29.8.06

भारत की बिकाऊ गरीबी :: The Great Indian Slum Tourism

रोज सुबह आठ बजे अपने नहा धोकर, एकदम फ्रेश होकर ना डियो शियो लगाकर क्या करते हैं?
टाइम्स नॉउ (Times Now) चैनल चलाते हैं। काहे बोलो?

1. उनका सेट बडा धांसु है, स्टाइल बडी खाश है
2. फोगट की चिक पिक नहीं सुनने की मिलती

और नम्बर 3..... वो ही तो मेन है भाई। उपर के दो तो चलो अपनी इमेज बचाने के लिए लिख दी। मेन वजह है नुपुर!! वो एंकर। हाँ जी बडी सोणी कुडी है जी। अपने तो वही देखते हैं। वो बोलती है मैं देखता हुँ। अब दुनिया जले तो जले। मेरी बहना कहती है इसके दाँत खराब है, मै कहता हुँ तो?!? तेरा क्या जाता है भाई! बीवी बोले मोटी है!! मै कहता हुँ तो?!? तु राजदीप से काम चला। अपने को तो यही सुहाती है।

हो गया...... आ गया मजा? मन में रट लिया टाइम? पता है कल आपकी टीवी पर 8 बजे क्या चलेगा। चलो अब मटरगस्ती छोडके मुद्दे पे पल्टी मारते हैं -

आज नुपुर बोली बिक गई गरीबी!!

एल्लो पता ही नही था अतुल्य भारत में सब बिकता है। अब लोगों ने गरीबी भी बेच दी।

कुडी के खबरीयों को पता चला की कुछ टुर ओपरेटर हैं, जो अपने इंडिया के टुर पेकेज में स्लम टुर भी शामिल करते हैं। हाँ सच्ची! फोटु भी दिखाई अपने को। एक टुर गाइड कुछ गोरे चिट्टे लोगों को धारावी घुमा रहा था।

"सी सर.. हाउ पुअर। सी दिस.. ओल मेश.. डु यु लाइक इट? केन आइ शो यु मोर? कम हीयर... ओह नो नो सर.. सोरी। इन योर पेकेज यु आर नोट एलीजीबल टु सी दिस.. नो नो.. नो हाल्फ नेकेड चाइल्डस... प्लीज चुज अनादर पेकेज..."

किधर घुम रहे थे, बोलो? हाँ........ आमची मुम्बई में। अरे बॉस धारावी है ना! बस काम हो गया। विदेशों से बुलाओ गोरों को और दिखाओ धारावी.. और बेच दो गरीबी!!

इत्ता गुस्सा आया हुज़ुर कि पुछो मत। पर क्या करें, अपने लोग ही बेच रहे हैं गोरों को क्या दोष दें। और मुखमंतरी का कहते हैं ये भी सुनो। बोले हमें कुछ ना पता है।

ओये सच्ची हुजुर! कुछ ना पता?
मालिक ये पता है धारावी कहाँ है? कि वो भी भूल गए?

छोडो यार अपने तो धन्धा करते हैं? धारावी की गरीबी तो बिक गई। अब क्या बेचें?!?

हाँ गुड आइडिया.... चलो कोलकाता का सोनागाच्छी बेचते हैं। वंडरफुल आइडिया।

15.8.06

बापु आज हम सठिया गए हैं





बापु हमारे धर्मनिरपेक्ष देश में आज,

सिख प्रधान है, मुस्लीम सरदार है।
और एक इंडिइटालीन मेम भी है,
बापु अब हम सठिया गए हैं।

स्टींग ऑपरेशन में दिखते हजारों घोटालें हैं,
पर केमरे के पीछे सब जीजा-साले हैं,
बापु अब हम सठिया गए हैं।

खाने की कोई कमी नहीं पर फिर भी,
राशन छोड खाते घास चारें हैं,
क्या दिल्ली, क्या बम्बई, कुछ याद नही,
उन्हे तो शारजाह दुबई प्यारे है,
बापु अब हम सठिया गए हैं।

रोज मार खाते हैं,
और रोज गाना गाते हैं।
कि कल जो मारा तुने तो, देख लेना,
नही मारेंगे नहीं.. फिर गाना गाएंगे,
कि देख ले नालायक लगी ही नही,
और कितना मारेगा, थक जाएगा,
पर हम मार खाकर नही थकेंगे, क्योंकि 2000 साल से वही तो खाया है।
खाना नही तो यही सही,
बापु हम सठिया गए हैं।

अच्छा हुआ तुम मर गए बापु!
एक बार ही मरे.. नही तो आज रोज रोज मरते!!

