21.4.06

सरदार सरोवर पर मैं (2)

सरदार सरोवर पर बांध को देखने के लिए 3 पोइंट है. एक तलह्टी में है, जहाँ से बांध को नीचे से देखा जा सकता है. पर वहाँ कम ही लोग जाते हैं. दुसरा सबसे अधिक उपयोगी पोइंट थोडा उँचाई पर है, जहाँ से बांध एकदम समकक्ष नज़र आता है, वह बांध के दाँइ ओर है.


सरदार सरोवर पर मैं और पूजा
यहाँ से बांध का नज़ारा बडा ही मनमोहक है. सामने ही सरदार पटेल की प्रतिमा लगी है, जो शायद 12-15 फूट उँची होगी. प्रतिमा इस तरह से स्थापित की गई है कि सरदार का मुँह बांध की तरफ रहता है, मानो वे अपने सपने को साकार होते हुए देख रहे हों.

यँहा से एक रास्ता नीचे भूगर्भ में स्थित पावर स्टेशन की तरफ जाता है, जँहा दूर्भाग्य से मै नहीं जा पाया क्योंकि वर्जीत है.
इस बांध को बनाने में उपयोग में आने वाले कोंक्रीट को दो बडी बडी क्रेनो के सहारे एक महामोटी रस्सी पर कंटेनर लटका कर भेजा जाता है. उपरोक्त तस्वीर में मेरे पीछे एक तरफ की क्रेन नज़र आ रही होगी. आश्चर्य ना करें पर ये क्रेनें दुनिया की सबसे बडी क्रेने हैं. और जो मसाला रस्सीयों पर झुलता जाता हुआ दिखाई देता है, वो लगता तो एक गिलास जितना है पर वास्तव में एक बडे ट्रक में आ जाए उतना होता है.
बांध को निहार लेने के बाद आगे बढते हैं, बीच में रास्ते के उपर से आपको मोटे मोटे बिजली के तार गुजरते हुए दिखते है. उनमें कितनी मेगावॉट बिजली गुजरती है वो तो पता नही पर जोर जोर से सन-सन की आवाज़ सुनाई देती है, जो रोंगटे खडे कर देती है.
थोडा आगे जाने पर बांध की वजह से बनी एक बहुत बडी झील आती है. प्रशासन ने यहाँ बैठक की व्यवस्था की है. आप आराम से कुर्सीयों पर बैठकर दूर तक पानी ही पानी को निहार सकते है. पर पत्थर वगैरह फेंकना मना है.
वहाँ से आगे चलें तो नर्मदा मुख्य नहर का आरम्भ स्थल आता है. यहाँ से पानी मुख्य नहर में बहना शुरू होता है.
यहाँ का वातावरण बहुत ही खुबसुरत है, ऐसा लगे जैसे किसी हिलस्टेशन पर आ गये हों.
एकबार जरूर घूम आइएगा.

18.4.06

सरदार सरोवर पर मैं

इन दिनों सरदार सरोवर नर्मदा बांध का मुद्दा सुर्खियों पर छाया रहा. गुजरात की जीवनरेखा समान यह परियोजना लोगों को हमेंशा से आकर्शित करती आई है. 1998 में समाप्त होने वाली यह परियोजना सरकारी लालफितासाही के चलते तथा नर्मदा विरोधीयों की राजनिति के चलते ना जाने कितने साल पिछड गई है. वैसे इसकी उपयोगिता कोई तभी समझ सकता है जब वो गुजरात में आता है. गुजरात के कच्छ तथा सौराष्ट्र के लोगों के लिए तो यह जीने मरने का मसला है. सरदार पटेल का स्वप्न नर्मदा बांध ना केवल उपयोगी है वरन एक अच्छा पर्यटन स्थल भी है. मैं एक साल पहले गया था वहाँ.

