28.2.06

मुर्गीबाई की समाधी

ये बर्ड फ्लु क्या फैला चारों और हडकंप मच गया. छूत की बिमारी है भाई. बचाव ही सुरक्षा है. अपने आसपास के 10 किलोमिटर के दायरे में भी किसी को न होनी चाहिए, नही तो समझो शामत आ गयी. सरकार तो जो करे सो करें पर अपनी सावधानी अपने हाथ है. मेरे पडोसी कल्लुमियाँ ने मुर्गी पाल रखी थी. बिचारी कितनी नेकदिल थी. सुबह सवेरे अलार्म घडी का काम किया करती थी. बस एक दिन उसकी घडी उल्टी चल गयी.

समाचार आया कि नवापुर मे मुर्गीयाँ मारी जा रही है. बर्डफ्लु फैल रहा है. बस मौहले की टोली कल्लु के घर जमा हो गयी. और शुरू हो गयी गर्मा गर्मी:

पांडु पहलवान: ओये कल्लु बाहर निकल.
कल्लु: आ रहा हुँ ना, गला क्यों फाड रहा है.
पांडु: गला नहीं यहाँ तो अपनी फट पडी है. तेरी छमकछल्लो को बाहर निकाल.
कल्लु: जबान संभाल के बात कर पंडवा, तेरी भोजाई को क्या बोलता है.
पांडु: (गला फाड के हँसा था) ओये वो मुर्गी कब से तेरी जोरू हो गई. कब किया रे निकाह.
कल्लु: मुर्गी बने तेरी घरवाली. मेरी तो पालतु है. तुझे क्या तकलीफ है.
शर्मा: देखो कल्लुमियाँ हमको नहीं समाज को तकलीफ है. बर्डफ्लु फैल रहा है और कहते है मुर्गीयो को सबसे पहले होता है.
कल्लु: तो होता है तो होने दो, तेरे बाप का क्या जाता है?
शर्मा: अबे तो बाप ही चला जाएगा तो. मुर्गी की बिमारी इंसान को लग रही है.
कल्लु: ऐसा कभी हुआ है क्या. मुझे तो कुछ नहीं हुआ जो तेरा बाप मर जाएगा.
सोहनलाल: अरे हम सब मारे जाएँगे कलवा, समझा कर चीज को. मुर्गी को बाहर निकाल. हलाल करना है.
कल्लु: अबे हलाल हो तेरा कुत्ता जो बात बेबात भोंकता है, मेरी मुर्गी क्यो हो हलाल. ईद से पहले ना काटने दुंगा.
सोहनलाल: ईद तक बचेगा तो काटेगा ना? सारा उछलना भूल जाएगा बच्चु. बर्डफ्लु बडी उँची बिमारी है.
बनवारी: और नहीं तो क्या. हम क्या दुश्मन है क्या रे तेरे. सबकी भलाई इसीमे है कल्लु, कर दे मुर्गी कुर्बान. देख अल्लाह को भी कुर्बानी प्यारी है.
कल्लु: तो तु क्यों नहीं कट जाता.
बनवारी: मै क्या मुर्गी हुँ क्या. फालतु की बकवास बंद कर. मुर्गी निकाल बस.
कल्लु: मेरी मुर्गी एकदम भली चँगी है. काटना है तो सोहनलाल का कुत्ता काटो.
सोहनलाल: बर्डफ्लु हुआ है. कुत्ताफ्लु नहीं हुआ कि कुत्ता काटो. और किसने कहा भलीचंगी है तेरी मुर्गी? सारी रात तो छिंक रही थी.
कल्लु: मुर्गीयाँ कब से छिंकने लगी रे. काहे को बकवास कर रहा है.
सोहनलाल: हाँ छिंक रही थी. सो बार छिंक रही थी. बनवारी को पूछ लो.
बनवारी: हाँ मैने अपनी आँखो से देखा है. छिंक छिंक कर लाल हो गयी थी. भैया बडा जोखिम है. जल्दी से अल्लाह प्यारी कर दो उसे.
कल्लु: बस बहुत हो गया. मेरी मुर्गी नहीं कटेगी तो नहीं कटेगी.
