मेरे मोहल्ले में शुरू हुई एक प्लानिंग. बसंती को रंगने की. इसबार विशेषज्ञों की राय ली गई. और विशेषज्ञ थे, हिन्दी ब्लोग जगत के कुछ धांसु ब्लोगर.... देखिए क्या होता है.
मेरे मोहल्ले में होली की धूम मची हुई है. बनवारी, कुलभूषण, पांडु पहलवान, कल्लु और मास्टरजी भी लग गये प्लान बनाने में. प्लान है बसंती को रंगने का. ये बसंती आमिर खान वाली नही है. मोहल्ले की बसंती है. जब मोहल्ले में आती है तो सब लाईन लगा के देखते हैं. पास जाने की या छुने की कोशीश तो भूल कर भी नही कर सकते. ये कोई “भाग बसंती भाग” नही है, ये तो “मार बसंती मार” है. यहाँ तक कि पांडु पहलवान भी खुद को बेबस पाता है. तो एक बस होली ही तो है जब मन के अरमान पुरे कर पाएंगे ये लोग, रंगने के बहाने. पर बसंती को रंगना कोई बच्चों का खेल नही है. भई पूरा प्लान बनाना पडेगा. विशेषज्ञो की राय भी लेनी पडेगी. चलिए देखते है क्या प्लानिंग चल रही है, चौपाल पर.
पांडु: इस बार तो रंगना ही है बसंती को.
कुलभुषण: चिंता ना कर पांडु, इस बार ऐसा रंगेंगे, कि सात पुश्तें याद रखेगी.
बनवारी: ओये भाभीजी, मायके गई तो ज्यादा उछल मत, इस बार ऐसा रंगेंगे – बोले तो ऐसे जा रहा है जैसे हर बार रंगता आया है.
कुलभुषण: तो तुझे क्यों मिर्ची लगती है, हिम्म्त है तो तु रंग के दिखा. मिँया खुद तो दुबक के बैठा रहता है.
कल्लु: मुझे किसने बुलाया. मैं कोई दुबक के नहीं बैठता.
पांडु: अबे मुर्गी की औलाद, एक मुर्गी तो सम्भाली नही गई तेरे से, कहता है दुबक के नही बैठता.
कल्लु: देख गाली मत दे पन्डवा. अच्छा नही होगा, कहे देता हुँ.
मास्टरजी: बस बस, ये बच्चों की तरह लडना झगडना बंद करो, और मुद्दे पर आओ.
पांडु: हाँ तो मुद्दा क्या है?
बनवारी: सिर है मेरा. अबे मोटी बुद्धि के, मुद्दा है बसंती को रंगने का.
मास्टरजी: बिल्कुल सही, और ये तुम जैसे नौसिखीयों के बस की बात नही है. इसके लिए तो विशेषज्ञ ही चाहिएंगे.
कल्लु: कहाँ से आंएंगे आपके विशेषज्ञ?
मास्टरजी: उसकी चिंता मत करो. मैने हिन्दी ब्लोगरों की जमात के उस्तादों को बुला रखा है. उनसे बडा विशेषज्ञ कोई नही हो सकता.
बनवारी: अच्छा किया मास्टर.. बहुत अच्छा किया. अरे वो देखो कौन आ रहा है मटकता हुआ.
मास्टरजी: हाँ, मुझे पता ही था सबसे पहले दौड कर यही आएंगे. आइए आइए जितेन्द्र चौधरी भाई कुवैत रिटर्न. दोस्तों ये है जितेन्द्र चौधरी उर्फ जितु उर्फ नारद मुनि... हर किसी पर वक्त बेवक्त नज़र रखना इनकी आदत है.
जितु: नारायण नारायण.
पांडु: ओये नारायण छोड, यहाँ कोई नारायण नही है.. मुद्दे पे आ जल्दी. वैसे मुद्दा क्या है?
जितु: बन्धु, ये हमारा तकिया कलाम है. हम नारद हैं सबकी खबर रखते है.
बनवारी: सच्ची!! तो जल्दी बताओ आज बसंती किधर से आएगी.
