30.12.06

बन्दर चला फोटु खिंचवाने

समाजवादी बन्दर उलझन में पडा हुआ नए मुद्दे ढुंढ रहा था ताकि विरोध जारी रह सके ... और एक दुसरी नस्ल का बन्दर - जिसे समाजवादी बन्दर कट्टर हिन्दुवादी और 5 करोड विशेष नस्ल के गधे अपना नेता मानते हैं - भी एक उलझन में पडा हुआ है कि अब किस पोज में फोटु खिंचवाई जाए।


इसी उलझन में केसरीया चेहरे वाला बन्दर पहुँचा अपने हमराही मराठा शेर के पास...


मराठा शेर: आओ.. मराठा बाघ गुजराती शेर का स्वागत करता है।

बन्दर: ही ही.. इलाज करवाओ गुरू.. खुद पे शक हो रहा है.. पहले तय करो शेर हो कि बाघ.. और चश्मा लगाओ और देखो कि मैं कौन हुँ।


मराठा शेर: औह.. बुढापे का असर.. खैर तुम जो भी हो मेरे प्रिय हो.. मेरी नस्ल के ना सही.. पर शेर हो।

बन्दर: कोई शक नहीं.. आप महान हो.. और जेनुइन महान हो। आपकी दहाड सुनकर ही बडा हुआ हुँ।


मराठा शेर: मेरा जंगल सेफ है, बर्रखुद्दार। मेरी दहाड से तो पुरा बीहड काम्पता है।

बन्दर: फिर भी अपनी गुफा में ही पडे हो... ऐसे दिन आ गए।

मराठा शेर: शेर जंगल में भटके कि गुफा में पडा रहे.. शेर शेर होता है।

बन्दर: गालिब के प्रशंसक हैं आप.. जाहिर है.. कि दिल बहलाने के लिए गालिब....


मराठा शेर: यह ख्याल भी अच्छा है... ही ही ही... तुम मेरे शिष्य हो.. तुम्हें जुर्रत का अधिकार है। तुम काबिल भी हो।

बन्दर: मैनें चार चाँद लगा दिये गुर्जर जंगल में... मैने क्या क्या कर दिया.. क्या क्या नहीं कर दिया... लोग हैरान है परेशान है... कि क्या कर दिया।


मराठा शेर: "परेशान हैं" मत बोल बेटा... मुद्दा तलाशते लंगुरों को फोगट में चांस मत दे।

बन्दर: वे भी बन्दर ही हैं.. लंगुर नही है.. गुलाटी ही मारते हैं।


मराठा शेर: नस्ल तो एक जैसी ही है भाई.. बस तुम्हारा चेहरा केसरी टाइप का कुछ है.. उनका...

बन्दर: हरा है.. ही ही... अरे कुछ लाल भी हैं गुरू।


मराठा शेर: लाल मुँह वाले बन्दरों की नस्ल कुछ गडबड है.. साले तय ही नहीं कर पाते कि किस डाल बैठना है। सारा दिन उछलते रहते हैं।

बन्दर: हा हा हा... सही कहा गुरू। उनको चायनीज़ पेड माफिक आते हैं। अब भारत में कहाँ मिले?


मराठा शेर: और क्या तो.. और यु.पी. में ज्यादातर पाए जाने वाले हरे.. भुरे.. मिश्रीत जाति के बन्दर बडे खतरनाक होते जा रहे हैं. सुना है.. काटने को दौड पडते हैं।

बन्दर: ना.. ज्यादा दिन ना चलेंगे.. कुपोषण के शिकार हैं.. ज्यादा होंगे तो अपनी हिन्द केसरी बन्दर फौज को लगा देंगे पीछे।


मराठा शेर: सम्भाल उनको.. हिन्द केसरी फौज.. ज्यादा नेताजी मत बन भैये... कि..

बन्दर: घर बैठना पडे यही ना? इस मुगालते में मत रहना... तुम गुफा में आराम करो। मैं राज करूंगा।


मराठा शेर: गधों के भरोसे मत रहना.. आज साथ चलने का कहकर कल मिट्टी में लौट पडेंगे।

बन्दर: गधे हैं.. गुरू.. यही प्लस पोइंट है। जुताए रखो.. जुते रहेंगे। लगे रहो।


मराठा शेर: बडा शेर हो गया है...सुना है सरदार को आजकल सिधा ललकारने लगा है।

बन्दर: सरदार की क्या औकात! बोलो.. सब जानते हैं नाम का सरदार है.. असली मालकिन तो विलायती लोमडी है।


मराठा शेर: हाँ रे। ऐसे प्राणि भी किस काम के... अपने साले बन्दर ही सही.. पर कुछ तो हैं। सरदार और उसके साथीयों का पता ही नहीं कि है क्या।