कुलभुषण: देख कलवा सीधी तरह से मान जा. नहीं तो हमें उंगली टेढी करनी भी आती है.
कल्लु: अच्छा, तो क्या कर लोगे जरा मै भी तो जानुं.
कुलभुषण: रूक जा अभी स्वास्थ्य मंत्रालय को फोन लगाता हुँ, फिर देखता हुँ कैसे बचेगी तेरी मुर्गी.
कल्लु: मै भी मेनका गांधी को फोन कर सकता हुँ ये मत भुलो.
कुलभुषण: ये लो भाईयों, ये मेनका को फोन करेगा. अरे मेरे विश्वामित्र. भईए...मेनका तो खुद अपनी जान बचाकर बैठी है और ये मुर्गी बचा रहा है.
बनवारी: छोडो भाईयों ये ऐसे नही मानेगा, चलो हम ही ले आते है मुर्गी.
कल्लु: (अब थोडा ठंडा पडने लगा था) अरे अरे रहम करो, हम तो साथ रहते है भाईओं की तरह. साथ उठना बैठना है.
शर्मा: वही तो तकलीफ है कलवा. साथ उठना बैठना है. स्साला तु तो किटाणु लेकर आएगा. हमारे बाल बच्चों को भी नहि छोडेगा.
कुलभुषण: समझदारी दिखा कल्लु, कर दे मुर्गी हलाल.
कल्लु: (अब तक समझ गया था कि अब और कोई रस्ता नहीं है) सब ठीक है भाई. पर मेरे बाल बच्चों का तो सोचो. उस मुर्गी ने तो अब तक अंडे भी देने शुरू नहीं किए. आगे अंडे देगी तो दो पैसे कमाउगाँ ना साहब.
उसकी तुम चिंता ना करो, उसका उपाय है – यह किसने कहा. सबने मुड कर देखा तो मास्टरजी आ रहे थे. इस तरह की ज्ञान की बातें तो मास्टरजी ही करते है. ना जानते हों तो हिन्दी पिक्चर देख लो. खैर आगे सुनिए...
पांडु पहलवान: चुप कर मास्टर, फोगट का ज्ञान मत दे. मुर्गी को बचाने की कोशिष मत कर.
कुलभुषण: पांडु की छोडो मास्टरजी, पर उपाय क्या है. मुर्गी को तो छोड नहिं सकते.
मास्टरजी: ठीक है ठीक है पर कुछ ऐसा करें की सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टुटे.
बनवारी: मतलब?
पांडु पहलवान: मतलब गया भाड मे, मुर्गी निकालो फटाफट. कुर्बानी देनी है.
मास्टरजी: वही तो यानि कि कुर्बानी भी हो जाए और कल्लु को दो पैसे भी मिल जाए.
बनवारी: हम क्यों देने लगे कलवा को पैसे, यहाँ तो वैसे ही लगी पडी है.
मास्टरजी: आप से कौन मांग रहा है. हम तो कह रहे है मुर्गी काटो मत समाधी दे दो.
बनवारी: समाधी?
कुलभुषण: समाधी?
शर्मा: समाधी?
कल्लु: समाधी?
मास्टरजी: हाँ समाधी. फिर एक मंदिर बना देंगे. आने जाने वाला चढावा चढा देगा. कलवा को दो पैसे मिल जाएंगे.
कल्लु: ओ भाई मास्टर हमारे कौम मे यह सब नही होता.
मास्टरजी: अच्छा, तो रामदेव पीर की मजार पर चादर चढाने क्यो जाते हो?
पांडु पहलवान: ये सही कहा मास्टर, अब बोल कलवा.
बनवारी: हाँ हाँ ये सही है पर चढावे मे हमारा हिस्सा भी होगा.
शर्मा: हाँ भाई, सोसाईटी भी कोई चेज होती है.
कल्लु: ठीक है, 50-50 हिस्सा.
बनवारी: मंजुर
शर्मा: मंजुर
कुलभुषण: मंजुर

अब तो कल्लु को हसीन हसीन ख्वाब आने लगे. रोज का 500 रूपये का केश चढावा भी आए तो महिने का 15000? वाह.

