। लेकिन गुरू आज के जमाने में ब्रांडिग का बडा महत्व है। और माफ किजीएगा प्रधानमत्री ब्रांडिग के मामले में तो पुरे फ्लोप हैं।

बडी चिढ चढती है मुझे। अब आंतकवाद ही ले लिजीए। ये गुवाहाटी में लुप्तप्रायः उल्फा सरकारी मेहरबानी से फिर जिंदा हो गया। दो चार पटाखे फोड डाले और हमारे नेता का धुएँ में दम घुटता है तो जाने कहाँ मुँह छिपा कर बैठ जाते हैं।

एक शीवराज पाटील है। गृहमंत्री कम फ्री मंत्री ज्यादा लगते हैं। उन्हे तो "उडनतस्तरी" में बैठकर ताली बजाने वालो की जमात में शामिल हो जाना चाहिए। उनका लीडर बनने की सारी औकात है उनमें।

और सुनिए एक अपने जसवंत साहब भी हैं। दो दिन पहले न्यूज चैनल पर व्यूज दे रहे थे कि सरकार को आंतकवादीयों से निबटना नहीं आता। हाँ भाई, इनसे सिख लो। सिखलो कि कैसे तालीबानीयों के पास थाली में रेवडियाँ बिछाकर ले जायी जाती है।

अपना देश स्साला सही में राम भरोसे चलता है। आज रवि ने मस्त बात बोली कि सिर्फ राम भरोसे नहीं 15% खुदा भरोसे, 5% इशु भरोसे और 0.5% महावीर भरोसे भी चलता है।

पर जिसके भरोसे चलना चाहिए उन्हे तो खुद पर भी भरोसा शायद ही होगा।

खुद से पुछकर देखिए आज हमारी औकात क्या है? बांग्लादेशी भिखारी तो हमारी लगाकर चले जाते हैं। एक माओवादी डिंगे हांककर चला जाता है। ड्रेगन धमकी देता है कि खा जाउंगा। कश्मीर सम्भलता नहीं। उल्फा पटाखे फोडता है। और लो अब अबु सलेम चुनाव भी लडेगा, बहुत सम्भव है हमारे भाईयों के सक्रीय सहयोग से जीत भी जाएगा। फिर वो कानुन बनाएगा। अफज़ल मजे मार रहा है।

हम भी क्या करते हैं? मेरे जैसे लोग शाम को थक हारकर अपने दुःख की भडास इसतरह से निकाल देते हैं बस। लेकिन जो ताकत है उसका इस्तेमाल हम कहाँ करते हैं। करते तो वोटींग परसेंटेज क्यों 40-50% रहता? वोट ही नहीं देते तो फिर सरकार को गाली भी क्या दें। फिर तो जितते रहेंगे चोर। और कोई बिना कभी पंचायत का चुनाव भी जीते प्रधानमंत्री बनता रहेगा।

कब तक? आखिर कब तक? कब बकरी दहाडना सिखेगी? या खाली नाम का सरदार ही बनी रहेगी।

भारत बकरी नही है, उसे शेर बनना है। दहाडना सिखना है, मिमयाने से चुहे भी नहीं भागते, कुत्ते क्या खाक भागेंगे।

15.11.06

पहले खुद तो कुछ करें

नीरजबाबु ने अपनी बात बहुत सही ढंग से रखी है।

पर उपाय भी तो बताइए। यहाँ हम सिर्फ सवाल ही सवाल खडे कर रहे हैं। हल कोई नहीं ढुंढता। जिस सरकार को ढुंढना चाहिए वो भी नहीं।

क्योंकि किसी की भी प्राथमिकता इन प्राथमिक समस्याओं को लेकर है ही नहीं।

मेरा अभी भी मानना है कि पाँच सितारा विद्यालयों के अस्तित्व में होने का असर सामान्य प्राथमिक स्कूलों पर नहीं पड सकता, बशर्ते सरकार की सोच मजबुत हो, और सरकारी विद्यालय स्तर के हों। यह हो सकता है पर होता नहीं। क्योंकि सरकारी शिक्षकों को पता है कि उन्हे कोई निकाल नही सकता चाहे पढाएँ ना पढाएँ।

यह मेरा निजि अनुभव रहा है, क्योंकि मेरी शिक्षा किसी पाँच सितारा अंग्रेजी विद्यालय में ना होकर सरकारी विद्यालय में हुई थी जहाँ शिक्षक होते थे, बस होते ही थे, करते कुछ नही थे।

पेयजल की समस्या भी दूर हो सकती है, पर कुछ करने का माद्दा तो हो पहले! वर्षा का पानी युँही बह जाता है, क्यों? इससे तो हमारे गाँववाले अच्छे थे, एक बुन्द भी व्यर्थ नहीं जाती थी। आज भी वहाँ वर्षा का पानी सिधे जमीन में बने कुण्ड मे जाता है। शहरों में होता है ऐसा?