बन्दर: यार.. तुम शेर हो मियाँ भुला ना करो।


मराठा शेर: एक ही बात है.. कौन पुछता है वैसे भी आजकल।

बन्दर: वो सब छोडो.. मेरी नई फोटो देखो.. मस्त खद्दर के कुर्ते में.. खादी दिन पे खरीदा एक फुट कपडा और 5 फुट का फोटु लगाया सडक पे।


मराठा शेर: तु भी स्साला नोट है। काम करता है.. छँटाक भर पर फोटु लगवाता है 20 फुट की।

बन्दर: मार्केटिंग गुरू .. मार्केटिंग।


मराठा शेर: हुँ मार्केटिंग.. ज्यादा बकबक मत करियो बन्दरु लग जाएगी.... पिछले दो सरदारों ने चुनाव से पहले कि थी..एक फोटु टंगवाता था एक भारत का उदय करवाता था.. क्या हुआ.. लग गई ना।

बन्दर: अरे अपना युपी वाला समकक्ष बन्दरु भी उछलने लगा... गुरू.. ही ही.. नट को नचवाके बोले कि उग गया नया सुरज।


मराठा शेर: किधर उगा रे.... सब जगह अन्धेरा लागे है.. सुबह हो गई क्या।

बन्दर: युपी में हो गई.. गुरू।


मराठा शेर: गुर्जर प्रदेश में कब होगी?

बन्दर: बस होने को है.. गुरू.. बल्कि हुई हुई है। उजाला ही उजाला है। इस बात पर यह लेटेस्ट पोज तो देखो।


[इस साल की आखिरी पोस्ट... जंगल में मंगल जारी...]

29.12.06

पोल अपडेट

  • नामांकन का चरण समाप्त हो चुका है, कुल 33 नामांकन मिले हैं।
  • अब पेनल जज इन 33 चिट्ठाकारों में से 10 श्रेष्ठ चिट्ठाकारों का चयन करेंगे।
  • चुने गए अंतिम चिट्ठाकारों के बारे में आपको जानकारी इस पन्ने पर मिलती रहेगी।
  • 10 श्रेष्ठ में से अंतिम 3 सर्वश्रेष्ठ चिट्ठाकारों का चयन आप करेंगे, पोल 2 जनवरी से शुरू होना है।
  • आप निम्नलिखित स्क्रीप्ट को अपने चिट्ठे पर लगाकर तरकश के प्रति तथा इस चुनाव के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर सकते हैं।



22.12.06

सर्वश्रेष्ठ उभरता हुआ चिट्ठाकार - 2006 [सम्पूर्ण जानकारी]

मित्रों,

तरकश.कॉम द्वारा आयोजीत "सर्वश्रेष्ठ उभरता हुआ चिट्ठाकार - 2006" की सम्पूर्ण जानकारी इस प्रकार से है:


  1. पुरी प्रक्रिया 3 चरणों में होगी।
  2. पहले चरण में चिट्ठाकार अपना नोमिनेशन रजिस्टर करेंगे। कृपया ध्यान दें सिर्फ वही चिट्ठाकार नोमिनेशन दे सकते हैं जिन्होने जनवरी 2006 या उसके बाद से लिखना शुरू किया हो।
  3. दुसरे चरण में 5 वरिष्ठ जज प्राप्त हुए नामांकन में से 10 श्रेष्ठ चिट्ठाकारों का चुनाव करेंगे। जो सर्वमान्य होगा।
  4. तीसरे चरण में उन 10 चिट्ठाकारों में से सर्वश्रेष्ठ 3 चिट्ठाकारों के चुनाव के लिए पोल आयोजीत किया जाएगा, जिसमें हिन्दी चिट्ठाकार परिवार के सदस्य अपना वोट देकर सर्वश्रेष्ठ 3 [बीटा नाम - स्वर्ण, रजत, कांस्य] चिट्ठाकारों का चयन करेंगे।


  • नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और 28-12-2006 तक जारी रहेगी।
  • जजों के द्वारा श्रेष्ठ 10 चिट्ठाकारों का चुनाव 28-12-2006 से 31-12-2006 के बीच किया जाएगा।
  • पोल 02-01-2007 से शुरू होगा और 09-01-2007 तक चलेगा।
  • 11-01-2006 को नतीजे घोषित किए जाएंगे।

  • जजों के नाम:

    श्री रविशंकर श्रीवास्तव
    श्री अनूप शुक्ला
    श्री जितेन्द्र चौधरी
    श्री संजय बेंगाणी
    श्री प्रतिक पाण्डे