शर्मा: क्या सोच रहा कलवा. युँही लोग मुर्गी माई पर चादर चढाने आते रहे तो सोच साल दो साल मे पुरा पोल्ट्रिफार्म खोल देगा तु तो.
कल्लु: बस बस बात एकदम खरी है. जल्दी से समाधी दो मुर्गी को. किधर है रे अपनी रेशमा.

बस सब लोग मुर्गी ढुंढने मे लग गये. पर वो कहाँ मिलनी थी. नहीं मिली.
इतने मे कल्लु का बेटा दौडता हुआ आया.

कल्लु: किधर भटक रहा था नालायक. एक मुर्गी नहिं संभाल सकता. किधर है बोल.
बेटा: अपनी मुर्गी?
कल्लु: ना पडोसी की. अबे जल्दी बोल किधर गयी.
बेटा: वो तो छन्नुमियाँ के मुर्गे के साथ थी सुबह तो. तब से दोनो नहीं दिख रहे. पता नही किधर गये.

कल्लु को तो काटो तो खून नहीं. सारे सपने चकनाचूर हो गये. पोल्ट्रीफार्म उजड गया. मुर्गी भाग गयी.
किसी को बर्डफ्लु याद नहीं रहा. सबको चढावा ही याद आता था. काश मुर्गी मिल जाए तो समाधी दे. काश बर्डफ्लु कुछ दिन और फैलता रहे. कल्लु की नहीं तो किसी और कि मुर्गी कि बना देंगे समाधी. कहीं ना कहीं तो बन जाएगी “मुर्गीबाई की समाधी”.

25.2.06

मेरा फोटो ब्लोग

छायांकन मेरी रूचि रही है. इधर उधर हर कहीं मुझे ऐसे दृश्य दिख जाते है जो छायांकन कि दृष्टि से लाजवाब हों. उन्हे कैमरे में कैद करके संजो लिया करता था. पर कभी कभी लापरवाही से ही सही मेरी खिंची हुई तस्वीरें खो जाती थी. पर अब सोचता हुँ इन तस्वीरो को सहेज कर रखना चाहिए. अब मैने अपना फोटो ब्लोग भी शुरू कर लिया है. मेरी खिंची हुई तस्वीरें अब आप यँहा देख सकते है. पहली पृवष्टि "आबु पर्वत" के उपर है.

22.2.06

M.F. Hussain की कलाएँ और बेशर्म हम

M.F. Hussain एक महान चित्रकार है. चित्रकार कहुँ या कलाकार कहुँ. कलाकार है भई. कई तरह की कलाएँ जानते है. कैसे प्रसिद्धि पानी है. कैसे मार्केटिंग करनी है. तभी तो दिन दूनि रात चौगुनी प्रगति करके यहाँ तक पहुँचे है. उन्हे यह भी अच्छी तरह आता है कि कला के नाम पर बेवजह झमेला कैसे खडा करना चाहिए. यह तो और भी अच्छी तरह पता है कि ईस देश मे एक ही सम्प्रदाय ऐसा है जिसकी जितनी चाहे खिल्ली उडा लो कोई कुछ नही कहने वाला, क्योंकि देश धर्मनिरपेक्ष है. यानि Pro Muslim हो चलेगा पर Pro Hindu तो भूल कर भी नही हो सकते. अरे कही आप साम्प्रदायिक ना हो जाओ. तो ईन जैसे पेंटरो को शह मिल जाती है कि जो जी में आए बना डालो. क्या फर्क पडता है.
पहले इन्होने सिता को नग्न करके हनुमान की पूँछ पर बिठा दिया. थोडा शोर शराबा हुआ जो मुफ्त कि publicity मे रूपान्तरित हो गया. अब तो इन्होने हदें ही पार कर दी.
राम सिता को सम्भोग करते और हनुमान को निहारते हुए दिखा दिया.