जितु: पता नही बन्धु, उसकी फीड मे गडबड लगती है. कोई अपडेट नही है अपन के पास.
बनवारी: फीड!?? अबे किसे उठा लाया रे मास्टर? ये क्या अनाप सनाप बोले जा रहा है.
जितु: चिंता मत करो, हमारा सोफ्टवेर क्राउल करने मे उस्ताद है. अभी पता लगा लेते हैं.
कुलभुषण: मास्टर ये कौन साहब है...क्या बोले जा रहे हैं.. मेरे तो कुछ समझ नही आ रहा. मै समझा था समझदार लोग लाओगे.
मास्टर: तुझे पता नही है रे, बडी उँची चीज़ हैं ये... देखना अभी पता लगा लेंगे बसंती किधर से आएगी.
जितु: लग गया पता!
कुलभुषण: वाह वाह जितुजी.. पता लग गया.
बनवारी: वाह भाई शाबास. पता लग गया.
पांडु: वाह वाह जितुजी तीर मार लिया... पता लग गया.
मास्टर: लेकिन पहले पुछो तो सही पता क्या लगा?
जितु: यही कि बसंती, तिसरी गली से निकल कर चौराहा देकर पहली गली से गुजरेगी.
सब अवाक. एक दुसरे का मुँह देखने लगे.
बनवारी: अरे लेकिन वो तो हमेंशा ही उधर से आती है, आज तो सोचा था कि रास्ता बदलकर आएगी. आपने नया क्या बताया?
कुलभुषण: मास्टर यार किसी और को बुलावो.... गाईड करने.
हम हाजिर है दोस्तों....
ये कौन साहब आ गये? लो ये तो अपने दिल्ली वाले अमित हैं.
अमित: नमस्कार दोस्तों. देखो अपन लल्लु नही है. पहली बात तो ये कि आपकी एप्रोच ही गलत है.
बनवारी: अच्छा? ये तो सोचा ही नही.
अमित: तो सोचो ना बन्धु! पहले बताओ बसंती को कौन से रंग का रंग लगाओगे?
पान्डु: रंग का रंग? ये क्या बला है? अरे यार मुद्दे पर आओ ना! वैसे मुद्दा क्या है?
अमित: मेरा मतलब है कौन सा कलर?
बनवारी: कोई भी लगा देंगे. इसमे क्या है?
अमित: यही तो! तुम लोग मुझे पुछते नही हो. देखो सबसे बडा तोप कौन?
बनवारी: आप..
कुलभुषण: आप..
कल्लु: आप..
पांडु: ये लोग कहे रहे हैं तो आप ही होंगे!!
अमित: बिल्कुल सही! अब देखो अगर तुम अगर पीला रंग लगा रहे हो तो तुम्हे लाल लगाना चाहिए था.. और अगर लाल रंग लगा रहे हो तो भी तुम गलत हो क्योंकि तुम्हे पीला लगाना चाहिए था.
बनवारी: वाह क्या बात कही. मान गये उस्ताद!
अमित: वही तो! मेरे जैसे ज्ञान गुरू कि बात माननी चाहिए ना. देखो मै हर जगह टांग युँही थोडे ही अडाता रहता हुँ.
जितु: ये सही कहा भाई अमित.
अमित: अरे आप भी यँहा हैं? धत तेरे कि.
बनवारी: अच्छा गुरूजी.. रंग कौन सा लगाँए?
अमित: वेरी सिम्पल... लाल लगा दो.
पांडु: फिर तो हम गलत होंगे ना? हमे तो पीला लगाना चाहिए.
अमित: बहुत अच्छे.. दिमाग का इस्तेमाल करने लगे हो.. तो फिर पीला लगाओ.
कुलभुषण: तो भी तो गलत होंगे मेरे भाई.. फिर तो लाल लगाना चाहिए.
जितु: ये क्या पीला.. लाल.. पीला.. लाल.. लगा रहा है.. एक काम करो दोनों को मिक्स कर दो.. बसंती रंग बन जाएगा. बसंती को रंगो बसंती रंग से.