अहमदाबाद से वडोदरा, एक्स्प्रेस वे के द्वारा करीब एक घंटे में पहुँचा जा सकता है. वहाँ से मध्यप्रदेश की तरफ एक सडक निकलती है, जो सीधे केवडीया कोलोनी जाती है. हम बस में सवार थे. पुरी जमात साथ थी और पिकनीक की बात थी. अहमदाबाद से वडोदरा जितने मजे में आए, उतना मज़ा आगे ना आना था. क्योंकि अब छोटी सडक है. खैर इस बीच मैने तो एकाध झपकी मार ली, क्योंकि सुबह जल्दी उठे थे. यही अच्छा समय होता है यहाँ आने का, एकदम सुबह सुबह घर से निकलो. जैसे जैसे केवडीया कोलोनी नजदीक आती गई, मन की उत्कंठा बढती चली गई. नर्मदा बांध को देखने की तीव्र इच्छा. कैसा लगता होगा देखने में? यही सोच रहा था. तभी एक ढाबा आया और एक साहब जलपान तथा लघुशंका निवारण को व्यथीत हो गए. धत अब और लेट होगी.

खैर वहाँ से निकले तो सामने डांग की पर्वतश्रँखला दिखाई देने लगी. क्या मौसम हो गया था. कहाँ गुजरात की गर्मी... लगता ही नहीं कि हम अभी भी गुजरात में ही थे. बस पहाड पर चढने लगी, और थोडी देर बाद हम केवडीया कोलोनी पहुँच गए. वहाँ रजिस्टर पर हमारा नाम, पता, कहाँ से आए और क्यों आए वगैरह लिखा गया. और हम निकल पडे मंज़िल की ओर. हाथ में एक निर्देशिका भी आ गई थी.

मैने नक्शे पर नज़र डाली तो अब बान्ध दिखाई देने ही वाला था. मैनें कहा, सब लोग इधर देखो, बाँई ओर... और सब देखने लगे उत्सुकता से. एक छोटा सा पहाड था हमारे आगे जो धीरे धीरे पीछे सरक रहा था, क्योंकी बस आगे जा रही थी. और बस तभी जोर से झर-झर की आवाज़ सुनाई देने लगी..जैसे गरज के साथ बारीश हो रही हो. और हमें पहाड के पीछे से बांध की झलक दिखाई दी. कितना आलौकिक दृश्य था वो!! मैं बस अभीभूत होकर निहारता ही रहा और एक दुसरा पहाड बीच में आ गया.
(क्रमश:)

15.4.06

वो दिन जो पीछे छूट गये

कल रात युहीं बैठा बैठा मेरे सिस्टम की कुछ पुरानी फाइलें देख रहा था. तभी अचानक एक बहुत पुराने फोल्डर तक पहुँच गया. उसे खोलने पर मेरी पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो गई.

जब मैं विद्यार्थी था. हम ग्राफिक डिजाईनिंग सिखते थे. उस फोल्डर मेरे विद्यार्थीकाल की बनाई हुइ तस्वीरें तथा ग्राफिक्स मिले. सोचता हुँ, क्या दिन थे वो भी. रात को 11-12 बजे तक हमारा गुट काम करता था, फिर किटली पर चाय पीने जाते थे. नई नई चीजे बनाते थे. मैने 19 साल की उम्र में मल्टीमिडिया इंस्टीट्युट मे दाखिला लिया था.

कोलेज की पढाई में तो कभी मन लगा ही नहीं था. हर समय डिजाइन, ग्राफिक्स और विज्ञापनों में खोया रहता था. 20 साल की उम्र में मुझे उसी इन्स्टीट्युट में मास्साब बना दिया गया. बहुत खुश हुआ था उस दिन... पढाई पुरी हुई भी नही थी, मास्साब बन गया. 2 साल बाद मेरी पदोन्नती हुई और मै टेक्नीकल हेड बना. उसके 1 साल बाद मैने नौकरी छोड दी.

वो दिन भी याद है, बडा कठोर निर्णय था. अच्छी खाशी पगार को छोड व्यापार में आना वो भी तब जब व्यापार एकदम नई सांसे ले रहा हो आसान तो नहीं ही हो सकता. पर मैं थक चुका था, इंस्टीट्युट की अंदरूनी राजनिती से. मैने भैया से कहा "छोड दुँ?" उन्होने कहा "छोड दे". बस छोड दी.

छवि के शुरूआती दिन याद करने को मन नही करता. लेकिन आज लगता है वो निर्णय सही था.