सिर्फ विरोध करने से बात नही बनती। हम खुद क्या नेताओं से कम हैं जो सिर्फ भाषण देना जानते हैं। हम करते क्या हैं, समाज के लिए? कुछ नहीं।

पहले खुद तो कुछ करें। पूंजीपतियों की कारस्तानीयों, सरकार की नाकामीयों, वामपंथियों की नितियों, दक्षिणपंथीयों की फुलझडियों से निबट सकते हैं, पर क्यों ना हम यह सोचें की सार्थक क्या कर सकते हैं?

एक अनपढ को पढा नहीं सकते क्या हम? कम से कम अपनी सोसाइटी में पानी के अपव्यय को रोक नहीं सकते क्या हम? मार्ग में थुकने वाले को, कचरा फैलाने वाले को रोक नहीं सकते हम? पत्थर हटा नहीं सकते हम?

पहले खुद तो कुछ करें........

14.11.06

छः बजे का सिक्सर : लडाई झगडा माफ करो

भाई लडाई झगडा माफ करो और गान्धीजी को याद करो।

हम तो माफी मांगते हैं भाई, एक हमरे जैसे ठोकमठोक करने वाले बन्धु के बलोग पर टिप्पणी रूपी धुरन्धर प्रसाद चढा आये थे, वक्त था शाम के छ: बजे। ए ल्लो.. भाई पहले ही नही ना कहे थे कि छ: बजते ही हमरी खोपडीया में केमिकल लोचा स्टार्ट हो जाता है.. तो हम का करी?

चलो भाई सारी जात बिरादरी के सामने पंच परमेशर को हाजिर नाजिर मानकर हम छमा मांगते हैं, दिंल से, कोई सिक्सर नहीं।

अब कल रिपोटर भाई नीरज से वार्तालाप किए रहे..... अब वो भी ना .... हमको पकडे छ: बजे। लो हो गई रामकथा। लगा दिया सिक्सर.... वो बोले भाई देख कर लिखो जरा... बुरा लग जावेगा। बस खोपडी भभक गई हमरी। हम तो कह दिए जो जी में आवेगा हम तो कहेंगे। कोई हमरे भाईसाब को भी तो कहत रहा। हम काहे नही कहें। वो बिचारे का कहते, बोले ठीक है फिर जो जी में आए करो।

ब्रदर, हमको है ना सुबह रियालायज हुआ रहा, कि भाई लोचा है। खोपडी कूल तो मानी हमने भूल। हम काहे बुरे बने। हमतो क्यूट बोय ही अच्छे, है कि नहीं?

तो भाई हमसे भूल हुई तो छमा किज्यो। उ का कहते हैं मिच्छामी दुक्कडम।

13.11.06

गुगल टुलबार हिन्दी में उपलब्ध

गुगल टुलबार का आई. ई. और फायरफोक्स संस्करण अब हिन्दी में भी उपलब्ध है।

गुगल के अधिकारी इसे इंटरनेट को सर्व सुलभ बनाने के एक और प्रयास के रूप में देखते हैं।

इसे यहाँ से डाउनलोड करें।

10.11.06

छः बजे का सिक्सर

सबसे पहले तो भाई बता दुँ कि छः बजे का सिक्सर होता क्या है।

यह मेरा ईजाद किया हुआ जुमला है, जिसके पीछे एक थ्योरी है। छः बजे मेरी एक अवस्था होती है। दिन भर के काम, टेंशन और पक जाने के विभिन्न चरणों के पश्चात दिमाग का दही हो जाए तथा खोपडी मे अगडम बगडम चालु हो जाए तब छः बजे का सिक्सर सुझता है। इस समय अँट शँट बातें चलती है और भाषा भी थोडी नाकाबिले बर्दास्त और फुहड हो जाती है। आ हा हा... अपने को इस अवस्था में हिस्टोरीकल आइडियाज आते हैं।

ऐसा हर दिन हो जरूरी नही है, पर अमुमन हो यह नियति है।

आज का सिक्सर:

आज मेरी खोपडी में मन्नु घूम रहा है। बोले तो अपने प्रधानमंत्री। आहा.. क्या चाल है। कल न्यूज़ में चलते देखा था। क्या नज़ाकत है। और उनकी आवाज़ सुनी है क्या.. बोली भी बडी मीठी है यार... एकदम... .. जैसी। नहीं!!? की मैं झुठ बोलियाँ... ना जी.. :)

और उनके साथ सोनिया हो तो देख लो उनको भी.. क्या ठस है यार। असली प्रधानमंत्री तो वही लगती हैं। अब हकिकत तो सबको पता है, बोलने की जरूरत क्या है?