लेकिन बापु सिर्फ अन्धेरा नही हैं, कुछेक किरणे भी है।

राजीवभाई कहते थे टेक्नोलोजी लाएंगे
तब हम हंसते थे कम्प्युटर लाएंगे
आज तो हर जगह वही लगाए बैठे हैं,
कहाँ सोचा था, उसीकी खाएंगे।
बापु अब हम सठिया गए हैं।

एक उपग्रह गिर गया तो क्या, कल हम चाँद पर भी जाएंगे,
रोज गिरते हैं, रोज सम्भलते हैं,
पुरानी बातें क्या याद करें, गीत नया अब गाएंगे।

बापु मत सोचना हम वैसे ही सठियाए हैं, उम्र से थोडे ही बुढे होते हैं।
कर्मो से होते हैं, मन से होते हैं।
हम तो अभी जवान हैं।

11.8.06

भोली गाय, धुर्त सियार और कपटी बन्दर

जंगल महासभा की बैठक चल रही थी। सबसे हरे भरे जंगल का राजा बन्दर, उभर रहे नए जंगल
की “सरदार” गाय और उसके पडोसी बीहड का तानाशाह सियार बैठे बतिया रहे थे।


बन्दर: नॉव वी आर मोर सेफ एंड सिक्योर!!
सियार: यस बॉस। यु आर 100% सेफ, डोंट वॉरी।
गाय: हुजूर जरा हमारी भी तो सुनो।
बन्दर: (लॉलीपोप चुसते हुए) हाँ बोलो क्या प्रोब्लम है?
गाय: वही जो आपकी प्रोब्लम है।
बन्दर: हमारी क्या प्रोब्लम है? सब कहते हैं मै ही प्रोब्लम हुँ!! खी खी खी...
सियार: (लार टपकाते हुए) ए बॉस..
बन्दर: क्या है?
सियार: एक लोलीपॉप मुझे भी दो ना...
बन्दर: धत तेरे की... इतनी चॉकलेट फ्री में देता तो हुँ, जी नहीं भरता तेरा।
सियार: उससे तो खाली जेबें ही भरती है ना बॉस, कुछ खाने को नही मिलता।
बन्दर: अरे भूखे! और कितना खिलाऊँ? सब मुफ्त में खाने की आदत पड गई है तुझे। खी खी खी...
गाय: अरे इसे मुफ्ते में खिलाते रहोगे या कुछ हमारी भी सुनोगे?
बन्दर: हाँ तो बोलो ना। हमने कब मना किया है। तुम भी हमारी दोस्त हो।
गाय: बात वही पुरानी है, इस सियार के जंगल के सांड हमारे यहाँ उत्पात मचाते हैं।
बन्दर: बहुत बुरी बात है, हम तुम्हारे साथ हैं।
सियार: क्या हुजूर आप भी। पहले सबूत तो पुछो!
बन्दर: हाँ हाँ, सबूत तो दो।
गाय: अरे कितने सबूत दें। दे देकर तो थक गए। ये देखो सांड के पावँ के निशान की फोटो।
बन्दर: हाँ निशान दिखाई तो दे रहे हैं। खी खी खी। जाने दो चॉकलेट खाओ।
सियार: (आँख मारते हुए) क्या हुजूर, कहाँ दिखाई दे रहे हैं निशान।
बन्दर: अरे हाँ भई, क्लीयर नहीं है, धुन्धला धुन्धला ही दिखे है। तुम एक काम करो रंगीन फोटो लाओ तो समझ आए, क्यों सियार।
सियार: दुरूस्त है, एकदम।
गाय: अरे साहब, रंगीन फोटो ही तो है।
बन्दर: आँए! रंगीन है, वाकई!!
सियार: (आँख मारते हुए) लेकिन हुजूर ईस्टमेन कलर तो नही है ना।
बन्दर: यह भी खूब रही। खी खी खी। जाओ भई ईस्टमेन कलर फोटो लाओ तो समझ आए।