उन दिनों मे मेरे पास फुर्सत के कुछ क्षण होते थे, और मै कुछ ना कुछ बनाता रहता था. उन दिनों मे मै सुबह 5.30 बजे उठता था, 6.15 की बस पकड कर इंस्टीट्युट जाता था, वहाँ से निकलने का कोई समय निर्धारीत नही होता था, फिर हमारे साइबर केफे जाता था (ये भी हुआ करता था कभी), फिर रात को 12-1 बजे घर. घर तो लगभग बेहोशी की हालत में ही जाता था. :-)

छोडिये...... ये दिखिए- उन दिनो में बनाए गए कुछ 3D चित्र. आपको कैसे लगे बताइगा.














ये चित्र मैने 3D Studio Max सोफ्टवेर में बनाए थे.

8.4.06

आइए ये बेज अपने ब्लोग पर लगाएँ

इस ब्लोग की साइडबार पर देखिए. आपको एक बेज नज़र आ रहा है "मेरा भारत मेरा गौरव". ये मैने भारत के अधिकारीक पोर्टल से लिया है. मुलतः यह बेज़ अंग्रेजी मे उपलब्ध था.



लेकिन मैने इसका हिन्दीकरण कर दिया है. आइए आप भी अपने अपने ब्लोग पर यह बेज लगाइए. सचमुच इसे लगाने के बाद एक अलग सी खुशी मिल रही है. इसे लगाने का कोड यह रहा. :

कोड की जगह इमेज खुले तो view - source मे जाकर कोड कोपी करलें.

5.4.06

भ्रमण: फोटोग्राफरों का स्वर्ग अहमदाबाद का सरखेज रोज़ा

अहमदाबाद आएँ और कहीं घुमने फिरने ना जाएँ ये हो नही सकता, और घुमने निकले और सरखेज रोज़ा ना जाएँ वो भी हो नही सकता.

अहमदाबाद वास्तुकला की दृष्टि से काफि ख्यातिप्राप्त शहर है. पौराणिक, परम्परागत और आधुनिक सभी तरह की वास्तुकला अहमदाबाद मे देखने को मिलती है. तभी तो मशहुर वास्तुशिल्पी ला कार्बुज़ीय ने अहमदाबाद को वास्तुकला का स्वर्ग कहा था. पुराने तथा परम्परागत वास्तुकला के दर्शन करने हो तो पुराने शहर मे निकल पडिए. यहाँ इस्लामिक और हिन्दु वास्तुकला का अद्भूत संगम देखने को मिलता है. ऐसी ही एक जगह है सरखेज रोज़ा.


सरखेज रोज़ा पर छायांकन में व्यस्त मैं यानि मास्साब यानि पंकज बेंगाणी. तस्वीर खींची अभिजीत ने.
सरखेज रोज़ा की खिंची हुई तस्वीरों के लिए देखते रहिए मेरा फोटोब्लोग.



संक्षिप्त इतिहास:
सरखेज रोज़ा अहमदाबाद के उपनगरीय विस्तार सरखेज में स्थित है. यहाँ संत अहमद खंटु गंजबक्ष की दरगाह है. यहाँ पर राजा शाह आलम बेगडा तथा उसकी बेगम की कब्र भी है. साथ ही राजा का ग्रीष्मकालीन महल भी स्थित है. यह महल सन 1400 इसवी मे बनाया गया था. संत गंजबक्ष महमुद बेगडा के आध्यात्मिक गुरू थे.

संक्षिप्त विवरण:
सरखेज रोज़ा में बीचो बीच एक मानवनिर्मित झील है, तथा बाकी के वास्तुशिल्प इस झील के चारों ओर बने हुए है. एक तरफ संत गंजबक्ष की दरगाह तथा मस्जीद है दुसरी तरह महमुद बेगडा का महल है. यहाँ हिन्दु स्थापत्य का बेमिसाल नज़ारा देखने को मिलता है. आज महल के तो कुछेक अवशेष ही साबुत बचे है.
अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें.

भ्रमण का समय:
सरखेज रोज़ा जाने का सर्वोत्तम समय प्रभात का है. सुबह सुबह 6 से 7 बजे तक जाना उपयुक्त है. हाँ साथ मे केमेरा जरूर लेकर जाएँ, नही तो पछताएंगे.

1.4.06

कुछ पता भी है क्या हो रहा है?