अमित: वाह भई वाह.. एकदम दुरूस्त. इसलिए तो ये हम गुरूओं के भी गुरू है.
मास्टर: (सिर पीटते हुए) अरे रंगेंगे तब ना जब हाथ ही में आएगी. अरे भाई कोई और है क्या?
”ये सब हमारे देश में ही क्यों होता है, भारतीय नारी के साथ ही क्यों? कभी सोचा है?”
ये कौन राष्ट्रवादी भाईसाहब आ गये? – कल्लु बोला.
मास्टर: अरे ये तो जोगलिखी वाले संजय बेंगाणी हैं.. आओ भाई आओ आपकी ही कमी थी.
अमित: आओ संजय, देखें क्या तीर मारते हो.
संजय: तीर मारना तो फिर भी आसान है अमित. पर तीर हम भारतीय ही क्यों मारते है. हम 2000 वर्ष गुलाम तीर मारकर नही रहे.
जितु: सही कहा. सही कहा. तीर मारते तो नही रहते.
बनवारी: क्या नही रहते? अरे बसंती को कैसे रंगे ये कहो ना?
संजय: बसंती से आपका क्या आशय है ये स्पष्ट करें?
मास्टर: (बाल नोचते हुए) मेरे भाई, बसंती एक महिला है, हमें उसे रंगना है. सात बरस से लगे है.. रंग नही पाए.
संजय: ये हमारी सरकार की गलती है. उसमे सोच नही है. आज हम कहाँ से कहाँ होते?
अमित: भई कहाँ होते?
जितु: वहाँ जँहा कोई नही होता.
कल्लु: अरे लेकिन सरकार कहाँ से आ गई. यार मास्टर मेरे सब्र की भी एक सीमा है. ये देशी लोगों से कुछ नही होगा. विदेशी कोच को बुलाओ.
मास्टर: उसका भी इंतजाम कर रखा है. ये देखो कौन आ रहा है?
”रंगना तो बसंती ही है पर जोमता नही है. वक्त है सोचा मैने रंगो उसे फिर कहाँ?”
“अहा अहा.. ग्रेग गोल्डिंग आ गये..” मास्टरजी खुश हो गये – “अब काम बन जाएगा.”
बनवारी: ओ ग्रेग भाई अब तुम ही खैवनहार हो.
ग्रेग: खैवता तो हुं पर रंग तो उसे वो बसंती ही है.
कुलभुषण: ये कौन सी हिन्दी है. अवध की लगती है.
मास्टर: ग्रेगजी, बसंती को रंगने का उपाय बताओ.
ग्रेग: रंगा तो जापान हुं, नमस्ते पुछो. पर फिर भी बसंती ही है रंग को.
पांडु: वाह वाह जापान की बात की, अब बात बन जाएगी.
कल्लु: मेरे तो कुछ समझ नही आ रहा है, ये क्या हो रहा है. और वो इतनी भीड कैसी आ रही है?
मास्टर: अरे बापरे ये तो ब्लोगरों की पुरी टोली एक साथ आ गयी. ये ई-स्वामी, प्रत्यक्षा, पंकज बेंगाणी, आलोक, रवि कामदार, रवि रतलामी, रजनीश मंगला और वो क्षितीज अरे जापानी मुत्सु भी हैं.
ई-स्वामी: हाय हाउ डु यु डु.
बनवारी: क्या डु यु डु.. अरे भाई हु तु तु कबड्डी नही खेलनी हमे.. बसंती कैसे रंगे ये बताओ.
आलोक: चिंता ना करो, हम युँ ही रंगवा देंगे.
प्रत्यक्षा: युँ ही तो रंग ही दोगे आप, पर ना भुलो नारी है. जगत तो दीवाना हुआ जाए ऐसी प्यारी है.
रवि कामदार: नही ऐसा नही है.
रजनीश: क्या नही है?
रवि कामदार: क्या मतलब क्या नही है.
रजनीश: आपने कहा ऐसा नही है, तो बताओ क्या है?
ई-स्वामी: अरे यार ये छोडो, देबु को बुलाया कि नही.
देबाशीश: मै आ गया दोस्तो. अब सारी समस्याएँ सुलझ जाएगी.