  • अपना नामांकन करवाने के लिए कृपया यहाँ जाएँ:
    http://tarakash.com/new2/index.php?option=com_wrapper&Itemid=59
  • इसी पन्ने पर समस्त जानकारी भी लिखी हुई है।


  • जजों द्वारा चुने गए चिट्ठाकारों की जानकारी तथा पोल करने के पन्ने की जानकारी तथा विजेताओं की जानकारी आपको तरकश के मुख्य पृष्ठ पर निर्धारीत तिथि को मिल जाया करेगी। कृपया इसे बुकमार्क कर लें।
  • किसी भी अन्य जानकारी के लिए कृपया ईमेल करें।
  • तिथियों तथा नियमों में बदलाव हो सकते हैं।

21.12.06

चुनाव प्रचार >> हमको जीताय दो ठाकुर!!



चुनाव आ गये हैं। और हम भी उम्मिदवार हुए हैं। तो कृपया अन्यथा ना लेते हुए मेरा नाम देख लेवें।

नाम है: पंकज बेंगाणी
परचा करमांक: 12

देखिए जी जीताने लायक एकमात्र उम्मिदवार हम ही हैं और कोई नहीं। तो आप अपना किमंती मत हमको ही दिजीएगा। जजों की चिंता ना करें.... हम इतने तो लायक हैं कि उ लोग हमरा परचा खारीज नहीं ना करेंगे।

उ ससुरा गिरीराज का चीज है? (ईस्माइली) खडा हुआ हमरे खिलाफ! का किए रहे हैं सिवा कविता ठोकने के? (ईस्माइली) और उ सागरवा!! (ईस्माइली)हमरे भाइसा है तो का हुआ... कभी आए रहे नयी नयी पोस्ट लेकर..? (ईस्माइली)

एक समीरलालजी हैं! ससुरे खुब ही बाहबाही लुटते हैं (ईस्माइली) पर भाइ अब नौजवान का जमाना है! हम जवान हैं, लंगोट तान के हनुमानजी की तरह कुदें तो एक चिट्ठे से दुसरे चिट्ठे पर युँ ही पहुँच जाते हैं।

शिलपी महोदय का पढे रहे का? (ईस्माइली) खोपडीया में घुसता है कुछ? (ईस्माइली) (ईस्माइली) (ईस्माइली) स्साली... ओह छम्मा करना भाई... (ईस्माइली) गाली नहीं दिए रहे.. अन्यथा ना लें... हमरी खोपडिया में तो नहीं जाता। लिखो तो देसी लिखो। समझ आए। हमरी तरह।


तो भाई कोई माई का लाल ऑलराउन्डर बलोगरवा है तो हम ही हैं हम ही हैं हम ही हैं.... तो भूलना नहीं

नाम : पंकज बेंगाणी
परचा करमांक: 12


(हम फिर आएंगे आपके दवार। ई तो शुरूआत है।)

अब नारे नोट करिएगा:

भांग और देसी पिलाना है
पंकजबाबु को जीताना है

एक दो तीन चार
पंकजबाबु बारम्बार

दारू पीके लोट लो
पंकज भैया को वोट दो




20.12.06

नोमिनेशन लिस्ट

चिट्ठे को नोमिनेट करने के लिए आप यहाँ से मदद ले सकते हैं।

http://narad.akshargram.com/naadrating/


बहुत कम ऐसे चिट्ठाकार हैं जिन्होने 2006 से पहले से लिखना शुरू किया था।

जैसे कि फुरसतिया, जितेन्द्र चौधरी, अमित गुप्ता, संजय बेंगाणी, सुनिल दीपक, ई स्वामी वगैरह वगैरह.....

इन सिनियर लोगों को पेड के नीचे चौपाल लगाने के लिए छोड दिजीए। ;-)

इनके अलावा आप जिस किसी को नोमिनेट करना चाहते हैं उनके ब्लोग पर जाकर देख सकते हैं कि उन्होने अंतिम पोस्ट कब की थी।

और फिर आप जब ईमेल करेंगे तब भी हम एक बार वेरिफाई भी करेंगे और डिस्क्वालिफाई होने पर आपको सुचित कर देंगे।

हमें लिस्ट देनी चाहिए थी, यह ठीक बात है। हम क्षमाप्रार्थी हैं।

नोमिनेशन फोर्म् :: 2006 के हिन्दी चिट्ठाकार

“ मैं, …….., मेरा चिट्ठा, ………., निम्न लिखीत चिट्ठों को '२००६ के हिन्दी चिट्ठाकार' के लिये नामिनेट करता हूँ:

१. ...........................
२. …………………......