और इस पेंटिंग के बारे मे क्या ख्याल है... नग्न भारतमाता भी.


धन्य है इनकी कलाकृतियाँ, और धन्य हैं हम जो सब सहन कर लेते है. M.F. Hussain को पहचानने की जरूरत है भी?

21.2.06

पैचान कौन?

पैचान सकते हो मुझे? बताओ कौन हुँ में?

अरे ऐसे तो कैसे बताओगे, तो चलो कुछ hint दे देता हुँ. मै बहुत बडा तोप कलाकार हुँ. या बना दिया गया हुँ. कुछ भी समझ लो, पर हुँ कमाल का. बुड्ढा घोडा लाल लगाम भी कह सकते हो मेरे लिए. मै कभी बुरा नही मानता. लोग कहते है उसके लिए भी दिमाग होना चाहिए. अब क्या पता, मै तो मेरा काम करता हुँ. वैसे "काम" मुझे बहुत पसंद है. काम पर तो अपन ने जबरा काम किया है. किसी की चाल पर फिदा हुआ तो किसी कि कमर पर. और कुछ कर न सका तो फिलम बना डाली. जैसे जी मे आया चलवा लिया उनसे, जैसे जी मे आया दिखवा दिया उनसे. आज मै जिस मुकाम पर हुँ ना, बडी मेहनत कर के पहुँचा हुँ दोस्त. क्या था मै? फिल्मो के पोस्टर रंगा करता था. दो कोडी की भी कमाई नहि थी यार. ये भी कोई जीना हुआ, बोलो. फुटपात पे सोना और पिक्चर के पोस्टर रंगना ये अपने जेहन मे ना था, तो एक दिन खुदा का नाम लिया और कुछ अगडम बगडम रंग दिया. क्या बनाया था मेरे बाप के पल्ले भी नही पडना था, पर राह गुजरते एक कला पारखी को वह चित्र बडा भा गया. पता नही क्या नजर आ गया उसे. उसने कहा वाह क्या घोडा बनाया है, कितने मे बेचोगे. हमने सोचा स्साला बनाया तो कबुतर था, घोडा कैसे दिख गया? पर मेरा क्या जाना था, बेच दिया सेंकडो में. वो मुझे देखता रह गया. ईत्ता सस्ता. अब वो बेचारा क्या जाने इसके आगे अपने को गिनती ही नही आती. पर हम तो खुश थे और वो साहब भी.

बस ऐसे ही आगे बढते गये हम. सफलता की चाबी हाथ लग गई थी ना! बनाओ कुछ भी अगड्म बगड्म और कला के नाम पर बेच दो. नाम भी मिले, दाम भी मिले. फिर मुझे फिर से "काम" भी याद आने लगा. सोचा क्यो ना कुछ सृजनात्मक बनाया जाए. अब अपनी अपनी सोच होती है ना, जाए वँहा तक जाए. तो भाई creativity के नाम पर हमने नग्नता शुरू कर दी. किसीको नही छोडा. देखो तो, पहले सीता को नग्न करके हनुमान की पूँछ पर बिठा दिया. फिर राम सिता को संभोग करते और हनुमान को निहारते भी दिखा दिया. नही, शर्म कैसी? भई creativity भी कोई चीज होती है कि नही? और लो अब तो भारतमाता को भी नग्न कर दिया. कैसी रही. बताइए तो सही.