रवि रतलामी: लेकिन समस्या क्या है?
अमित: इजी है, बसंती को रंगना है बस.
आलोक: तो प्रोबल्म क्या है? रंग दो.
जितु: पर कैसे मेरे भाई? क्षितीज तुम बताओ.
क्षितीज: पहले बताओ बसंती का सेक्स क्या है?
जितु: फिर से सेक्स आ गया.
बनवारी: ये क्या हो रहा है?
रवि कामदार्: सेक्स की छोडो, ऐसा नही है.
ग्रेग: सेक्स तो था ही हुं, पर भारत मे सब ही तो कुछ छूट नही होगा.
देबु: अरे यार इसका मुँह बन्द रखो.
रवि कामदार: रंगने के बाद बसंती कितनी मस्त दिखेगी, एकदम करीना जैसी. उसकी फोटु खिंचवाओ.
अमित: उसमे क्या है, अपने इन-हाउस फोटोग्राफर हैं ना. पंकजभाई. इधर उधर की अनाप शनाप खींच लेते हैं और कहते हैं देखो क्या अदभूत है. और लोग उल्लु भी बन जाते है.
जितु: हा हा हा हा, ये सही कहा.
पंकज: तो उसमे भी अक्ल चाहिए अमित.
अमित: तो अक्ल का सही इस्तेमाल कर ना, खींचना है तो बसंती को खींच.
कल्लु: ए ए अस्लील बातें करता है ये... बसंती को कहाँ खींच रहे हो?
अमित: अबे फोटु यार.
पंकज: तो अब तुम बताओगे क्या खींचु क्या नही.
देबु: अब तुम दोनो फिर शुरू हो गये. चिट्ठाकार मे ब्लोक कर दुंगा.
रवि कामदार: नही ऐसा नहि है.
जितु: अरे यार मंगला तु बता.
रजनीश: de askho dek gekg sogg hii.
बनवारी: ये कौन सी भाषा है भाई?
रवि रतलामी: जर्मन लगती है.
प्रत्यक्षा: जर्मन हिन्दी भाई – भाई. दोनो मिलकर करो कमाई.
जितु: अरे हिन्दी मे बोल ना.
रजनीश: मुझे क्या पता, आप इतने धुरन्धर कुछ नही कर पाए. मै क्या करुंगा.
पंकज: छोडो छोडो... मेरा नया फोटोब्लोग देखा. कमेंट दो ना.
कुलभुषण: ये ब्लोग क्या है, हमारा तो पहला ब्लोक है घर का.
मास्टर: ब्लोक नही ब्लोग! ब्लोग.
पांडु: नही नही ब्लोग को नही रंगना है.. बसंती रंगनी है.
बनवारी: मै पागल हो जाउंगा. ये लोग मुझे पागल कर देंगे.
देबाशीष: इसके बारे मे मै विस्तार से लिखुंगा. बसंती को रंगने के उपाय. इस हफ्ते के स्वादिष्ट पुस्तचिह्न.
अमित: ये किसका मारा?
आलोक: लिखोगे तो पोस्ट कब करोगे? तब तक तो होली बीत जाएगी.
प्रत्यक्षा: और नारी ही क्यों रंगेगी. जितु को भी रंग दो.
पंकज: नही नही, जितुभाई पर कलर ज्यादा लगेगा, रवि कामदार को रंग दो. दो हड्डी का है.
आलोक: ही ही ही ही, रंग रंग दो मज़ा आएगा.
बनवारी: अरे बसंती रंगनी है.
जितु: ये क्या बसंती बसंती लगा रखी है. खाली पीली टाइम बरबाद किया मेरा.
अमित: ये खाली पीली सुना हुआ लगता है, फुरसतिया कहाँ है.
मुत्सु: नमस्ते. जापान में होंगे. रंग के डर से भागे होंगे.
ग्रेग: भागा तो हुँ दोस्तों, यहीं हुँ ना. बहुत है डर तो ही है. पर होली है तो क्यों है.