सियार: और अन्नदाता, क्या भरोसा ये सांड के ही निशान हैं? मुझे तो इन गायों के निशान ही लगते हैं।
गाय: अरे गायों के पावं छोटे होते हैं, सांडो के बडे। ये सांडो के निशान हैं। आए दिन उत्पात मचाते हैं।
सियार: कहाँ मचाते हैं, बेचारे वो तो विद्यार्थी हैं।
गाय: और बन्दर साहब, आप ना भूलें आप भी इन सांडों से परेशान हैं। याद है कैसे इन सांडों ने आपके जंगल के दो बडे बडे पेड गिरा दिए थे।
बन्दर को जैसे जोर का झटका लगा, उछलकर बोला: ओये, यह तो भूल ही गया था। क्यों रे सियार, कंट्रोल काहे नहीं करता इन सांडो को?
सियार: हुजूर वो मैरे बस में कहाँ है, अरे हम तो खुद उनसे परेशान हैं।
बन्दर: सच्ची?
सियार: मुच्ची!!
बन्दर: तब ठीक है। देखो गाय यह सियार भी तो परेशान है। हम सब एक हैं।
गाय: अरे मालिक, इसके जंगल की फसल खाकर ही तो तगडे सांड बने हैं। इसको बोलो उनको घास डालना बन्द करे।
बन्दर: कर देगा, अभी बच्चा है। नादान है।
गाय: क्या खाक बच्चा है, पचास साल से ज्यादा का तो हो गया।
सियार: देखो ना बन्दर अंकल, ये चिढाती है।
बन्दर: (गुलाटी मारकर) जबान को लगाम दे गाय वरना खैर नहीं।
गाय: (गुस्से से) अच्छा यह बात है, देख बन्दर अब हम तुम्हारे मोहताज नहीं।
सियार: देखा। देखा मालिक। कैसे नाम से बुलाने लगी। इसकी यह जुर्रत। मै तो पहले ही कहता था इसको सर पर मत बिठाओ, सर पर चढकर नाचेगी एक दिन। देखा नहीं पडोसी जंगल का ड्रेगन कैसे नाचने लगा अब आपके सर पर।
बन्दर: हाँ यार, ऐ गाय औकात में रह। वो देख वो इंग्लीस्तानी छुटकु बन्दर कैसे मैरी आज्ञा में चलता है। टोनी बेटा गुलाटी मार के दिखा तो। हाँ... देखा कितना प्यारा बच्चा है। ऐसे रहने का।
सियार: ही ही ही... कैसा नोटंकीबाज है, छुटकु बन्दर। और उसी छुटकु ने गाय के जंगल पर कित्ते साल राज किया था ना मालिक।
गाय: मत भूलो तब तुम्हारा हमारा एक ही जंगल था।
सियार: हाय हमारी बदनसीबी। लेकिन आज तो हम बन्दर के साथ हैं। बन्दर – सियार भाई भाई।
बन्दर: (उछलते हुए) हाँ हाँ , बन्दर – सियार भाई भाई, आओ मिलकर करें लडाई।
गाय: इतना उछलो मत गिर जाओगे।
बन्दर: खी खी खी... गिरे हुए क्या गिरेंगे? देखो मै तो रोज गिरता हुँ। कुछ नहीं होता। लो देखो फिर गिर गया। खी खी खी।
सियार: मालिक मैं भी गिरूंगा, मै भी गिरूंगा।
बन्दर: तो गिर ना! रोज गिरा कर।
सियार जोर से उछला और धम्म से गिरा। गिरते ही नाचने लगा: गिर गया, गिर गया!!
बन्दर: बेटा लगी तो नहीं।
सियार: ना मालिक। गिरता मैं हुँ, चोट तो गाय को लगती है। ही ही ही ही।

(गाय चुपचाप देखती ही रही। बहस जारी है)