मुर्गीबाई की समाधी
ये बर्ड फ्लु क्या फैला चारों और हडकंप मच गया. छूत की बिमारी है भाई. बचाव ही सुरक्षा है. अपने आसपास के 10 किलोमिटर के दायरे में भी किसी को न होनी चाहिए, नही तो समझो शामत आ गयी. सरकार तो जो करे सो करें पर अपनी सावधानी अपने हाथ है. मेरे पडोसी कल्लुमियाँ ने मुर्गी पाल रखी थी. बिचारी कितनी नेकदिल थी. सुबह सवेरे अलार्म घडी का काम किया करती थी. बस एक दिन उसकी घडी उल्टी चल गयी.
समाचार आया कि नवापुर मे मुर्गीयाँ मारी जा रही है. बर्डफ्लु फैल रहा है. बस मौहले की टोली कल्लु के घर जमा हो गयी. और शुरू हो गयी गर्मा गर्मी:
पांडु पहलवान: ओये कल्लु बाहर निकल.
कल्लु: आ रहा हुँ ना, गला क्यों फाड रहा है.
पांडु: गला नहीं यहाँ तो अपनी फट पडी है. तेरी छमकछल्लो को बाहर निकाल.
कल्लु: जबान संभाल के बात कर पंडवा, तेरी भोजाई को क्या बोलता है.
पांडु: (गला फाड के हँसा था) ओये वो मुर्गी कब से तेरी जोरू हो गई. कब किया रे निकाह.
कल्लु: मुर्गी बने तेरी घरवाली. मेरी तो पालतु है. तुझे क्या तकलीफ है.
शर्मा: देखो कल्लुमियाँ हमको नहीं समाज को तकलीफ है. बर्डफ्लु फैल रहा है और कहते है मुर्गीयो को सबसे पहले होता है.
कल्लु: तो होता है तो होने दो, तेरे बाप का क्या जाता है?
शर्मा: अबे तो बाप ही चला जाएगा तो. मुर्गी की बिमारी इंसान को लग रही है.
कल्लु: ऐसा कभी हुआ है क्या. मुझे तो कुछ नहीं हुआ जो तेरा बाप मर जाएगा.
सोहनलाल: अरे हम सब मारे जाएँगे कलवा, समझा कर चीज को. मुर्गी को बाहर निकाल. हलाल करना है.
कल्लु: अबे हलाल हो तेरा कुत्ता जो बात बेबात भोंकता है, मेरी मुर्गी क्यो हो हलाल. ईद से पहले ना काटने दुंगा.
सोहनलाल: ईद तक बचेगा तो काटेगा ना? सारा उछलना भूल जाएगा बच्चु. बर्डफ्लु बडी उँची बिमारी है.
बनवारी: और नहीं तो क्या. हम क्या दुश्मन है क्या रे तेरे. सबकी भलाई इसीमे है कल्लु, कर दे मुर्गी कुर्बान. देख अल्लाह को भी कुर्बानी प्यारी है.
कल्लु: तो तु क्यों नहीं कट जाता.
बनवारी: मै क्या मुर्गी हुँ क्या. फालतु की बकवास बंद कर. मुर्गी निकाल बस.
कल्लु: मेरी मुर्गी एकदम भली चँगी है. काटना है तो सोहनलाल का कुत्ता काटो.
सोहनलाल: बर्डफ्लु हुआ है. कुत्ताफ्लु नहीं हुआ कि कुत्ता काटो. और किसने कहा भलीचंगी है तेरी मुर्गी? सारी रात तो छिंक रही थी.
कल्लु: मुर्गीयाँ कब से छिंकने लगी रे. काहे को बकवास कर रहा है.
सोहनलाल: हाँ छिंक रही थी. सो बार छिंक रही थी. बनवारी को पूछ लो.
बनवारी: हाँ मैने अपनी आँखो से देखा है. छिंक छिंक कर लाल हो गयी थी. भैया बडा जोखिम है. जल्दी से अल्लाह प्यारी कर दो उसे.
कल्लु: बस बहुत हो गया. मेरी मुर्गी नहीं कटेगी तो नहीं कटेगी.
कुलभुषण: देख कलवा सीधी तरह से मान जा. नहीं तो हमें उंगली टेढी करनी भी आती है.
कल्लु: अच्छा, तो क्या कर लोगे जरा मै भी तो जानुं.
कुलभुषण: रूक जा अभी स्वास्थ्य मंत्रालय को फोन लगाता हुँ, फिर देखता हुँ कैसे बचेगी तेरी मुर्गी.
कल्लु: मै भी मेनका गांधी को फोन कर सकता हुँ ये मत भुलो.
कुलभुषण: ये लो भाईयों, ये मेनका को फोन करेगा. अरे मेरे विश्वामित्र. भईए...मेनका तो खुद अपनी जान बचाकर बैठी है और ये मुर्गी बचा रहा है.