ये VHP RSS वाले नाहक ही हल्ला करते है. उनको कला की कदर ही कँहा है. पर अपने को कोई फरक नही पडता. इस सेक्युलर देश में सब चलता है. क्या कहा आपने? कुछ पैगम्बर साहब या जीसस क्राईस्ट पर भी creative बनाऊँ. पागल हो क्या? मरना है क्या मुझे.

छोडो ये सब. यह सब ऐसे ही चलता रहेगा. आप तो ये बताओ कि मै हुँ कौन? पैचान कौन?

8.2.06

मै पद्मश्री होना चाहता हुँ

आज युँही बैठे - बैठे ख्याल आया कि क्यो ना पद्मश्री हुआ जाए. सोचा ख्याल तो अच्छा है. समाज मे रूतबा भी बढेगा और फ्री मे राष्ट्रपति भवन देखने का मौका भी मिलेगा. तो भई मुझे अब पद्मश्री होना है. कैसे हुआ जाए. सोचा, बहुत सोचा. फिर इस नतिजे पर पहुँचा कि यह इतना आसान नहि. खाशकर मेरे जैसे आम इन्सान के तो बस कि बात ही नही है. ना ना आप समझे नही शायद. आम इन्सान इसलिए नही कि मैने कोई तीर मारा ही नही आज तक. कभी सुर्खियो मे भी नही आया. तो सरकार पहचानेगी कैसे मेरी प्रतिभा को? ना जी बात इतनी सरल कँहा है. पद्म का दम भरने के लिए दो-चार चीजें अति आवश्यक है. इस पर गौर फरमाया जाये:

१. पहले तो सुनिश्चित करें कि आप कही सुपर फेमिली यानी कि गांधी-नेहरू परिवार से सम्बन्धित तो नही है? घभराईए मत. हैं तो अच्छा ही है भाई. फिर कोई टेंशन नही. प्रतिभा नही, चलेगा. उम्र कम है, चलेगा. भारतीय है भी-नही भी, चलेगा. अरे कोई तीर भी नही मारा, तो भी चलेगा. गांधी-नेहरू परिवार का थप्पा है ना. बस बहुत हो गया. भईये पद्मश्री का सपना देखना छोड दो अब. उदास क्यो हो गए. अरे मै आपको भारत रत्न दुंगा. सच्ची. तुम मुझे गांधी-नेहरू परिवार सर्टिफेकट दो - मै तुमको भारत रत्न दुंगा. खुश. हाँ, सही में यह इतना आसान है. गांधी-नेहरू सर्टिफाइड होते ही भारत रत्न पक्का. देखो ना सब के सब तो रत्न भरे पडे है. नेहरू ले लो, इंदिरा ले लो, अरे राजीवजी भी हो गए थे. और यकिन करोगे, सरदार पटेल से पहले ही हो गए थे. वाह, परिवार हो तो ऐसा. सब के सब रत्न. जो नही है वो भी हो जाएंगे. सोनियाजी तो सारे देश की माँ है ही. यही तो कहा था एक मख्खनबाज कोंग्रेसी ने. अब माँ को रत्न कौन नही देना चाहेगा? मँ सबको प्यारी होती है. दे देंगे वो भी. अभी तो वैसे भी सारा देश उन्ही का तो है. एक दो श्री या भूषण वगैरह राहुल भैया और प्रियंका दीदी को भी मिल जाना चाहिए अब. ट्रेलर तो दिखा दो उनको. पूरी पिक्चर थोडे बडे होने पर दिखा ही देनी है. अरे sorry sorry, एक बिल्ला हमारे प्यारे जीजु रोबर्ट को भी दे दो भाई. नही तो बुरा मान जाएंगे. देखो थोडे दिन पहले बिगड गये थे कि एयरपोर्ट पर checking नहि करवायेंगे. देखो छुट देनी ही पडी. देश के कुँवरसाहब है ना. तो भई बात इतनी सी है कि गांधी-नेहरू परिवार से सम्बन्धित है तो समझिए हो गये वारे न्यारे. मिल जाएगा रत्न. सरकार के घर देर हो सकती है पर अंधेर नही. मिलेगा ही मिलेगा.