(कॉपी - पेस्ट कर लेवें)

19.12.06

नोमिनेट करिए 2006 के श्रेष्ठ चिट्ठाकार को

तरकश.कॉम पर हम एक पोल रख रहे हैं "2006 का हिन्दी चिट्ठाकार", इसमें हमारा परिवार यानि कि आप और हम चुनेंगे 2006 के श्रेष्ठ हिन्दी चिट्ठाकार को जिसने 2006 से लिखना शुरू किया हो।

अब आपको नोमिनेशन देने हैं। कम से कम दो ब्लोगर का नोमिनेशन दिजीए... आप खुद अपने आपको नोमिनेट नही कर सकते हैं। :)

ध्यान रखिए उसी ब्लोगर को नोमिनेट करना है जिन्होने 2006 से लिखना शुरू किया हो।

नोमिनेशन 22-12-2006 तक भेजा जा सकता है।

नोमिनेशन सिर्फ इमेल (contact@tarakash.com) के द्वारा दिया जा सकता है।

2006 की सर्वश्रेष्ठ तस्वीरें

इस वर्ष का प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका श्रेष्ठ फोटोग्राफी पुरस्कार (Ramnath Goenka Picture of the Year Award) डी.एन.ए. समाचारपत्र के छायाकार विपिन पवार को मिला है। अन्य कई श्रेणीयों में भी पुरस्कार घोषित हुए हैं।

विजेता तस्वीर:



Vipin Pawar/DNA


अन्य विजेता तस्वीरें:






































My favorite



2006 winners
Vipin Pawar (DNA): RNG Picture of The Year Award
Amit Dave (Reuters): Spot News
Aziz Bhutta (Rajasthan Patrika): General News
Rafiq Maqbool (AP): General News Story
Altaf Qadri (EPA): Sports Action and Feature
Prashant Nadkar (The Indian Express):
People in News
Yasin Dar (Freelance): People in News Story
Ashima Narain (Freelance): Nature & Environment
Manish Swaroop (AP): Daily Life
Sohrab Hura (Freelance): Daily Life Story
Mahendra Parikh (The Indian Express):
Art & Entertainment
Arvind Jain (The Week): Contemporary Issues
Samkit Shah (Freelance): Contemporary Issues Story

14.12.06

बन्दर चला "महान" बनने

एक गुजराती बन्दर गुलाटी मारता हुआ उत्तम प्रदेश के जंगल में पहुँच गया और अपने आका तीसमार खाँ लंगूर से मिला।


बन्दर: ताऊ

तीसमार खाँ: क्या है बे?


ताऊ मुझे महान बनना है।

क्या!! तुझे महान बनना है?


हाँ ताऊ। क्यों? मुझमें कोई कमी है क्या।

नहीं बे। महान बनने के लिए कोई क्वालिटी की जरूरत ही कहाँ है छुटकु। ए ल्लो, आसानी से बना देंगे तुझे महान।


सच्ची ताऊ?

हाँ बच्चा, टेंशन फ्री हो जा थोडी देर के लिए।


ठीक है ताऊ। अब क्या करुं?

ह्म्म्म... पहले तो अपनी शक्ल आईने में देख।


क्यों ताऊ? अच्छी तो है! रोज नहाता हुँ।

वही तकलीफ है मुन्ना!! रोज नहाना छोड पहले। 10 15 दिन में नहाया कर। मैला

कुचेला लगाकर। बुद्धिजीवी लगेगा।


सच्ची ताऊ?

और नहीं तो क्या। और ये क्या पहन रखा है रे? पेंट शर्ट... स्साले अंगरेज की औलाद! कल जाकर झब्बा, कुर्ता और पाजाम खरीद। और सुनिओ.. थोडा मैला हो तो अच्छा।


जी अच्छा ताऊ, फिर रोज धोऊंगा भी नहीं।

समझदार है मेरा बच्चा... एकदम सही। ज्योर्ज फर्नाडिस को देखा है ना।


हाँ, उनके जैसे कपडे पहनुं?

ना.. वो तो फिर भी अच्छे हैं। वो मानक है मेरे भाई! उससे कहीं गन्दे होने चाहिए।


जी अच्छा ताऊ।

फिर कुछ झोले खरीद, लटकाने के काम आएँगे। फिर रंग बिरंगे झंडे खरीद, वो लहराने के काम आएँगे।


वाह वाह मजा आ गया ताऊ। आगे क्या करूं?

हम्म... बेटा फिर..... हाँ..... तुझे ना एक पंजीकृत राजनैतिक दल जैसा कुछ खोलना होगा।


ताऊ, एन.जी.ओ. नही चलेगा?

धत्त.. बुडबक है क्या बे? फिर राजनीति की रोटियॉ कौन तेरा ताऊ सेंकेगा?


हाँ.. बात तो खरी कही ताऊ। और नाम क्या रखुं पार्टी का?