बनवारी: छोडो भाईयों ये ऐसे नही मानेगा, चलो हम ही ले आते है मुर्गी.
कल्लु: (अब थोडा ठंडा पडने लगा था) अरे अरे रहम करो, हम तो साथ रहते है भाईओं की तरह. साथ उठना बैठना है.
शर्मा: वही तो तकलीफ है कलवा. साथ उठना बैठना है. स्साला तु तो किटाणु लेकर आएगा. हमारे बाल बच्चों को भी नहि छोडेगा.
कुलभुषण: समझदारी दिखा कल्लु, कर दे मुर्गी हलाल.
कल्लु: (अब तक समझ गया था कि अब और कोई रस्ता नहीं है) सब ठीक है भाई. पर मेरे बाल बच्चों का तो सोचो. उस मुर्गी ने तो अब तक अंडे भी देने शुरू नहीं किए. आगे अंडे देगी तो दो पैसे कमाउगाँ ना साहब.
उसकी तुम चिंता ना करो, उसका उपाय है – यह किसने कहा. सबने मुड कर देखा तो मास्टरजी आ रहे थे. इस तरह की ज्ञान की बातें तो मास्टरजी ही करते है. ना जानते हों तो हिन्दी पिक्चर देख लो. खैर आगे सुनिए...
पांडु पहलवान: चुप कर मास्टर, फोगट का ज्ञान मत दे. मुर्गी को बचाने की कोशिष मत कर.
कुलभुषण: पांडु की छोडो मास्टरजी, पर उपाय क्या है. मुर्गी को तो छोड नहिं सकते.
मास्टरजी: ठीक है ठीक है पर कुछ ऐसा करें की सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टुटे.
बनवारी: मतलब?
पांडु पहलवान: मतलब गया भाड मे, मुर्गी निकालो फटाफट. कुर्बानी देनी है.
मास्टरजी: वही तो यानि कि कुर्बानी भी हो जाए और कल्लु को दो पैसे भी मिल जाए.
बनवारी: हम क्यों देने लगे कलवा को पैसे, यहाँ तो वैसे ही लगी पडी है.
मास्टरजी: आप से कौन मांग रहा है. हम तो कह रहे है मुर्गी काटो मत समाधी दे दो.
बनवारी: समाधी?
कुलभुषण: समाधी?
शर्मा: समाधी?
कल्लु: समाधी?
मास्टरजी: हाँ समाधी. फिर एक मंदिर बना देंगे. आने जाने वाला चढावा चढा देगा. कलवा को दो पैसे मिल जाएंगे.
कल्लु: ओ भाई मास्टर हमारे कौम मे यह सब नही होता.
मास्टरजी: अच्छा, तो रामदेव पीर की मजार पर चादर चढाने क्यो जाते हो?
पांडु पहलवान: ये सही कहा मास्टर, अब बोल कलवा.
बनवारी: हाँ हाँ ये सही है पर चढावे मे हमारा हिस्सा भी होगा.
शर्मा: हाँ भाई, सोसाईटी भी कोई चेज होती है.
कल्लु: ठीक है, 50-50 हिस्सा.
बनवारी: मंजुर
शर्मा: मंजुर
कुलभुषण: मंजुर
अब तो कल्लु को हसीन हसीन ख्वाब आने लगे. रोज का 500 रूपये का केश चढावा भी आए तो महिने का 15000? वाह.
शर्मा: क्या सोच रहा कलवा. युँही लोग मुर्गी माई पर चादर चढाने आते रहे तो सोच साल दो साल मे पुरा पोल्ट्रिफार्म खोल देगा तु तो.
कल्लु: बस बस बात एकदम खरी है. जल्दी से समाधी दो मुर्गी को. किधर है रे अपनी रेशमा.
बस सब लोग मुर्गी ढुंढने मे लग गये. पर वो कहाँ मिलनी थी. नहीं मिली.
इतने मे कल्लु का बेटा दौडता हुआ आया.
कल्लु: किधर भटक रहा था नालायक. एक मुर्गी नहिं संभाल सकता. किधर है बोल.
बेटा: अपनी मुर्गी?
कल्लु: ना पडोसी की. अबे जल्दी बोल किधर गयी.
बेटा: वो तो छन्नुमियाँ के मुर्गे के साथ थी सुबह तो. तब से दोनो नहीं दिख रहे. पता नही किधर गये.
कल्लु को तो काटो तो खून नहीं. सारे सपने चकनाचूर हो गये. पोल्ट्रीफार्म उजड गया. मुर्गी भाग गयी.
किसी को बर्डफ्लु याद नहीं रहा. सबको चढावा ही याद आता था. काश मुर्गी मिल जाए तो समाधी दे. काश बर्डफ्लु कुछ दिन और फैलता रहे. कल्लु की नहीं तो किसी और कि मुर्गी कि बना देंगे समाधी. कहीं ना कहीं तो बन जाएगी “मुर्गीबाई की समाधी”.