२. पर होते है कुछ बदनसीब. मेरे जैसे. कँहा पैदा हो गया मै. गांधी-नेहरू परिवार से दूर दूर तक कोई नाता नही. क्या यार अब कुछ तो करना ही पडेगा. सबसे पहले तो थोडा बहुत तीर जैसा कुछ मार लो.कुछ भी चलेगा. वैसे भी मै ब्लोगदुनिया का बादशाह तो नही पर प्यादा तो हो ही गया हुँ. वाह बहुत है बहुत है. चलो दुसरा चरण अब - सरकार मे सेटिंग करो. अरे भाई सेटिंग के बीना तो नही चलेगा. देखो कि कैसे भी करके नोमिनेशन मिल जाए. समझो एक बाधा पार. कैसे भी करो. रोओ धोओ. गिडगिडाओ. घूस वूस दो. नोमिनेशन भेज दो बस. फिर तीसरा चरण - सेलेक्शन कमेटी को फोडो. ये तो बडी बाधा है साहब. आपको अमर सिंह जैसा खोपडी बाज होना पडेगा. उतना नही तो उनका 25 percent भी हो गये तो हो गया काम. उछलो नाचो गाओ. अब अगली मुलाकात तो राष्ट्रपति भवन मे ही होगी. फिर मिलेंगे.

३. और कहीं आप मेरे जैसे तो नही है. कोई सेटिंग भी नही है. गांधी-नेहरू परिवार से नाता भी नही है. फिर तो बस ख्वाब ही देखो. मिलने से रहा तमगा तुमको. क्योकि हम सो जनम मे भी लता मंगेशकर, बिसमिल्ला खान या सरदार पटेल तो होने से रहे कि प्रतिभा कि देर सवेर याद आ ही जाए. तो बस ख्वाब देखो कि अगला जन्म गांधी-नेहरू परिवार मे ही हो. हे भगवान सुन रहे हो ना?

5.2.06

८ गुणो वाली प्रेमिका और मै

आशीषजी, यह क्या किया आपने? मुझे क्यो बकरा बना दिया? आप बडे बडे बकरो के बीच मे मुझ जैसे मेमने का क्या काम. आप सब तो महारथी हो, नही नही लिखने मे तो हो ही, प्रेम के PHD धारी भी हो. मै ठहरा निष्फल प्रेमी. क्यो जगहँसाई करवाना चाहते है! नही भाई छुपाना कैसा? जब लिखना ही है तो लिख ही डाले ना! ज्यादा तो नहि पर थोडी छुपाछुपी खेलनी पडेगी. क्या करूँ, किसिने केश ठोक दिया तो. जबरदस्ती मारा जाऊँगा. सारी की सारी ब्लोगगिरी धरी कि धरी रह जाएगी. और नहि तो क्या!