कुछ भी रख ले! की फरक पैन्दा है? ह्म्म... कोई समाजवादी जन उत्क्रांति, समाजवादी प्रजाति पार्टी, समाजवादी संक्रांति दल जैसा कुछ रख ले।


ओके.. ताऊ.. डन।

ये डन.. फन... छोड दे बेटा.. अंग्रेज लगेगा।


जी अच्छा ताऊ। फिर मार्केटिंग कैसे करेंगे।

हाँ अब तु लाइन पर आ रहा है। देख सबसे पहले ना, तु सीधा शेर से पंगा ले, हंमेशा उसकी निंदा कर, यही राजनीति होती है।


शेर ? अरे बाप रे!!!

क्यों, डरता है क्या बे?


नहीं.... डरते तो अपने किसी से नहीं। पर ताऊ शेर तो दो चार ही है। किसे ललकारुं?

ह्म्म.. सीधा दढीयल शेर को ललकार।


क्या.............? ताऊ, वो तो बहुत खतरनाक है!! और उसके पीछे पाँच करोड गधे भी हैं।

अबे मुरख... पाँच करोड़ हो कि सात करोड़! हैं तो गधे ही ना?


हाँ ताऊ।

देखो हम लोग उन्ही को कोसते हैं। वे जो घास चारा ढोकर लाते हैं, उसे खाते हैं और स्साले उन्ही को लताडते हैं... खी..खी...खी।


ही...ही...ही.. ताऊ। तुस्सी ग्रेट हो।

हाँ मेरे बन्दरु, और उस शेर के साथ भले ही गधे हों हमारे साथ तो हर जंगल में भरे पडे मानवाधिकारी सियार हैं। हमें क्यों डर लगे।


ताऊ.. वो सब तो ठीक है। लेकिन.............सिर्फ विरोध करने से क्या होगा। मेरा घर चलाने के लिए क्या करूं? पार्टी शार्टी अपनी जगह है, घर भी चलाना पडेगा ना।

तो क्या सोचा है तुने मेरे बन्दरु? जरा मैं भी सुनुं!


ताऊ सोचता हुँ, कोई छोटा मोटा व्यवसाय कर लुं।

क्या...... अबे मुरख..... स्साले..... मति भ्रष्ट हो गई क्या रे तेरी? व्यापार करेगा!! लोगों का खून चुसेगा? समाजवाद का क्या होगा रे?


लेकिन ताऊ, मैने कब कहा लोगों का खून चुसुंगा? मैं तो उल्टा लोगों को रोजगार दुंगा।

मैं तो उलता लोगों को लोजगाल दुंगा..... ह्म्म्म.... फिर अपनी पार्टी क्या खाक चलाएगा! तु खुद सोच ले बेटा। तुझे कौन सी दुकान चलानी है। समाजवाद की या व्यवसाय की?


ताऊ, मैं तो वही करूंगा जो आप कहोगे।

हाँ, तो अच्छा बच्चा बन जा और समाजवादी दुकान खोल ले। तेरा घर भी ओटोमेटिक चल जाएगा और महान भी बन जाएगा।


जी अच्छा ताऊ। फिर अपना काम तो निकल पडेगा ना?

अबे.. तुफान मेल की तरह दौडेगा बन्दरु। यहाँ उत्तम प्रदेश में क्या कमी है रे? देख कमाई की चिंता बिलकुल ना करीयो। और फिर मनोरंजन की दरकार हो तो अपने सरदार मुखमंत्री के दरबार में तो बकायदा रंडीयाँ नाचती हैं। दिल बहल जाएगा। और फिर बेटा... सरदार ने भाडे पर एक मोटा ताज़ा दल्ला भी ले रखा है। स्साला पुरी दुनिया की पँचायती करता फिरता है... तो अपने काम ना आएगा क्या?


ये तो खरी कही ताऊ। आपके चरण कहाँ हैं चूम लेना चाहता हुँ।

चुम्मा चाटी बाद में करियो। एक बात दिमाग में घुसेड ले बन्दरु। अपने को सबका विरोध करना है... सबका... जरूरत पडे तो अपने मुखमंत्री का भी। हम तोप हैं बाकी सब पर प्रकोप हैं ... समझ गया ना। और सुन... वो खाकी हाफ पेंट वाले हैं ना... स्साले उनकी तो बजा कर रखनी हैं.. चाहे कुछ भी हो जाये।


पर ताऊ वे लोग इतने भी बुरे भी नहीं हैं।

हट नालायक.... धन्धा क्या खाक करेगा। अबे दुकान चलानी है कि नहीं!! देख लोग व्यापार करते हैं हम धन्धा करते हैं। फर्क समझ।


समझ तो गया ताऊ.... पर।

पर क्या बे?