बनवारी: (बाल नोचते हुए): मास्टर .. मास्टर तेरे बच्चे चुस चुस के तेरा खुन पीए. कम्बखत किन लोगों को उठा लाया रे. किस जनम का बैर निकाला?
पांडु: अरे यार मुद्दे पर आओ ना! वैसे मुद्दा क्या है?
जितु: चलो अपने अभी धांसु आइडिया देते है. GPS से ट्रेक करो बसंती को.
अमित: GPS यानि Global Position Setting. देखा क्या दिमाग पाया है.
आलोक: Setting? System सुन रखा था हमने तो.
अमित: एक ही बात है ना.
पंकज: तो क्या. बसंती तो दिख ही जाएगी.
संजय: ठिक है रंग दो, पर भारत के भविष्य का सोचो.
बनवारी: ये भारत कौन है? बसंती का यार?
संजय: छी छी, देश पर स्वाभिमान नही. हमसे सिखो या जोगलिखी पढो.
अमित: क्या पढें, नेताओं के भाषण बहुत सुने हैं.
जितु: ही ही ही.... सही कहा. तभी मै कमेंट नही देता.
देबु: ये गलत बात है, सबको ब्लोक कर दुंगा.
मुत्सु: नमस्ते. पर ब्लोग को ब्लोक करोगे या ब्लोक पर ब्लोग करोगे.
प्रत्यक्षा: वाह वाह, सही कहा. अब कहो देबु?
देबु: नासमझों को कौन कहे.
ग्रेग: हमे ही नासमझ हुँ. पर ब्लोक तो करा ही तो आज क्या है?
पांडु: आज तो रविवार है.
कल्लु: अरे हम क्या कर रहे हैं.. बसंती तो निकल जाएगी.
जितु: बन्धु, आई कब थी जो निकल जाएगी.
रवि कामदार: नही ऐसा नही है.
रजनीश: कौन निकल रही है.
प्रत्यक्षा: जरा सम्भल के....अस्लील बात नहि.
अमित: अस्लील कहाँ है.... निकलेगी तो रंगेगी ही रंगेगी.
आलोक: मज़ा आ जाएगा.
प्रत्यक्षा: घर पर भाभी नही है क्या?
पंकज: बात क्या है... रंगने मे भाभी कहाँ से आ गई.
ग्रेग: क्या है बसंती ही भाभी होगी. जितु भाई है बसंती भाभी है.
देबु: ये मै क्या सुन रहा हुँ जितु?
अमित: मुझे तो पहले से ही शक था.
संजय: अरे रे... देश की इज्जत लूट गई कुवैत मे.
जितु: ये क्या अनाप शनाप बके जा रहे हो आप लोग. ग्रेग क्या बोलता है.. समझना पडता है. वो कह रहा है, बसंती भाभी है.
आलोक: वही तो, और भाई कौन है.
जितु: हम सब भाई भाई हैं.
बनवारी: हे राम, आज के युग में भी पांचाली.
पांडु: पांचाली नही बसंती रंगनी है.
कल्लु: ये क्या हो रहा है... मै पागल हो जाउंगा मास्टर.
रवि रतलामी:टोपिक इंटेरेस्टींग है. बसंती भाभी है, भाई को ढुंढो.
मुत्सु: नमस्ते. पर हमे तो रंगने की बात सोचनी है, भाई नही ढुंढना है.
आलोक: अरे यार बसंती को रंगो ना.
संजय: बसंती ही क्यों रंगी जाती है. इस देश की नारी ही सहन करती है.
प्रत्यक्षा: जीहाँ हमने बहुत सहा है.
मुत्सु: नमस्ते. सही कहा है. जापान मे भी हाल बेहाल है.
ग्रेग: हाल तो हुँ मै बेहाल. अमरीका भी कम तो नही ही है.
देबु: चलो कही और चलें.
अमित: कुवैत चले.
रजनीश: वाह वाह वही चलते है. जर्मनी मे भी मज़ा नही है.
जितु: आपका स्वागत है. चलो इन मोहल्ले वालो को भी ले चले.
हम सबने मुडकर देखा तो सब बेहोश हो चुके थे.बुरा मत मानना भाई. होली है.