बात अपनी यह है कि प्रधानमंत्रीजी थोडा रोबदार हो तो वट्ट पडे ना। अपने तो यार बहुत नाजुक किस्म के हैं। सोलिड होना मांगता है। सज्जन हैं माना, ज्ञानी है वो भी माना, ईमानदार हैं सवाल ही नही है... बिल्कुल है, पर प्रधानमंत्री नहीं लगते। अब मैं कौन होता हुँ बेमतलब आग लगाने वाला। भाई बात यह है कि 150 करोड लोगों में से एक मैं भी हुँ ना यार। तो अपने को प्रधानमंत्री चुज़ करने का हक है कि नहीं। प्रत्यक्ष करने को मिले तो दि बेस्ट... पर ऐसा तो अमरीका वाले करते हैं। सिधा डायरेक्ट एंट्री।

अभी बोलो अपने देश में ऐसा हो तो? मज़ा आ जाए.. राष्ट्रपति प्रणाली हो तो।
चलो बोलो कौन केंडीडेट होगा।

नरेन्दर मोदी : ह्म्म... बापु गुजरात में तो कोई सामने खडा होने की हिम्मत करेगा नहीं। और महाराष्ट्र, राजस्थान भी फतह कर लिया समझो। पर बंगाल में कि होगा दस्सो... और साउथ भी... रहने दो भाई।

सोनिया : यु.पी. ले ले... बिहार दिया... साउथ भी चल दिया... पर गुजरात.. ही ही ही

मुलायम : यु.पी. बस बहुत है

अटलजी : अरे दादाजी अब आराम करो

अडवाणी : रथ ले के घुमो तो पता चले बाकि दो चार राज्य में तो ठीक बाकि का पता नहीं

लालु : बिहार में थोडा थोडा देश में पर नाकाफी...

अपने कम्युनिस्ट भाईलोग में से कोई भी एक नंग : बंगाल ले लो भाई बहुत है....

और अपने मनमोहन : ही ही ही... मजाक नहीं.... बुरा लग सकता है....

अरे यार कोई मास लीडर है कि नहीं...????

7.11.06

दो साक्षात्कार

तरकश पर हमने दो साक्षात्कार रखें हैं।

1. बच्चों में पढने की आदत कैसे डाली जाए, इस विषय पर हमने श्रीमति अतुला आहुजा का साक्षात्कार लिया, जो कि तरकश पॉडकास्ट पर रखा गया है।

2. श्री मृगेश शाह से अफलातुन देसाई की बातचीत। मृगेश शाह गुजराती वेबसाइट "रीडगुजराती.कॉम" के संपादक हैं।

4.11.06

राम नाम सत्य है?

मनु शर्मा का गुनाह (हालाँकि अभी न्यायालय में साबित नहीं हुआ है) किसी से छिपा नहीं है। आज सब जानते हैं कि जेसिका लाल की हत्या किन हाथों से हुई थी? कुछ दिनों पहले स्टार न्यूज पर स्टिंग ऑपरेशन में भी तीनों मुख्य गवाहों के बिकने की बात सरे आम उजागर हो गई थी। और प्रियदर्शनी मट्टु कांड के आरोपी संतोष सिंह को मौत की सजा सुना दिए जाने के बाद तो सब की निगाहें जेसिका लाल केस पर टिक गई थी। शायद जेसिका के घर वालों को न्याय की धुन्धली होती किरण फिर से दिखाई देने लगी होगी... लेकिन तभी रामबाबु आ गए... और....

हालाँकि केस अभी भी चल रहा है और शायद लम्बे काल तक चलने वाला है.. लेकिन राम जेठमलानी का असर दिखने लगा है। राम भारत के सबसे उम्दा क्रिमिनल वकील माने जाते हैं और सही माने जाते हैं। उनके द्वारा मनु की पैरवी किए जाने से इस केस पर व्यापक असर पडेगा इसमें कोई शक नहीं।

इससे पहले राम जेठमलानी ने इन्दिरा के हत्यारों की पैरवी की थी, शेर दलाल हर्षद मेहता की पैरवी की थी, और हाल ही में संसद पर हमले के आरोपीयों की भी पैरवी की थी। उसमें से प्रोफेसर गिलानी बरी भी हो गए। कहा जाता है कि इस केस के लिए राम ने कोई फीस भी नही ली।

खैर राम वस्तुतः पेशेवर वकील हैं, और वे किसी का भी केस लडने को पुरी तरह स्वतंत्र हैं। लेकिन क्या यह सच है कि उनके इस तरह के केस लडने से न्याय की आशा धुमिल सी होने लग जाती है?

और फिर उनको दोष देना भी बेमानी होगा। सब जानते हैं हमारी जांच एजेंसीयों का काम कितना निम्न स्तरीय होता है। गिलानी को सबुतों के अभाव में छोडा गया था और मनु केस में भी पुलिस ने भारी गलतियाँ की.. या फिर युँ कहुँ पुलिस से करवाई गई।

जो भी हो जेसिका की आत्मा जरूर पिडित होती होगी और शायद होती रहेगी।