पर ताऊ... हम समाज को बांटने का काम नहीं कर रहे क्या? हम अन्याय नहीं कर रहे क्या?

इस बार लंगुर उछलकर दूर पेड पर जा बैठा और बन्दर को हिकारत भरी निगाह से देखने लगा और बोला तु बन्दर नहीं हो सकता। तु बन्दर का मुखौटा लगाकर आया हुआ गुजराती गधा तो नहीं? तु जरूर पंकज है।

13.12.06

क्या कृष्ण मवाली थे?

मेरे इस वाक्य का सन्दर्भ यहाँ है। इन महापुरूष के प्रति मुझे बहुत श्रद्धा है।

डिस्क्लेमर : मैं किसी का नाम नही ले रहा हुँ।

कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य धरना प्रदर्शन करना और विरोध दर्ज करवाना होता है और उसे वे शायद सबसे सृजनात्मक कार्य मानते हैं।

ये लोग एक विशेष प्रकार का काला गोगल्स पहनते हैं, जिसमें संजय दृष्टि की सुविधा होती है, वे दूर का देख सकते है और मन माफिक सोच भी सकते हैं।

ये लोग पक्षपाती होते हैं पर दूसरे लोगों के प्रति जहर भी उगलते हैं कि "वो" पक्षपाती है। क्या ही अच्छा हो वे पहले खुद अपनी गिरहबान में झांके!

इन लोगों को नरेन्द्र मोदी से क्या तकलीफ है, मैं आजतक नहीं समझ पाया! क्यों ये लोग एक व्यक्ति विशेष के पीछे हाथ धोकर पडे रहते हैं। “मोदी के राज में” यह हो गया ना वो गया। अरे भाई क्या हो गया?

एक साल बाद ही चुनाव होने वाले हैं गुजरात में। लोग नहीं चाहेंगे तो मोदी की क्या बिसात है? उखाड फेंकेगी जनता। आप क्यों यु.पी. में बैठकर टेंशन लिए जा रहे हो?

मोदी कोई तोप नहीं है। वे उतने ही जवाबदेह मुख्यमंत्री है जितने बाकी के अन्य हैं। उनपर मुकदमा चलाया जा सकता है और अदालत उन्हे सजा भी दे सकती है। उससे भी आगे गुजरात की जनता भी उन्हे चुनाव में सजा दे सकती है।

लेकिन समाजवादी चोला पहने कुछ लोगों को लगता है कि सारे भारत का टेंशन उनको ही है। ये लोग मौका तलाशते रहते हैं कि कब कुछ हो और कब व्यंग्य बनाऊँ। अब इसके पीछे की मंशा तो वही जाने।

अब इनको महिला कोलेज के आगे खडे सडकछाप रोमियो और मवालीयों में भगवान कृष्ण नज़र आते हैं तो कोई क्या कह सकता है? इन मवालीयों की वजह से छात्राओं को जो परेशानियाँ होती है वो मैने खुद अपने कोलेज के दिनों में देखी है।

मैं कुछ उदाहरण देता हुँ।
  • हमारे एक व्यवसायिक मित्र जहाँ से हम प्रिंटिग कराते हैं का भतीजा हर दुसरे महिने नये मोबाइल के साथ दिखता है, उसको हमेंशा मैने अपने दोस्तों के साथ इसतरह की बातें करते पाया:
    ”वो युसुफ को कल उसके भाई ने मारा, गुजरात कोलेज के आगे खडा रहता था।“
    ”आज किधर जाना है? वहाँ तो कल थे ना”
    ”मज़ा नहीं आता यार उधर, सुरेश के कोलेज के उधर माल है”
    आदि... आदि...
    (ये महाशय एक “विशेष” समुदाय से हैं, उनके मित्र दुसरे “तथाकथित कट्टर” समुदाय से हैं)

  • मैं गुजरात कोलेज में पढता था। वहाँ 30 - 35 साल के भी छात्र होते थे, जिनके दो तीन बच्चे भी थे। उनका एकमात्र कार्य लोगों को एडमिशन दिलवाना, दलाली खाना और लाइन मारना होता था।

  • आप किसी भी कोलेज में चक्कर मार आइए, ज्यादातर कोलेजों में आप इन मवालीयों को खडा पाएंगे।



इनको रास्ते पर लाने का पहला कार्य पुलिस और कोलेज के अधिकारीयों का है। अगर वि.एच.पी. के कार्यकर्ता अपने दम पर यह कार्य कर हैं तथा बाहुबल का प्रयोग कर रहे हैं तो वो गलत है।

लेकिन यहाँ अहमदाबाद में दुर्गा वाहिनी की महिलाएँ भी इन्हे खदेडने में जुटी हुई हैं, और मेरी नजर में वो सही है।

अंत में मेरी एक प्राथना।

आपकी विचारधारा अलग है, हमारी अलग। हम आपकी कद्र करते हैं। आपकी विचारधारा, आपका समाजवाद महान होगा। जरूर होगा। पर कृपया आप पक्षपाती बनकर मनगढंत बातें ना करें।

5.12.06

नरेन्द्र मोदी की छाया तले

एक महापुरूष ने अपने चिट्ठे पर लिखा :

नरेन्द्र मोदी की छाया तले बैठकर ,
अपने व्यसाय के हानि-लाभ के मद्देनजर,
गांधी को गरियाना एक बात है और उन पर गंभीर बहस करना दूसरी बात है .