पहले ८ गुण वाली बात पर आता हुँ. यार ये आठ गुण ही क्यों? १६ क्यो नहि पुछा? देखिए ना नारी १६ श्रृंगार करती है ना? बस वे ही तो गुण होते है उनमें! सच्ची बात है ना? भगवान ने नारी को सुंदरता दी, हमे उन्हे देखने वाली स्पेश्यल आँखे दी! कोई इसे नाम देता है, लाइन मारना? कर लो बात! लाइन तो लगती है, मरती कँहा है? सब लाइन लगाते है, कोई प्रत्यक्ष लगाता है (मेरे जैसा) कोई परोक्ष लगाने मे विश्वास रखता है. लगाएंगे सब! आखिर आँखे है तो देखने के लिए. जग मे कितनी खुबसुरती है. देखनी चाहिए कि नही? और फिर कदर भी करनी चाहिए. क्यों हम नही कहते, वाह शर्माजी आपकी गाडी तो बडी शानदार है! नही कहते कि, वाह शर्माजी आपके बगिचे के गुलाब तो बडे ही सुंदर है! क्या नही कहते कि, वाह शर्माजी आपकी नई टी.वी. तो बडी गजब की है. तो यह क्यो नही कह सकते, वाह शर्माजी आपकी नई बीवी तो बडी सुंदर है! सुंदर है तो सुंदर ही कहेंगे ना? बुरा मानने कि क्या बात है? पर नही, मान जाएँगे बुरा. जितनी गालीँया सिखी है, या नही सिखी तो आयातित सब दे डालेंगे. और कुछ नही तो कंहेगे, तेरे बाप का क्या जाता है? क्या करे अब इनका? सुंदर है तो सुंदर ही कहेंगे ना! चलो ठिक है by chance कह दें, चलिए शर्माजी आपकी नई बीवी बस ठिकठाक ही है, आप के साथ suit करती है! तो क्या बुरा नही मानेंगे? जरूर मानेंगे. बडी दिक्कत है जग में.

क्या आठ गुण गिनाऊँ प्रेमिका के? चलो देखते हैं:

१. नारी होनी चाहिए. (भई नर लोगो को बुरा मानने कि जरूरत नही है, आप भले ही मुझ पर लाइन मारो पर मेरा परदेश जाकर बसने का कोई मूड नही है, यहाँ इडिया मे यह सब allow नही है)

२. महा झेलू होनी चाहिए (मै बहुत पकाता हुँ. मुझे झेलना साधारण नारी के बस की बात नही)

३. पाक कला विशेषज्ञ होनी चाहिए. (हाँ जी, खाने पीने के अपने शोखीन. घर पर ही लजिज खाना मिले तो बाहर क्यो जाँए)

४. सोंदर्य विशेषज्ञ होनी चाहिए. (ताकि वे खुबसुरत बनी रहें और हम घर मे ही लाइन लगाते रहें. नही तो मुझे कोई problem नही है.)

५. ज्यादा चुँ चपड न करे. (हाँ तो, नही तो औरतो का मुँह कब बंद होता है? लिपस्टीक लगाते समय! नहीं तो all India Radio चलता ही रहता है.)

६. स्टाइल इंस्पेक्टर होनी चाहिए (खा गए ना गच्चा? अब यह क्या है? जी हाँ, अपने को सलिका सिखाने वाली मिले तो वारे न्यारे. नही तो क्या है, मै तो पाजामे में ही बाहर चला जाता हुँ. कोई हो जो कहे, क्या है यह्? बाल तो बनाओ.)

७. हँसती रहे हँसाती रहे (हँसना सेहत के लिए जरूरी है साहब, कुछ तो पोसिटिव हो ना)

८. आखिर में, सुंदर होनी चाहिए (मैने पहले कहा था ना, एक ही तो गुण होता है औरतो में. यह भी ना हो तो फिर खाली पिली टेंशन क्योंकर लेंगे)

हम्म्म्म, हो गये आठ गुण... चलो अब राज कि बात बता देता हुँ. ये सब हमारी श्रीमतीजी मे है. नही तो किस शादिशुदा व्यक्ति मे इतनी हिम्मत होती है कि पत्नी के गुणो क अलावा कुछ और भी लिखे. हाँ भई मुझे तो मेरी बिवी से बडा डर लगता है. वाह लो, मिल गई खुशी सुनकर? क्यों आपको नही लगता क्या? तो शरमाना कैसा. dont be shy! और जो कुँवारे खुशनसिब पढ रहे है, ज्यादा खुश मत हो, हर कुत्ते के दिन आते है.