बस यही तकलीफ है ना आप लोगों के साथ. ब्लोग लिखते रहते हो. दीन-दुनिया की कुछ ख़बर भी है आपको. देखिए क्या से क्या हो गया है एक रात में:


  1. नारद मुनि हडताल पर जा रहे है. जीँहा, क्या करे वो भी. 160 हिन्दी ब्लोगर बस दिन रात जुटे रहते है, कुछ भी अगडम बगडम छापते रहते है. अब नारदमुनि किस किस की ख़बर रखेंगे. बस जा रहे हैं हडताल पर. अब बैठे रहो. मिलने से रही नई खबर. लोग लिखते रहेंगे, और आप बस ढुंढते रह जाओगे.
  2. अमित गुप्ता का ब्लोग भी बन्द हो रहा है. मेजिक आई-वेजिक आई सब भुल जाओ. कल रात उन्होने फोन पर बताया, वे विश्व हिन्दु परिषद के कार्यकारी सचिव बनने जा रहे है.
  3. और अपने राष्ट्रवादी संजयभाई जोगलिखी वाले राष्ट्रद्रोही हो गए है. परमानेंटली अमरीका में सेटल होने जा रहे है. अब सिर्फ अंग्रेजी मे लिखेंगे.
  4. रवि कामदार को वैराग्य हो गया है. आदरणीय शंकराचार्य की परम कृपा से दिक्षीत होकर अब हिमालय जा रहे है, तपस्या करने.
  5. ई-स्वामी ने अपने हिन्दीनी टुल को कुछ जंतर - मंतर कर दिया है. अब अगर उस टुल मे हिन्दी मे लिखोगे तो गुजराती छापेगा, गुजराती लिखोगे तो पंजाबी छापेगा और पंजाबी लिखोगे तो भगवान ही मालिक है क्या छापेगा!
  6. आलोकभाई की गुगल से किट्टा हो गई है. अब वो लिखेंगे... "याहु पंजाबी में".
  7. प्रत्यक्षाजी कविता लिखना ही भुल गई है. सोचती रहती हैं क्या लिखुं ... क्या लिखुं... क्या लिखुं....
  8. देबुदा हिन्दी ब्लोगजगत छोड रहे है. अरे भाई एपल से ओफर आई है उन्हे. कौन छोडेगा. ह्म्म्म.... तो सबसे पहले वो कम्पनी का नाम ही बदलने की सोच रहे हैं... हिन्दी मे रखेंगे.... "सेब" स्लोगन होगा.... सेव योर मनी विथ सेब...!!! झक्कास.
  9. रजनीश मंगला भी ब्लोगजगत से टा-टा बाई बाई कर रहे है. अरे भाई.. जर्मनी मे राष्ट्रपति चुनाव जो लडने वाले है. जय हो!
  10. प्रतिक अब ब्लोग लिखने वाले हैं.. वाह वाह क्या बात है. अब वो टिप्पणीयाँ नही देंगे. बस दिन रात लिखेंगे. और खबरदार जो किसीने कोई टिप्पणी दी तो.
  11. मेहरा साहब को सलाम. शिष्ट हिन्दी कैसे लिखें उसपर ब्लोग शुरू करने वाले है. मेरा अभिमान!
  12. जितुजी... जितुजी को बचाओ कोई.... अरे साप्ताहिक जुगाड जुटाते जुटाते ऐसे उलझे हैं कि निकल ही नही रहे है. दिन रात जुगाड - जुगाड जपते रहते हैं... कोई है!!!!
  13. डॉ. सुनिल नेपाली हो गए. हाय राम..... किंग ज्ञानेन्द्र ने उनको अपना निजी चिकित्सक नियुक्त कर लिया. अब तो सिर्फ नेपाली मे लिखेंगे.
  14. उडन तस्तरी उड गई.... कहाँ ढुंढोगे... मिलेगी नही अब.
  15. फुरसतीया... खाली पीली.... युँही बैठे रह्ते थे ना. आ गए लपेटे में.. सरकार उठा ले गई.. रोजगार गेरेंटी कानुन में.. चलो काम करो अब...
  16. और मैं.... पंकज बेंगाणी. मुझे भी भूल जाइए.. वैसे भी अंट संट लिखता रहता था. चलो अच्छा है...मै तो ब्लोगर.कॉम का युजर-पासवर्ड ही भूल गया हुँ. अब सब बंद. कोई मंतव्य नही... कोई कैमेरा नही.... कोई पाठशाला नही.... बस हरी किर्तन करो अब!!

ये सब अप्रेल के फूल थे. क्या आप भी! कुछ भी पढते रहते हो!!