लिखने वाले गुणी एवं सम्मानित व्यक्ति हैं इसलिए मेरी यह उत्कंठा जागी कि भई उन्होने यह किसके लिए लिखा है?

वैसे सन्दर्भ था पिछले कुछ दिनों से चली आ रही गान्धीजी की चर्चा, जिसे नाहर भाईसा से शुरू किया था। थोडा तो गान्धीजी को उन्होने "गरियाया" था। और थोडा मेरे बीग बी और थोडा बहुत मैने। कुछ लोगों ने बाहर से समर्थन भी दिया था।

तो ऐसा लगता है कि उपरोक्त टिप्पणी हमारे लिए ही है। या नही भी हो सकती है, पर हिन्दी चिट्ठामंडली में शायद मै ही हुँ जो मोदी की छाया तले हुँ तो सोचा कि चलो थोडा वेरिफिकेशन जैसा कर लिया जाए।

पहली बात तो यह कि गान्धी को गरियाना आखिर होता क्या है? गान्धीजी की कुछेक नितियों का विरोध करना गरियाना होता है यह तो अब पता चला! क्या हमारे लोकतंत्र ने हमे यह अधिकार नहीं दिया है कि हम अपनी बात खुलकर रख सकें? बिल्कुल दिया है। तो इसमें गरियाने वाली बात किधर से आई?

गान्धीजी सचमुच महात्मा थे। उनके जैसा बनना तो दूर उनके नक्शे कदम पर चलना भी बडी बात है। पर क्या वो सर्वगुण सम्पन्न थे? क्या कोई हो सकता है?

आज गान्धीजी हमारे बीच जिवित नहीं हैं। हम उनसे जवाब नहीं मांग सकते, पर हम घटनाओं का विश्लेषण तो कर ही सकते हैं जो हमें इतिहास में दर्ज मिलती है।

जो इतिहास आपने पढा है वही हमने पढा है। बस विश्लेषण का तरीका अलग है। क्योंकि सबकी सोच अलग अलग होती है। पर इसका मतलब यह नहीं कि आप किसीको एक व्यक्ति विशेष के साथ जबरदस्ती जोड दें।

कुछ अति बुद्धिजीवी लोगों को मोदी से जाने क्या तकलीफ है? हर जगह मोदी को क्यों घसीटा जाता है? क्या वे इतने मह्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं? या देशद्रोही हैं? क्या हैं?

एक और चीज जो नही समझ पाया वो यह कि गान्धीजी को "गरियाने" से व्यवसायिक लाभ या हानि कैसे होती है? परंतु शायद गलती मेरी ही है, क्योंकि मेरी समझ अफलातुन नहीं है, मैं समझ नहीं पाता।

कुछ ऐसे लोग जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य झंडे उठाकर विरोध प्रदर्शन करना हैं उन्हे क्या पता कि व्यवसाय करना कितना कठीन होता है। दो पैसे कमाकर घर चला कर दिखाइए पहले फिर पूंजीपतियों को गालीयाँ दिजीए।

अच्छे और बुरे हर जगह होते हैं, पर इसको सबके साथ कैसे जोडा जा सकता है। कुछ पुंजीवादी जरूर सामंतवादी मानसिकता के होंगे पर क्या इससे सारे व्यवसायी खराब हो जाते हैं? माफ किजीए दुकानें तो इन समाजवादीयो ने भी खोल रखी हैं बस नाम समाजसेवा का देते हैं।

नरेन्द्र मोदी का विरोध सबसे अधिक शायद इसलिए होता है क्योंकि गोधरा कांड के बाद कथित रूप उन्होने हिन्दुवादी कट्टरपंथीयों और पुलिस को खुली छूट दी थी। इसमें कितनी सच्चाई है वो गुजरात में रहने वाला ही जान सकता है।

दिल्ली में बैठकर कोहराम मचाने वालों को आभास हो रहा था कि पुरा गुजरात जल रहा है, पर हकिकत में 5% गुजरात भी नहीं जल रहा था।

लेकिन मैं इमानदारी से कहता हुँ, मोदी ने छूट दी थी। यह सच है। गोधरा में ट्रेन जलाने की घटना से एक समुदाय विशेष बहुत आहत हुआ था। गुस्सा फूट पडा था। और फिर जो हुआ वो और भी शर्मनाक था। मोदी इस जगह नैतिक रूप से गलत हैं।

मै उन्हे अन्य राजनेताओं से नही जोडता नहीं तो आसानी से कह सकता हुँ कि किसने ऐसा नही किया?