वैसे लिखना तो प्रेमिका के बारे में था. क्या करे शादी के बात तो बिवी ही घोषित प्रेमिका होती है ना!
वैसे प्रेम तो हमने बहुत किए. सच्ची! क्लास ७ से ही लाईनमारू हो गया था. क्लास की सबसे सुंदर बाला सुश्री म को दिल दे बैठा. वैसे लाईन तो उसे स्कुल के सारे समझदार लडके मारते थे, पर मै भाग्यशाली था. क्योकि वो मेरे पास बैठती थी. मुझसे होमवर्क करवाती थी. मेरा नास्ता खाती थी. मेरी पुस्तक से कोपी करती थी. अब इतनी समझ थोडे ही होती थी कि मेरा use करती थी. फिर भी सब लडके मुझसे जलते थे, और मै अपने को कनैया से कम ना समझता था. फिर एक दिन वो आई ही नही. फिर दो दिन ना आई. फिर महिना गुजर गया. फिर पता चला, उसका बाप सबको लेकर गाँव भाग गया. प्रेमकथा १ समाप्त.

फिर क्लास १० मे, क्लास की सबसे बुद्धिसम्पन्न बाला सुश्री स से भी प्यार हो गया. वो भी थोडी बहुत interested लगती थी. पर इस बार पास पास बैठने जैसा कुछ ना था. वो उस कोने मे, मै इस कोने मे. बस आँखो ही आँखो मे ईशारा हो गया. और इतना ही रहा. फाइनल परिक्षा के बाद ना जाने वो कँहा चली गई. और मै वँही रह गया.

फिर Multimedia की पढाई के समय सुश्री अ थी. एकदम टोम क्रुज ईस्टाइल. मै उसके स्कुटर के पीछे बैठता था. वो मुझे बस स्टेंड तक drop करती थी. इतनी खराब scooter चलाती थी की रास्ते मे पचास जगह ठोकती थी. पर गाली बेचारा सामने वाला ही खाता था. मै तो जितनी देर उसके पीछे बैठता था, हनुमान चालिसा पढता था. पर क्या करू, कम्बख्त दिल. फिर भी उसके साथ scooter पर ride करना आनंद देता था. एक दिन बोली चल तुझे किसी से मिलवाती हुँ. हाँ साहब आज वो कोई उसका पति परमेश्वर है.

फिर एक लास्ट और थी. मेरी सबसे अच्छी मित्र सुश्री स. पहले दोस्ती, फिर गहरी दोस्ती, फिर प्यार. एकदम फिल्मी स्टाईल. कभी कुछ कहा नही, कभी सुना नही. एक दिन एक रेस्तरां मे पूछ ही डाला," मुझसे शादी करोगी?" उसका चेहरा सफेद, अवाक. पर फिर कहा "हाँ". बस इतना ही. उसके बाद इंटरवल के बाद की फिल्म फिर शुरू हो गई. खानदान मे समस्या. नही मेरे नही उसके. मै मारवाडी, वो बंगाली. क्या कहें. हो गई कयामत से कयामत तक. खल्लास.
और आज, भई वो भी खुश, हम भी खुश. वो गुडगांव अपने ससुराल, हम अहमदाबाद अपने पिहर. आज कभी-कभी chat कर लेते है. दोस्ती तो नही ही टुटी.

फिर कई साल बाद एक बार लास्ट प्यार हुआ. हौले हौले. मेरी माँ कि पसंद की लडकी से. धीरे धीरे
प्यार. और ईस बार हारा नही. वो सुश्री नही नही, श्रीमती बेंगानी आज हमारे साथ है.

कथा समाप्त.
और अब हमारी बकरा सुची:
१. भाईसाहब संजयजी
२. परममित्र रविजी
३. आशिषजी
४. प्रतिकभाई
५. जितुजी
६. ई-स्वामीजी
७. कालीचरणजी
८. तरूणजी
९. ग्रेग गोल्डींग साहब
१०. सारीकाजी