लेकिन उस एक काले अध्याय को छोडकर उन्होने और जो कुछ भी किया उसकी वजह से ही वे आज भी लोकप्रिय हैं। प्रशासन ने और आम जनता ने दंगो से सबक लेकर और यह समझ कर कि इससे पुरे समाज को नुकशान है अपनी मानसिकता बदली है।

पहले हर छः महिने में अहमदाबाद के पुराने शहर में दंगे होते थे, आज गोधरा के बाद कोई मामुली झडप भी नहीं हुई। 21 साल बाद जगन्नाथ यात्रा के दौरान मुसलमानों ने अपनी दुकाने बन्द नहीं रखी और मिठाई बाँटी। आज यहाँ सुकुन है, शांति है। कहते थे कि मुसलमान चले जाएंगे... गुजरात बरबाद हो जाएगा, क्या हुआ? कोई गया? गुजरात कश्मीर नही है जहाँ से हिन्दुओं को लात मारकर निकाल दिया गया और फुटपाथ पर ला दिया गया।

मोदी के रूप में गुजरात को ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जिनकी एक सोच है, विजन है और जो कर्मठ है। मै उनका गुणगान नही कर रहा पर मैने केशुभाई को भी देखा है और चिमनभाई को भी। और विपक्षी नेताओं को भी।

आप गुणवान हैं, महापुरूष हैं, अफलातुन हैं

मैं आम नागरीक हुँ, "मोदी की छत्रछाया" में सुरक्षित और खुश हुँ।

2.12.06

मुझे भा गया Twenty - 20

मैने अब तक क्रिकेट के Twenty - 20 स्वरूप के विषय में काफी सुन रखा था, और कल भारत और दक्षिण अफ्रिका के बीच हुए मुकाबले को देखने के दौरान इसका प्रत्यक्ष अवलोकन भी कर लिया।

मुझे यह फोर्मेट बहुत ही रोमांचकारी लगा। फटाफट दुनिया में इस तरह के ही फटाफट खेल की जरूरत है। भरपूर मनोरंजन से भरे इस खेल को देखते समय एक सेकंड के लिए भी कुछ और सोचने का समय नही मिलता है।

यह बात और है कि शतुरमुर्ग जैसे बीसीसीआई ने पहले Twenty - 20 क्रिकेट खेलने से ही मना कर दिया था। इसकी कोई ठोस वजह तो उनके पास नही थी पर हम भारत वाले हर नई चीज का विरोध सबसे पहले करते हैं वो भी बिना सोचे समझे।

आखिरकार आई.सी.सी के दबाव में भारत को खेलना तो पडा लेकिन मेरी समझ में यह नही आया कि आखिर बीसीसीआई को तकलीफ क्या है, कि वो Twenty - 20 खेलने से आखिरी वक्त तक इनकार करता रहा?

वस्तुतः हम भारतीय विरोध करने में वर्ल्ड चेम्पियन हैं। कुछ भी हो चाहे लाल झंडे लेकर खडे हो जाएंगे। याद किजीए जब वन डे क्रिकेट का चलन शुरू हुआ था तब भारत ने सबसे पहले विरोध किया था और भारत में तो वन डे क्रिकेट खेला ही नही जाता था। भारत में जो पहला वन डे खेला गया था वो इसके शुरू होने के 9 साल बाद खेला गया था। सोचिए?

खैर, कल भारत आखिरकार जीत ही गया, लेकिन हकिकत यही है कि Twenty - 20 एक ऐसा खेल है जिसमें कोई भी कभी भी जीत सकता है।

इसके कुछ फायदे:

  • 3 घंटे में खेल खत्म। (वैसे भी आज की तेज दुनिया में किसी समझदार आदमी के पास समय नहीं है कि पुरे दिन क्रिकेट देखे)
  • रात को मैच (दिनभर का काम निबटा कर शांति से मैच देखो, जैसे मुवी देख रहे हो)
  • नाच गाना (चौको छक्कों की बौछार के बीच खुबसूरत लडकियों - जिन्हे चीयर्स मेकर्स भी कहा जाता है - को देखने का अमूल्य मौका। महिलाओं के लिए हेंडसम युवकों का भी इंतजाम होता है)

बताइए है ना मजेदार?